Guru Hargobind Birth Anniversary: सिख समुदाय के महान धर्मयोद्धा थे गुरु हरगोबिंद, एक साथ रखते थे दो तलवारें

Guru Hargobind
Prabhasakshi

अमृतसर के वडाली में 05 जुलाई 1595 को गुरु हरगोबिंद का जन्म हुआ था। वह गुरु अर्जुन देव और माता गंगा के पुत्र थे। 25 मई 1606 को वह अपने पिता गुरु अर्जुन देव की शहादत के कुछ दिन पहले 11 साल की उम्र में छठे गुरु बने थे।

आज ही के दिन यानी की 05 जुलाई को छठें गुरु, गुरु हरगोबिंद जी का जन्म हुआ था। गुरुगद्दी पर आसीन होने के बाद गुरु हरगोबिंद जी धर्म व मानवीय मूल्यों के सशक्त पक्षधर बनकर उभरे थे। वह सिख समुदाय के पहले ऐसे गुरु थे, जिन्होंने दो तलवारें धारण की थी। जिनमें से एक तलवार धर्मसत्ता व दूसरी राजशक्ति का प्रतीक थी। पंजाब के अमृतसर में श्रीहरि मंदिर के ठीक सामने उन्होंने अकाल तख्त का निर्माण कराया था। ऐसा कर उन्होंने यह संदेश दिया था कि इस संसार पर परमात्मा का राज है। इसके अलावा उऩ्होंने बलिष्ठ व वीर युवाओं को शामिल कर प्रथम सिख सेना का गठन किया था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु हरगोबिंद जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म

अमृतसर के वडाली में 05 जुलाई 1595 को गुरु हरगोबिंद का जन्म हुआ था। वह गुरु अर्जुन देव और माता गंगा के पुत्र थे। 25 मई 1606 को वह अपने पिता गुरु अर्जुन देव की शहादत के कुछ दिन पहले 11 साल की उम्र में छठे गुरु बने थे। गुरु हरगोबिंद ने विज्ञान, खेल और धर्म का अध्ययन किया था। बता दें कि गुरु हरगोबिंद की धार्मिक शिक्षाओं की देखरेख की जिम्मेदारी बाबा बुद्ध को सौंपी गई थी।

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जहांगीर को हुआ भूल का एहसास

दरअसल, एक बार मुगल शासक जहांगीर ने धोखे से गुरु हरगोबिंद को कैद कर लिया। इस दौरान उसने गुरु हरगोबिंद को ग्वालियर के किले में बंदी बनाकर रखा। जब उसको अपनी भूल का एहसास हुआ, तो उसने गुरु हरगोबिंद को रिहा करने का आदेश दिया। लेकिन गुरु ने जहांगीर के सामने एक शर्त रखी कि वह तभी बंदीगृह से बाहर आएंगे, जब मुगल शासक जहांगीर पहले से बंदी बने अन्य 52 राजाओं को भी छोड़ेगा। 

जिसके बाद बंदी हिंदू राजाओं को मुक्त करवाने के बाद ही गुरु हरगोबिंद बाहर आए। जब वह अमृतसर पहुंचे तो उनका धूमधाम से स्वागत किया गया। संयोग से उस दिन दीपावली भी थी। तब से दीपावली के दिन श्री हरिमंदिर साहिब में दीपमाला की जाती है। साथ ही सिख समुदाय इस दिन को बंदीछोड़ दिवस के तौर पर भी मनाते हैं। मुगल शासक जहांगीर गुरु हरगोबिंद से इतना प्रभावित हुआ कि वह जब तक जीवित रहा तब तक उसने गुरु साहिब से मधुर संबंध बनाकर रखे।

धर्म प्रचार

धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए गुरु हरगोबिंद ने तमाम यात्राएं की और लोगों को परमात्मा से जोड़ने का काम किया। उन्होंने महिराज नामक स्थान बसाया था। जहां पर गुरु साहिब के दरबार में भाई काला नामक एक श्रद्धालु अपने दो भतीजों के साथ पहुंचा। जिनमें से एक बालक ने वस्त्र नहीं पहन रखे थे और वह गुरु साहिब के सामने आकर पेट बजाने लगा। तब गुरु साहिब ने ऐसा करने का कारण पूछा तो भाई काला ने बताया कि वह अनाथ है और भूखा भी है। तब उस बच्चे को गुरु हरगोबिंद ने तमाम वर दिए। बाद में आगे चलकर उसी फूल के वंशज पंजाब की नाभा, पटियाला व जींद रियासतों के शासक बनें।

मुगलों से पुन: टकराव

जहांगीर की मृत्यु के बाद शाहजहां अगला मुगल शासक बना। शाहजहां के शासक बनने के बाद सिखों और मुगलों में फिर से टकराव होने लगा। शाहजहां को गुरु हरगोबिंद साहिब का बढ़ता प्रभाव सहन नहीं हो रहा था। जिसके चलते उसने साल 1628 में मुगल सेना को अमृतसर में आक्रमण के लिए भेज दिया। लेकिन इस युद्ध में मुगल सेना को मुंह की खानी पड़ी। वहीं आने वाले सालों में मुगलों और सिखों के बीच तीन युद्ध हुए इन सभी युद्धों में गुरु हरगोबिंद साहिब ने विजय प्राप्त की। एक तरह से यह धर्म युद्ध थे। अपने जीवन काल में गुरु साहिब ने तमाम नगर बसाए, सरोवन बनवाए औऱ लोगों को ईश्वर से जोड़ने का काम किया।

मृत्यु

अपने अंतिम समय में गुरु हरगोबिंद ने कश्मीर की पहाड़ियों में शरण ली। वहीं 19 मार्च 1644 में पंजाब के कीरतपुर में गुरु हरगोबिंद ने अपनी देह का त्याग कर दिया।

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