Taliban Rule in Afghanistan: काबुल तालिबानी कब्जे के 3 साल, जानें कितना बदले हालात और क्या हैं चुनौतियां

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ANI
अभिनय आकाश । Aug 14 2024 7:19PM

अफगानिस्तान में तालिबान शासन को तीन साल हो गए हैं। इन तीन साल में उसने इस्लामिक कानून की अपनी व्याख्या थोपी और वैध सरकार के अपने दावे को मजबूत करने की कोशिश की है।

अंग्रेजों की लंबी गुलामी के बाद भारत ने आखिरकार 15 अगस्त 1947 को आजाद हवा में सांस ली और आजाद सुबह का सूरज देखा। लेकिन आज से ठीक तीन साल पहले 14 अगस्त यानी आज ही के दिन अफगानिस्तान की सरकार ने तालिबान के आगे घुटने टेक दिए थे। तालिबान के लड़ाके अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पहुंच गए। 14 अप्रैल को अमेरिका सेना की वापसी का ऐलान किया गया था। उसके बाद अब 15 अगस्त को यानी 124 दिनों में तालिबान ने अफगान सरकार को घुटनों पर ला दिया था। अफगानिस्तान में तालिबान शासन को तीन साल हो गए हैं। इन तीन साल में उसने इस्लामिक कानून की अपनी व्याख्या थोपी और वैध सरकार के अपने दावे को मजबूत करने की कोशिश की है। 

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अफगानिस्तान में कैसे बदले हालात 

14 अप्रैल- अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा 11 सितंबर तक अमेरिकी सैनिकों की वापसी का ऐलान किया। 

4  मई- तालिबान के लड़ाकों ने हेलमंद समेत छह प्रांत में सुरक्षा बलों के खिलाफ हमला बोला। 

11 मई- काबुल के नजदीक नर्ख जिले पर तालिबान ने कब्जा कर लिया। 

2 जुलाई- अमेरिकी सैनिकों ने आधी रात को अपना प्रमुख ठिकाना बगराम एयरबेस खाली कर दिया, जिससे तालिबान का हौसला बढ़ा। 

 21 जुलाई- तालिबान ने लड़ते हुए करीब आधे अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा लिया। 

6 अगस्त- तालिबान ने जरांग इलाके पर कब्जा किया। जरांग पहली प्रांतीय राजधानी थी जिस पर तालिबान का कब्जा हुआ था। 

12-13 अगस्त- तालिबान ने कंधार, हेरात समेत चार प्रांत की राजधानियों पर कब्जा कर लिया। 

14 अगस्त- तालिबान ने राजधानी काबुल के दक्षिण में लोगार प्रांत पर भी कब्जा कर लिया है। फिर आतंकी संगठन ने पूर्व का जलालाबाद शहर कब्जा लिया और काबुल को घेर लिया।

 15 अगस्त- 100 से अधिक दिनों से जारी संघर्ष के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया। 

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तीन साल में आया क्या बदलाव

देश के आधिकारिक शासक के तौर पर कोई राष्ट्रीय मान्यता न होने के बावजूद तालिबान ने चीन और रूस जैसी प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियों के साथ उच्च स्तरीय बैठकें की हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित वार्ताओं में भी भाग लिया है जिसमें अफगानिस्तान की महिलाओं तथा नागरिक समाज से जुड़े लोगों को भाग लेने का अवसर नहीं दिया गया। यह तालिबान के लिए जीत है जो अपने आप को देश के इकलौते सच्चे प्रतिनिधि के तौर पर देखता है। अफगानिस्तान में मस्जिद और मौलवी एक तरफ हैं तथा काबुल प्रशासन दूसरी तरफ है जो मौलवियों के फैसलों को लागू करता है और विदेशी अधिकारियों से मुलाकात करता है।

शिक्षा और रोजगार बड़ी चुनौती 

अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए एक और महत्वपूर्ण झटका महिला शिक्षा और अधिकतर रोजगार पर तालिबान का प्रतिबंध है, जिससे अफगानिस्तान की आधी आबादी खर्च और कर भुगतान के मामले में कमजोर पड़ गयी है अन्यथा अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती थी। तालिबान के लिए चीन और रूस से संबंध महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य है। फिलहाल खाड़ी देश भी तालिबान के साथ अपने रिश्ते बढ़ा रहे हैं।

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