विकास के बजाए विवादित मुद्दे बन गए हैं सत्ता का आसान रास्ता

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गौरतलब है कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के संभल जिले में मंदिर-मस्जिद विवाद पर नेताओं ने जम कर रोटियां सेकी। इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर हिंसा में पांच लोग मारे गए। इसके बाद देश के दूसरे हिस्सों में इसी तरह के विवाद पैदा हो गए।

बेरोजगारी, गरीबी, अपराध, लिंगभेद, चिकित्सा और आधारभूत जैसी सुविधाओं के समाधान के बजाए देश के नेता इतिहास के गढ़े मुर्दे उखाड़ कर वोट पाने का आसान रास्ता चुन रहे हैं। इसी क्रम में नया विवाद महाराणा सांगा पर दिए गए बयान पर पैदा हुआ है। समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में कहा कि बीजेपी के लोगों का ये तकियाकलाम बन गया है कि इनमें बाबर का डीएनए है। सपा सांसद रामजी लाल ने कहा कि मैं जानना चाहूंगा कि बाबर को आखिर लाया कौन? इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर को राणा सांगा लाया था। उन्होंने कहा कि मुसलमान अगर बाबर की औलाद हैं तो तुम लोग उस गद्दार राणा सांगा की औलाद हो, ये हिन्दुस्तान में तय हो जाना चाहिए कि बाबर की आलोचना करते हो, लेकिन राणा सांगा की आलोचना नहीं करते?   

सांसद सुमन की राज्यसभा में की गई टिप्पणी पर केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि जो लोग आज नहीं बल्कि 1000 वर्षों के भारत के इतिहास की समीक्षा करते हैं, वे बाबर और राणा सांगा की तुलना कभी नहीं कर सकते और उन्हें एक ही तराजू पर नहीं रख सकते। महाराणा सांगा ने आजादी की अलख जगाई थी। उन्होंने भारत को गुलामी से बचाया और साथ ही भारत की संस्कृति को सनातनी बनाए रखने में भी अहम योगदान दिया। कुछ क्षुद्र और छोटे दिल वाले लोग ऐसी बातें करते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ऐसी चर्चाओं की कोई गुंजाइश नहीं है। यह पहला मौका नहीं है जब नेताओं ने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए इस तरह के विवादों को हवा दी है। इससे पहले भी ऐतिहासिक मुद्दों पर देश में दरार डालने के प्रयास होते रहे हैं। 

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बॉलीवुड के निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत को लेकर भी काफी विवाद हुआ था, जिसमें राजपूत समुदाय ने फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया था। इस विवाद का परिणाम यह निकला कि चित्तौडग़ढ़ के किले में स्थित 'पद्मावती' महल में अराजक तत्वों ने उन शीशों को तोड़ दिया, जिनके बारे में कहा जाता है कि दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इन्हीं आईनों के जरिए राजपूत रानी पद्मावती को देखा था। इसी तरह तीन साल पहले बॉलीवुड फिल्म पानीपत से शुरू हुआ विवाद एक टीवी धारावाहिक तक आ पहुंचा। धारावाहिक में खांडेराव होल्कर से पूर्व महाराजा सूरजमल को युद्ध में हारना दिखाया गया। वहीं, इतिहासकारों का दावा है कि पूर्व महाराजा सूरजमल कभी युद्ध नहीं हारे। बल्कि खांडेराव होल्कर की मौत उनके साथ युद्ध में हुई थी। इसको लेकर रूपवास व कुम्हेर थाने में दो अलग-अलग एफआइआर दर्ज कराई गई। मैसूर के राजा रहे टीपू सुल्तान की 10 नवंबर को मनाई जाने वाली जयंती को लेकर भी खूब कलह हुआ है। मैसूर का शेर कहलाने वाले टीपू की जयंती की शुरुआत कांग्रेस के शासन में हुई लेकिन बीजेपी इसका विरोध करती रही।

कर्नाटक में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने को लेकर नौबत यहां तक आ गई कि कई शहरों में सुरक्षा को देखते हुए धारा 144 लगाई गई और विरोध प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया। भारतीय जनता पार्टी और कुछ हिन्दू संगठनों ने सरकार से मांग की थी कि वह टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का कार्यक्रम और उन्हें महिमामंडित करने की योजना रोक दें। बीजेपी की निगाह में टीपू सुल्तान धार्मिक रूप से कट्टर और हिन्दू विरोधी शासक था। भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी ने उत्तर भारत के 9वीं सदी के राजपूत शासक सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया और उन्हें एक गुज्जर बताया। दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) ने जौनपुर गांव में सम्राट मिहिर भोज की एक प्रतिमा भी समर्पित की, जिसमें उन्हें गुज्जर बताया गया। इसका राजपूत समुदाय ने कड़ा विरोध किया। बिहार में गठबंधन से पहले भाजपा ने नीतीश सरकार पर इतिहास के छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया था। भाजपा ने यहां तक कहा था कि सरकार ने प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह का अपमान किया है। बिहार के पूर्व मंत्री भीम सिंह ने बिहार सरकार खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मोहम्मद युनूस को बिहार के प्रथम प्रधानमंत्री बताते हुए उनके जन्म दिवस पर राजकीय जयंती समरोह मनाए जाने को बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह का अपमान बताया था। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम तुष्टिकरण के तहत इतिहास के साथ छेडछाड की जा रही है।   

गौरतलब है कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के संभल जिले में मंदिर-मस्जिद विवाद पर नेताओं ने जम कर रोटियां सेकी। इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर हिंसा में पांच लोग मारे गए। इसके बाद देश के दूसरे हिस्सों में इसी तरह के विवाद पैदा हो गए। अजमेर में दरगाह में हिंदू मंदिर का दावा करते स्थानीय अदालत में मामला दायर किया गया। इसी तरह देश के दूसरे हिस्सों में भी मस्जिदों में मंदिर होने को लेकर अदालतों में मामले दायर किए गए। नेताओं ने तभी पैर पीछे खींचे जब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे विवादों पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब तक पूजा स्थल अधिनियम की वैधता पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक देश में मंदिर-मस्जिद विवादों से जुड़े नए मुकदमे दर्ज नहीं किए जा सकते, और न ही कोई चल रहा मामला सर्वेक्षण या अंतिम आदेश के साथ आगे बढ़ सकता है।   

यह विवाद पूरी तरह थमा भी नहीं कि महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद पैदा हो गया। इस पर भाजपा और विपक्षी दलों ने आरोप-प्रत्यारोप लगा कर देश का माहौल गर्माने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि नागपुर में हिंसा भड़क उठी। इसमें कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। आम लोगों को कर्फ्यू के कारण भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। ऐसे विवादों की चपेट में अक्सर देश का मजदूर, गरीब और कामकाजी वर्ग आता है। इन विवादों की जड़ में आसान सत्ता की राजनीति की चाहत है। दरअसल नेताओं को पता है कि देश की बुनियादी समस्याओं का समाधान आसान नहीं है, जबकि ऐसे विवादों के जरिए लोगों को बरगला लाकर सत्ता आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

- योगेन्द्र योगी

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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