Jan Gan Man: धर्म के आधार पर आरक्षण को लेकर सरदार पटेल और बाबा साहेब अम्बेडकर ने क्या कहा था?

Sardar Patel Baba Saheb
ANI

देखा जाये तो कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम ठेकेदारों को जो आरक्षण दिया है वह संवैधानिक प्रावधानों के सरासर खिलाफ तो है ही साथ ही संविधान सभा में धर्म के आधार पर आरक्षण के खिलाफ जो सहमति बनी थी यह उसका भी घोर उल्लंघन है।

पिछले साल 26 नवंबर 2024 को संविधान अंगीकार किए जाने की 75वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई गयी थी। उस दौरान दिल्ली में संविधान सदन के केंद्रीय कक्ष से लेकर देश के सभी राज्यों तक कई कार्यक्रम आयोजित किये गये थे। उन कार्यक्रमों में विपक्ष के नेताओं ने कई बड़ी-बड़ी बातें कहते हुए सरकार को चेताया था कि संविधान विरोधी कोई भी कार्य बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। विपक्ष के नेताओं ने सरकार को चेताते हुए कहा था कि संविधान की भावना के अनुरूप काम नहीं होने पर सड़कों पर उतर कर विरोध भी किया जायेगा। लेकिन विपक्ष की कथनी और करनी में कितना फर्क है यह कर्नाटक के हालिया प्रकरण से सामने आ गया है। कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम ठेकेदारों को सरकारी आरक्षण में चार प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला विधानसभा में पास करा लिया है जिसको लेकर पूरे देश में बड़ा राजनीतिक हंगामा मचा हुआ है। धर्म के आधार पर दिया गया यह आरक्षण कोर्ट में टिक पाता है या नहीं यह तो समय ही बतायेगा लेकिन कर्नाटक सरकार ने जो शुरुआत की है उस पर यदि विपक्षी दलों द्वारा शासित अन्य राज्य भी आगे बढ़े तो यह धर्मनिरपेक्ष भारत की छवि पर गहरा आघात होगा।

देखा जाये तो कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम ठेकेदारों को जो आरक्षण दिया है वह संवैधानिक प्रावधानों के सरासर खिलाफ तो है ही साथ ही संविधान सभा में धर्म के आधार पर आरक्षण के खिलाफ जो सहमति बनी थी यह उसका भी घोर उल्लंघन है। कर्नाटक सरकार को पता होना चाहिए कि बाबा साहेब बीआर आंबेडकर ने कहा था कि धार्मिक आधार पर कोई आरक्षण नहीं हो सकता है। कर्नाटक सरकार और कांग्रेस पार्टी को यह भी पता होना चाहिए कि संविधान सभा में बहस के दौरान सरदार पटेल ने 28 अगस्त 1947 को कहा था कि भारत में मजहब के आधार पर कुछ नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा था कि मजहब के आधार पर देश का विभाजन हो चुका है। मजहब के आधार पर जिनको कुछ चाहिए था वो पाकिस्तान जा चुके हैं। उन्होंने कहा था कि जिनको मजहब के आधार पर कुछ चाहिए वह पाकिस्तान चले जायें।

इसे भी पढ़ें: Chai Par Sameeksha: मुस्लिम ठेकेदारों को आरक्षण देना वोटबैंक के ठेके अपने नाम कराने की कोशिश है

दूसरी ओर, कर्नाटक सरकार के फैसले को भाजपा ने राजनीतिक दुस्साहस बताया है। लेकिन सवाल उठता है कि यह दुस्साहस करने की राजनीतिक शक्ति कहां से आई? इसका जवाब है मॉइनारिटी कमिशन एक्ट 1992। हम आपको बता दें कि तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए 1992 में यह एक्ट लाया गया था। संविधान में अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा कहीं नहीं दी गयी है लेकिन इस एक्ट के माध्यम से अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा गढ़ी गयी और एक खास वर्ग को वोट बैंक में तब्दील कर अपने राजनीतिक हित साधने की परम्परा शुरू हुई। भारत का संविधान कहता है कि धर्म के आधार पर सरकारी खजाने से कोई मदद नहीं दी जा सकती लेकिन मॉइनारिटी कमिशन एक्ट के जरिये मुसलमानों को धर्म के आधार पर तमाम रियायतें देने का रास्ता खोला गया। इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि जब तक इस एक्ट को खत्म नहीं किया जायेगा तब तक धर्म के आधार पर रियायतें और सहूलियतें देने का मार्ग खुला रहेगा।

हम आपको यह भी बता दें कि संविधान में अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए एक सकारात्मक तंत्र प्रदान किया गया है। कुछ वर्षों पहले संविधान में संशोधन किया गया और आर्थिक मानदंड को भी आधार बनाया गया, जिसे बाद में अदालतों ने बरकरार रखा।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़