नेहरू ने अयूब खान के प्रस्ताव को किया खारिज, और फिर कुछ इस तरह चीन की गोद में जा बैठा पाकिस्तान
चीन के खिलाफ पाकिस्तान के शासक ने भारत से मिलकर चीन की नीति का मुकाबला करने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन उस वक्त के भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पाकिस्तान के सैन्य शासक अयूब खान के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
भारत में रह रहे किसी भी नागरिक से ये सवाल पूछा जाए कि भारत का दुश्मन नं 1 कौन है? अब तक 70 वर्षों तक ज्यादातर लोगों की जुबान पर पाकिस्तान का नाम आता। लेकिन अब वक्त बदल गया है और हमारा दुश्मन नं 1 पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है। जिन भारतीय सैनिकों की नजरे अब से पहले पाकिस्तान पर गड़ी रहती थी अब उन्हीं सैनिकों की पैनी निगाहें सबसे पहले चीन पर हैं और फिर पाकिस्तान पर। आजादी के बाद से भारत की रक्षा नीति में हालिया दिनों में ये बड़ा बदलाव देखने को मिला है। लेकिन क्या आपको पता है कि चीन और पाकिस्तान के बीच का ये रिश्ता क्या कहलाता वाला गठजोड़ जैसा हालिया दिनों में देखने को मिल रहा है वैसा इतिहास में पहले नहीं था। यहां तक की चीन के खिलाफ पाकिस्तान के शासक ने भारत से मिलकर चीन की नीति का मुकाबला करने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन उस वक्त के भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पाकिस्तान के सैन्य शासक अयूब खान के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
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अयूब खान की पेशकश
यूपीए सरकार पार्ट 1 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) रहे जेएन दीक्षित द्वारा लिखी गई किताब भारत-पाकिस्तान संबंध (युद्ध और शांति में) के जरिये पाक सैन्य शासक के इस प्रस्ताव के बारे में उल्लेख किया है। किताब के अनुसार अयूब खान ने 24 अप्रैल 1959 को ज्वाइंट डिफेंस पैक्ट यानी संयुक्त रक्षा समझौता का प्रस्ताव भारत के सामने रखा था। टोक्यो में तैनात पाकिस्तान के राजदूत मोहम्मद अली के हवाले से उन्होंने लिखा था कि उसी वर्ष मार्च के महीने में दलाई लामा तिब्बत से भारत में शरण लेने आए थे। चीन की विस्तारवाद नीति के प्रति आगाह करते हुए अयूब खान ने भारत के समक्ष संगठित होकर संयुक्त रक्षा समझौते के तहत चीन की इस नीति का मुकाबला करने की बात कही थी।
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नेहरू ने ठुकराया प्रस्ताव
भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अयूब खान के प्रस्ताव को ठुकराते हुए संसद में बताया था कि हम पाकिस्तान के साथ एक जैसी रक्षा नीति नहीं चाहते। ऐसा करना पाकिस्तान के साथ सैन्य गठबंधन बनाने जैसा होगा। जेएन दीक्षित के अनुसार नेहरू इस समझौते की पेशकश को जम्मू कश्मीर पर सुलह की कोशिश के तौर पर देख रहे थे। हालांकि आगे चलकर अयूब खान ने सितंबर 1959 में इस बातो को खुद ही स्वीकार कर लिया था कि उन्होंने जम्मू कश्मीर जैसे बड़े मसले को सुलझाने के लिए ये प्रस्ताव रखा था।
चीन के पाले में पाकिस्तान
1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के बाद तीनों देशों के आपसी समीकरण बिल्कुल अलग हो गए। चीन जहां पाक के साथ अपने सीमा संबंधी मसले सुलझाने के बाद उसे अपने पाले में लाने के प्रयास में सफल हो गया। जिसकी शुरुआती बानगी 1963 में 17 जुलाई को देखने को मिली जब जुल्फिकार अली भुट्टो ने नेशनल असेंबली में खुले तौर पर कहा था कि भारत के साथ युद्ध के मामले में पाकिस्तान अकेला नहीं होगा। एशिया का सबसे शक्तिशाली देश पाकिस्तान की सहायता करेगा। सात दशक बाद चीन और पाकिस्तान अपनी दोस्ती की 70वीं सालगिरह मना रहे हैं। पाकिस्तान चीन के साथ मजबूती के साथ खड़ा है और दोनों का दुश्मन नंबर 1 भारत ही है।
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