Nanaji Deshmukh Birth Anniversary: सामाजिक कार्यों के लिए नानाजी देशमुख ने छोड़ दी थी राजनीति, संघ को दी नई मजबूती

Nanaji Deshmukh
Prabhasakshi

नानाजी देशमुख को पढ़ने का काफी ज्यादा शौक था, लेकिन पैसों की कमी के कारण भी नानाजी की यह इच्छा कम नहीं हुई। नानाजी ने खुद मेहनत कर पैसे जुटाए और अपनी पढ़ाई जारी किया था। उन्होंने राजस्थान के सीकर जिले से हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी की।

देश के महान व्यक्तियों में से एक रहे नानाजी देशमुख का जन्म आज ही के दिन यानी की 11 अक्टूबर को हुआ था। उनको एक समाजाकि कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। बता दें कि उन्होंने देश में फैली तमाम कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए अनेक कार्य किए थे। गांव में सारी सुख-सुविधाएं मिल सके, इसके लिए नानाजी हमेशा तैयार रहे थे। वहीं साल 2019 में भारत सरकार द्वारा नानाजी देशमुख को देश का सबसे बड़ा पुरुस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर नानाजी देशमुख के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

बता दें कि महाराष्ट्र के छोटे से गांव में 11 अक्टूबर 1916 को नानाजी देशमुख का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम चंडिकादास अमृतदास देशमुख था। वह गरीब मराठी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। कम उम्र में ही नानाजी देशमुख के सिर से माता-पिता का साया उठ गया था। जिसकी वजह से उनका पालन-पोषण मामा ने किया था। हांलाकि नानाजी किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे, जिस कारण उन्होंने सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया था।

नानाजी को पढ़ने का काफी ज्यादा शौक था, लेकिन पैसों की कमी के कारण भी नानाजी की यह इच्छा कम नहीं हुई। नानाजी ने खुद मेहनत कर पैसे जुटाए और अपनी पढ़ाई जारी किया था। उन्होंने राजस्थान के सीकर जिले से हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी की। इसके लिए उनको छात्रवृत्ति मिली थी। इस दौरान उनकी मुलाकात डॉक्टर हेडगेवार से हुई, डॉक्टर हेडगेवार स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे। हेडगेवार ने नानाजी को संघ में शामिल होने के लिए प्रेरित किया

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नानाजी ने आरएसएस को खड़ा किया

आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार संग नानाजी के परिवार जैसे संबंध थे। हेडगेवार ने नानाजी की उभरती सामाजिक प्रतिभा को पहचान लिया था। जिस कारण हेडगेवार ने नानाजी को संघ की शाखा में आने के लिए कहा। वहीं साल 1940 में हेडगेवार के निधन के बाद संघ को खड़ा करने की जिम्मेदारी नानाजी के कंधों पर आ गई। नानाजी ने इस संघर्ष को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बना लिया और अपना पूरा जीवन संघ को समर्पित कर दिया।

नानाजी के महाराष्ट्र सहित देश के विभिन राज्यों में घूम-घूमकर आरएसएस से जुड़ने के लिए युवाओं को प्रेरित किया। वह इस कार्य में काफी हद तक सफल भी हुए। नानाजी पहली बार आरएसएस प्रचारक के रूप में आगरा प्रवास पर आए। यहां पर उनकी मुलाकात पं. दीनदयाल उपाध्याय से हुई। फिर नानाजी वापस गोरखपुर आ घए और RSS की शाखाएं खड़ी की। नानाजी ने सर्वप्रथम गोरखपुर में ही सरस्वती शिशु मन्दिर नामक स्कूलों की स्थापना की थी। 

RSS पर प्रतिबंध

महात्मा गांधी की हत्या के बाद साल 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हांलाकि नानाजी के प्रयासों और RSS के खिलाफ कोई सबूत ना मिलने के कारण संघ पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया। इसके बाद भारतीय जनसंघ की स्थापना का कार्यभार नानाजी को सौंपा गया। नानाजी ने सांगठनिक कौशल की मिसाल कायम करते हुए साल 1957 तक यूपी के हर जिले में जनसंघ की इकाइयां स्थापित कर दीं। वहीं 60 साल की उम्र में राजनीतिक जीवन से संन्यास लेते हुए नानाजी ने सामाजिक जीवन में पदार्पण किया। 

निधन

बता दें कि साल 1989 में भारत भ्रमण के दौरान पहली बार नानाजी भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट आए और फिर यही पर वह रहने लगे। यहां पर गांवों की बदहाली देख नानाजी ने लोगों के लिए काम करने की ठान ली। 27 फरवरी 2010 में नानाजी का निधन हो गया। निधन को बाद नानाजी के पार्थिव शरीर को एम्स को सौंप दिया गया।

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