महान समाज सुधारक गुरु अमरदास के मन में सदा परोपकार के भाव रहते थे
श्री गुरू अमरदास जी द्वारा रचित बाणी में गुरू का सिद्धांत-गुरूदेव ने अपनी बाणी में गुरू के महत्व को प्रकट किया है, कि आध्यात्मिक ताले की चाबी गुरू के पास होती है। गुरू संसार में जीवों का भला करने हेतु आता है। वह अंधकार में भटकती मानवता को ज्ञान प्रदान करता है।
भारतीय भूमि के कण-कण में सेवा व परोपकार के भाव समाहित हैं। या यूं कह सकते हैं कि भारत वासियों को विरासत में ही सेवा, भक्ति, त्याग इत्यादि की घुंटी मिल जाती है। यह धर्म के वे लक्षण हैं, जो समाज में श्रेष्ठ मानवों का सृजन करते हैं। इन्हीं सद्गुणों को धारण कर मानव अपने जीवन में उन्नति के शिखरों पर पहुँचता है। हमारी भारतीय संस्कृति हमें इन्हीं गुणों से ही पोषित करती आई हैं। अगर हम महापुरुषों के जीवन पर दृष्टिपात करें तो पाएँगे कि हमारे सभी महापुरुष ही परोपकार के भावों से परिपूर्ण थे। परंतु श्री गुरू अमरदास जी भक्ति, त्याग, सेवा के पुंज, समाज सेवा व सुधार, सती प्रथा का खंडन, विधवा विवाह के पक्षधर, बावडि़यों का निर्माण, पहले पंगत फिर संगत की रीति को दृढ़ कर, समाज से जाति-पाति के कलंक का उन्मूलन करने का संकल्प धारण करने वाले महापुरुष के तौर पर जाने जाते हैं। भाई नंद लाल जी श्री गुरु अमरदास जी की स्तुति करते हुए कहते हैं-
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गुरु अमरदास आं गरामी नज़ाद। जि़ अफज़लि हक हसतीअश रा मुआद।
जि़वस्फो सनादि हमा बरतरीं। ब-सदरि हकीकत मुरबअ नशीं।। (गंज नामा)
भाव श्री गुरू अमरदास जी उस महान घराने से हैं, जिनकी हस्ती को ईश्वर के फज़ल एवं कर्म से सामग्री मिली है। स्तुति व शलाघा में वे सबसे उत्तम हैं। असल में ईश्वर खुद ही सत्य के, आसन पर आकर विराजित हो गए हैं। इसी प्रकार भाई सत्ता जी भी गुरु जी की महान सख्शियत के बारे में ब्यां करते हुए कहते हैं-‘गुरू जी श्री गुरू नानक व अंगद जी की तरह ही महान हैं। वे गुरू शब्द रूपी सागर को मथकर, ईश्वरीय गुणों के माणिक मोती निकाल कर सांसारिक जीवों को रौशनी प्रदान कर रहे हैं। आप आत्मिक अडोलता के मालिक हैं, व आप ने अपनी इंन्द्रियों को पूरी तरह अपने वश में किया हुआ है। संसार में छाए विषयों विकारों के अंधेरे को दूर करने के लिए आप ईश्वरीय गुणों के तेजवान सूर्य हैं।’
आप जी का प्रकाश 5 मई 1479 को बासरके (अमृतसर) में बाबा तेजभान एवं माता सुलखणी जी के घर पर हुआ। 62 साल की आयु में आप श्री गुरू अंगद देव जी की शरनागत हुए व 12 साल गुरू घर में रहकर निरंतर डटकर कड़ी सेवा की। 1552 ईसवी में श्री गुरू अंगद देव जी ने आप ज को गुरू गद्दी पर विराजमान किया। भल्ल भट्ट श्री गुरू अमरदास जी की स्तुति करते हुए कहते हैं-जिस प्रकार बरसते बादलों की बूंदों को गिना नहीं जा सकता, भेड़ के शरीर पर उगे बालों की गिनती नहीं हो सकती, बसंत ऋतु में खिले फूलों को गिना नहीं जा सकता, चाँद व सूर्य की किरणें भी अनंत हैं व सागर की लहरों का भी कोई ओर-छोर नहीं। इसी प्रकार श्री गुरू अमरदास जी के गुण भी बेअंत हैं।
श्री गुरू अंगद देव जी के प्रति समर्पण भाव व पक्के निश्चय के कारण ही आप इस मंजिल तक पहुँचे। गुरू जी का जीवन एक खुली किताब के समान है, जिसके हर पन्ने पर सेवा व त्याग के ही शब्द अंकित हैं। जिंदगी के अंतिम पड़ाव भाव बुजुर्ग अवस्था में आप को श्री गुरू अंगद देव जी मिले। अपने बुढ़ापे की चिंता न करते हुए आप दिन-रात उनकी सेवा में रत्त रहते थे।
आप बहुत ही नम्र स्वभाव वाले थे। आप जी के अंदर सेवा का भाव कूट-कूटकर भरा था। आप भक्ति रस के धारणी, मानवता का भला सोचने वाले, सदैव पारब्रह्म में लीन रहने वाले एवं श्री गुरू नानक देव जी की गद्दी पर बिराजमान होने वाले सिखों के तीसरे गुरू हैं। किसी विचारक का कथन है कि श्री गुरू अमरदास जी एक मानव के रूप में, गुरसिख के रूप में, कवि व बाणीकार के रूप में एक महान सख्शियत के मालिक थे। महांकवि संतोख सिंह जी ने ‘गुरू सूरज प्रताप’ नामक ग्रंथ में श्री गुरू अमरदास जी की पावन हस्ती के बारे में बताते हुए कहा है, कि आप जी के पास महान आध्यात्मिक बल था। उनके पावन वचन श्रवण कर रास्ते से भटके लोग सही मार्ग पर चलने लगते। अनंत गुणों के स्वामी सद्गुरू जी भगवंत स्वरूप थे।
श्री गुरू अमरदास जी द्वारा रचित बाणी में गुरू का सिद्धांत-गुरूदेव ने अपनी बाणी में गुरू के महत्व को प्रकट किया है, कि आध्यात्मिक ताले की चाबी गुरू के पास होती है। गुरू संसार में जीवों का भला करने हेतु आता है। वह अंधकार में भटकती मानवता को ज्ञान प्रदान करता है। सृष्टि का अटल नियम है, कि एक व्यक्ति गुरू के बिना ईश्वर तक नहीं पहुँच सकता। जीव के सारे दुखों की दवा व मुक्ति का दाता सिर्फ गुरू ही हुआ करता है। गुरू के पास ही मानव की ज्ञान की आँख खोलने वाला, ज्ञान रूपी काजल होता है। सद्गुरू एक सच्चा जहाज है, जो मानव को भवसागर से पार उतारता है। वह सच्चा दाता है, जो जीव को ईश्वर से मिलाता है। वह पारस है जिसे छू लेने से, जीव लोहे से शुद्ध कंचन बन जाता है। गुरू जीव को आनंद के विशाल सागर से जोड़ देता है। गुरू प्रत्येक जीव को अमर तत्व प्रदान करता है। इस प्रकार व्यक्ति मोह माया से मुक्त होकर हरि चरणों में समाहित हो जाता है-
सतिगुरू हथि कुंजी होरतु दरु खुलै
नाही गुरू पूरै मिलावणिया।। (महला 3/124)
समाज सुधारक क्रांतिकारी सद्गुरू-अगर उनके व्यक्तित्व की ओर दृष्टिपात करेंगे, तो वे सिर्फ कर्मयोगी समाज सुधारक ही नहीं, अपितु उन्होंने अपने आदर्शों के आधार पर एक तंदरुस्त समाज का सृजन भी किया था। जाति-पाति के कलंक को खत्म कर ‘पहले पंगत फिर संगत’ भाव प्रत्येक जाति-वर्ग का व्यक्ति, जो भी गुरू दरबार में आएगा उसे कतार में बैठकर भोजन ग्रहण करना पडे़गा, फिर चाहे वो गुरू दरबार में आया शहंनशाह अकबर ही क्यों न हो। गुरू जी ने गोइंदवाल साहिब में एक बऊली का निर्माण भी करवाया जिसमें सभी स्नान कर सकते थे। उन्होंने ऐसा करके समाज में भाईचारे व एकता के सिद्धांत को अमली रूप प्रदान किया। उन्होंने सिखी सिद्धांतों को दूर-दूर तक फैलाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना भी की जिसमें 2 स्त्री प्रचारक बीबी सच्चन सच व माई भागो भी थीं। उन्होंने समाज से सती प्रथा व पर्दा प्रथा को भी समाप्त किया। लोगों को सत्य, शीलता का ज्ञान करवाकर ईश्वर से जोड़ा।
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गुरमुख व मनमुख का सिद्धांत-इस संसार में अनादि काल से ही दो प्रवृतियों देखने को मिलती हैं, नेकी व बदी। जो लोग नेकी के मार्ग पर चलते हैं, वे हमेशा ही गुरू के प्रतिनिधित्व में कार्य करते हैं। गुरबाणी उन्हें गुरमुख कहकर संबोधित करती है। दूसरे तरह के लोग जो बदी पर चलते हैं, वे हमेशा मनमति के अनुसार चलते हैं। श्री गुरू अमरदास जी ने मनमुख व गुरमुख के चरित्र को अपनी वाणी में स्पष्ट किया है। उनके अनुसार गुरमुख सदा गुरू की दी अमृत बाणी बोलते हैं, वे सबके भीतर ईश्वर का दर्शन करते हैं। उनके जीवन का आधार सिर्फ सत्य हुआ करता है। झूठे, फरेबी एवं बेईमान इन्सान के लिए उनके जीवन में कोई स्थान नहीं होता। वे अपना जीवन संवारने के साथ ही, अपनी कुल का भी उद्धार करते हैं। उन्हें कभी वृद्धास्था नहीं व्याप्ती भाव वे कभी वृद्ध नहीं होते-
गुरमुखि अंमिृत बाणी बोलहि सब आतम रामु पछाणी।।
ऐको सेवनि ऐकु अराधहि गुरमुखि अकथ कहानी।। (महला3/131)
अंत में यही कहना चाहेंगे कि श्री गुरू अमरदास जी बहुत बड़े समाज सुधारक एवं दूरदर्शी इंकलाबी गुरू थे। उनका प्रकाश पर्व मनाते हुए हमें उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने की आवश्यक्ता है, तभी हम उनके सच्चे श्रद्धालु बन सकेंगे।
- सुखी भारती
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