Gujarat High Court ने फिल्म महाराज की ओटीटी रिलीज पर रोक एक दिन के लिए बढ़ाई
बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान के बेटे जुनैद की पहली फिल्म “महाराज” पर गुजरात उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक एक दिन के लिए बढ़ा दी, जिसे पिछले सप्ताह ओटीटी मंच ‘नेटफ्लिक्स’ पर रिलीज किया जाना था। न्यायमूर्ति संगीता विसेन की एकल पीठ ने प्रतिवादियों, नेटफ्लिक्स और यशराज फिल्म्स तथा याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनीं।
अहमदाबाद । गुजरात उच्च न्यायालय ने मंगलवार को बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान के बेटे जुनैद की पहली फिल्म “महाराज” पर अंतरिम रोक एक दिन के लिए बढ़ा दी, जिसे पिछले सप्ताह ओटीटी मंच ‘नेटफ्लिक्स’ पर रिलीज किया जाना था। न्यायमूर्ति संगीता विसेन की एकल पीठ ने प्रतिवादियों, नेटफ्लिक्स और यशराज फिल्म्स तथा याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनीं और मामले को बुधवार को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। अदालत ने कहा कि फिल्म की रिलीज पर अंतरिम रोक बुधवार तक जारी रहेगी।
पुष्टिमार्ग संप्रदाय के आठ सदस्यों ने फिल्म के रिलीज के खिलाफ याचिका दायर की है, क्योंकि उन्हें फिल्म के बारे में लेख मिले हैं। यह फिल्म 1862 के मानहानि के मुकदमे पर आधारित है, जिस पर ब्रिटिश न्यायाधीशों ने सुनवाई की थी और फैसला सुनाया था। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि मानहानि मामले का फैसला करने वाली ब्रिटिशकालीन अदालत ने “हिंदू धर्म की निंदा की है तथा भगवान कृष्ण के साथ-साथ भक्ति गीतों और भजनों के खिलाफ गंभीर रूप से ईशनिंदा वाली टिप्पणियां की हैं।” नेटफ्लिक्स और प्रोडक्शन कंपनी यशराज फिल्म्स ने अदालत से फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने वाले अंतरिम आदेश को रद्द करने की मांग की।
नेटफ्लिक्स की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की यह दलील कि सरकार द्वारा 24 घंटे से भी कम समय में फिल्म को रोकने में विफल रहना “बिल्कुल बेतुका” है। उन्होंने कहा कि फिल्म के सेंसरशिप प्रमाणपत्र को रद्द करने के लिए याचिकाकर्ताओं की दूसरी प्रार्थना, जो एक वर्ष से अधिक पुरानी है, गलत है, क्योंकि ओटीटी पर फिल्म की रिलीज के लिए इस तरह के प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने कहा कि याचिका का कारण “पूरी तरह से मनगढ़ंत और कृत्रिम” है। रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं में से एक, “अहमदाबाद के एक प्रमुख व्यवसायी” ने न तो उस किताब के खिलाफ कोई कदम उठाया जिस पर फिल्म आधारित है और न ही इंटरनेट पर उपलब्ध विषय पर सामग्री के खिलाफ। उन्होंने कहा कि यह फिल्म कानूनी इतिहास पर आधारित है, जिसे मिटाया नहीं जा सकता। मानहानि का 1862 का मामला वैष्णव धार्मिक नेता और समाज सुधारक करसनदास मूलजी के बीच टकराव पर केंद्रित था, जिन्होंने एक गुजराती साप्ताहिक में एक लेख में आरोप लगाया था कि धर्मगुरु के अपनी महिला भक्तों के साथ यौन संबंध थे।
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