Gyan Ganga: अंत समय में करें भगवान का स्मरण, कर्म के आधार पर यमलोक में होती है गणना
शुकदेव जी ने कहा— ध्यान से सुनो, इस जगत में तीन प्रकार के कर्म करने वाले लोग होते हैं। सात्विक कर्म करने वाले, राजसिक कर्म करने वाले और तामसिक कर्म करने वाले। इन्ही कर्मो के कारण उनकी भिन्न-भिन्न गतियाँ होती हैं। दक्षिण में पृथ्वी के नीचे और जल के ऊपर नरक स्थित है।
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥
प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आज-कल हम सब भागवत कथा सरोवर में गोता लगा रहे हैं।
पिछले अंक में हमने जड़ भरत का अलौकिक चरित्र पढ़ा- आइए उनके चरित्र से कुछ सीखें और अपने जीवन में उतारें— पहले वे हरि की चिंता करते थे किन्तु जब हरि चिंतन छूट गया तब वे मृग की आसक्ति में उसी का चिंतन करने लगे। कभी-कभी करुणा, दया भी बंधन का कारण बन जाती है। उस हिरण के बच्चे को खिलाते-पिलाते प्रेम से उसको सहलाते। उनका सारा वक्त उस मृग शावक के पालन-पोषण में ही बीत जाता, उनके द्वारा की जाने वाली भगवत सेवा कम हो गई और विडम्बना देखिए, हिरण बड़ा हुआ तो उनको छोड़कर मृग झुंड में चला गया। सच कहा गया है— प्रेम सजातीय में होता है विजातीय में नहीं। महाराज भरत ने मृग-शिशु का ध्यान करते हुए शरीर छोड़ा था इसलिए उन्हे मृग योनि में जन्म लेना पड़ा था, उसी प्रकार अपने मालिक महाराज भरत के मर जाने पर वह मृग-शिशु भी उनही का ध्यान करते हुए मरा था इसलिए वह भी राजा रहूगण के रूप में मनुष्य योनि में जन्म था। हमारे सनातन धर्म में इसीलिए समझाया जाता है कि— अंत समय में प्रभु का ही स्मरण करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता के आठवें अध्याय के छठवें श्लोक में कहा है—
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यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥
हे कुन्ती पुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है।
नरक वर्णन
परीक्षित ने पूछा- महर्षे ! नरक का क्या अभिप्राय है। यह नर्क त्रिलोक से बाहर है कि भीतर है। इसका विस्तृत वर्णन कीजिए।
शुकदेव जी ने कहा— ध्यान से सुनो, इस जगत में तीन प्रकार के कर्म करने वाले लोग होते हैं। सात्विक कर्म करने वाले, राजसिक कर्म करने वाले और तामसिक कर्म करने वाले। इन्ही कर्मो के कारण उनकी भिन्न-भिन्न गतियाँ होती हैं। दक्षिण में पृथ्वी के नीचे और जल के ऊपर नरक स्थित है। इसी दिशा मे हमारे भीतर रहते हैं और अपने वंश धरो के लिए मंगल कामना करते हैं। उसी नरक में सूर्य पुत्र यमराज अपने दूतो के साथ निवास करते हैं और मृतप्राणियों को उनके कर्मो के अनुसार दंड देते हैं।
तमिस्त्र रौरव महरौरव कुंभीपाक कलसूत्र वैतरणी आदि अठाइस नरक हैं। जहां व्यक्ति अपने-अपने कर्मों का फल भोगता है। जो दूसरों के धन, संतान और स्त्री का हरण करता है, उसे यमदूत कालपाश मे बाँधकर तामिस्त्र नरक में गिरा देते हैं। उसे इतना मारते है कि वह मूर्छित हो जाता है। जो व्यक्ति अपना पेट भरने के लिए पशु-पक्षियो को मारते है उन्हे यम के दूत खौलते हुए तेल में पटक देते है और ऊपर से नमक मिर्च छिड्कते है। जो लोग अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म को अपनाते है उनको तपती हुई धूप में चमड़े के कोड़ो से पीटा जाता है। जो राजा या कर्मचारी किसी निर्दोष आदमी को दंड देता है वह पापी सुअर के मुंह में गिरता है वहाँ यमदूत उसके नाजुक अंगों को कुचलते है और कोल्हू में फेक देते है,। जो लोग खटमल और कीड़ों को मारते है वे निकृष्ट नरक में जाते है जहां एक लाख योजन लंबा-चौड़ा एक कुंड है जिसमे छिपकली, बड़े-बड़े गिरगिट मेढक साँप बिच्छू गोजर रहते हैं। उसी में कीड़ा बनकर रहना पड़ता है वहाँ कीड़े उसे नोचते है और भूख के कारण वह उन कीड़ों को कच्चे ही खाने लगता है। जो व्यक्ति चोरी करता है उसे यमदूत गरम लोहे की छड़ से दागते है और सड़सी से उसकी छाल नोचते है। जो पुरुष पराई स्त्री के साथ या स्त्री पराए मर्द के साथ संभोग करते है, ऐसे व्यभिचारियों को तप्तसूरमी नरक में ले जा कर कोड़ो से पीटते है और तपाए हुए लोहे की मूर्ति से जबरन आलिंगन करवाते हैं। जो लोग झूठी गवाही देते है, किसी की शादी काटते है, व्यापार में झूठ बोलते है और आज-कल तो हमारे समाज में मदिरा और मांस का खान-पान बढता जा रहा है। मैं आप से विनम्रतापूर्वक निवेदन करना चाहता हूँ कि यह आसुरी आचरण है य़ह ईश्वर के विधान का उलंघन है ऐसा कभी न करें। ऐसे लोगों को यमदूत सौ योजन ऊंचे पहाड़ से नीचे सिर करके गिराते है जिससे शरीर के टुकड़े-टुकडे हो जाते हैं।
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हे राजन ! इस प्रकार यमलोक में सैकड़ो नरक है जहां जीव बारी-बारी से अपने कर्म का फल भोगने के लिए आता है। धर्मात्मा लोग स्वर्ग में जाते है। इस प्रकार स्वर्ग-नर्क के भोग से इनके पाप पुण्य कट जाते है, जो पाप-पुण्य बच जाते है उसे भोगने के लिए फिर इस संसार में आते है।
भगवान कृष्ण ने गीता मे कहा है-
प्राप्य पुण्य कृतान लोकान् उषित्वा शाश्वती समा
शुचिनाम् श्रीमताम् गेहे योग भ्रष्टों$भिजायते ॥
समाज सुधारक कबीर दास जी कहते हैं अपने चरित्र और तलवार पर दाग मत लगने दो नहीं तो यमराज को जवाब देना पड़ेगा।
लागा चुनरी मे दाग छुड़ाऊ कैसे...
चुनरी मे दाग छुपाऊ कैसे, घर जाऊँ कैसे। लागा...
हो गई मैली मोरी चुनरिया, कोरे वदन की कोरी चुनरिया, हो...
जाके बाबुल से नजरें मिलाऊँ कैसे, घर जाऊँ कैसे। लागा...
कोरी चुनरिया आत्मा मोरी, मैल है माया जाल
वो दुनिया मेरे बाबुल का और ये दुनिया ससुराल। जाके...
भूल गई मै वचन पिता के खो गई मै ससुराल मे आ के। जाके...
जय श्री कृष्ण -----
क्रमश: अगले अंक में --------------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
- आरएन तिवारी
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