एमएम अंसारी की सरकार को नसीहत, बोले- J&K पर स्थापित नियमों के तहत सभी पक्षों से खुले मन से करें बातचीत

MM Ansari

संप्रग सरकार के दौरान कश्मीर मामलों को लेकर वार्ताकार रहे एम एम अंसारी ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक सेवाओं के कार्यों से जुड़े हिन्दुओं, सिखों, मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और उनकी हत्या की जा रही है। इसके दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।

नयी दिल्ली। पिछले कुछ दिनों में कश्मीर घाटी में आतंकवादियों द्वारा कुछ हिंदुओं और सिखों की हत्या किये जाने के बाद जम्मू और कश्मीर का माहौल एक बार फिर तनाव से घिर गया है। लोगों के मन में इन हिंसक घटनाओं को लेकर कई सवाल हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि घाटी के अल्पसंख्यकों जैसे कश्मीरी हिंदू और सिखों के ख़िलाफ़ हिंसा की वारदातों में अचानक वृद्धि क्यों हुई? इस बारे में संप्रग सरकार के दौरान कश्मीर मामलों को लेकर वार्ताकार रहे एम एम अंसारी से ‘‘के पांच सवाल” एवं उनके जवाब:​- 

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सवाल: हाल के दिनों में जम्मू कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है, कश्मीरी पंडितों सहित निर्दोष नागरिकों की आतंकियों द्वारा हत्या करने के मामले सामने आए हैं, आप इस घटनाक्रम को कैसे देखते हैं?

जवाब : यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक सेवाओं के कार्यों से जुड़े हिन्दुओं, सिखों, मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और उनकी हत्या की जा रही है। इसके दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन इसका दुखद पहलु यह भी है कि सरकार नागरिकों, स्कूलों एवं स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को सुरक्षा देने में विफल हो रही है जो इन चरमपंथी गुटों द्वारा निशाना बनाये जा रहे हैं। दुर्भाग्य से, ऐसी घटनाओं से कश्मीरियों को संदेह की नजर से देखा जाता है। लोक सुरक्षा कानून (पीएसए), सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम, गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम जैसे कानूनों के अनियंत्रित इस्तेमाल से भी स्थितियां प्रभावित हो रही हैं। ऐसे में सरकार को अपनी नीतियों की समीक्षा कर उनपर पुनर्विचार करने की जरूरत है।

सवाल : आप जम्मू कश्मीर के संबंध में वार्ताकार समूह के सदस्य रहे हैं, आपकी रिपोर्ट में कश्मीरी पंडितों सहित विस्थापितों के पुनर्वास एवं सुरक्षा के लिए क्या सुझाव दिये गये थे?

जवाब : पिछले तीन दशकों में लगातार सरकारों ने कश्मीरी पंडितों सहित घाटी से पलायन करने वाले सभी लोगों की वापसी एवं पुनर्वास का वादा किया। ‘‘जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ नयी संविदा’’ नामक हमारी रिपोर्ट में हमने सिफारिश की थी कि सरकार को युद्ध एवं आतंकवाद से प्रभावित लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिये गंभीर प्रसास करना चाहिए जिनमें हिंसा के खतरे के कारण पलायन करने वाले लोग एवं शरणार्थी शामिल हैं। इन सरकारों ने कश्मीरी पंडितों के लिये शायद ही कुछ किया और वर्तमान सरकार से भी इन्हें निराशा हाथ लगी। 

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सवाल : वर्तमान सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद क्षेत्र में आतंकवाद खत्म होने और विकास होने की बात कही थी, आप इससे क्या सहमत हैं?

जवाब : अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को मामूली स्वायत्ता देता था जिसे एकतरफा ढंग से पांच अगस्त 2019 को खत्म कर दिया गया। यह संवैधानिक प्रावधान इस विचार से लाया गया था कि एक तरफ विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाया जाए और दूसरी तरफ आतंकवाद पर लगाम लगाई जाए। लेकिन अनुच्छेद 370 को खत्म करने और पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में पुनर्गठित करने के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़े हैं। जम्मू कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है लेकिन इसका अंतरराष्ट्रीयकरण हुआ है और इसके दूरगामी प्रभाव होंगे। इसके साथ ही आवासीय नियमों में बदलाव को लेकर भी निर्णय किये गए हैं। ऐसे फैसलों से कानून एवं व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है जिनका अब अनुभव हो रहा है।

सवाल : पाकिस्तान से सीमापार आतंकवाद जम्मू कश्मीर के विकास में बड़ी बाधा माना जाता है, इससे नीतिगत एवं सामुदायिक स्तर पर कैसे निपटा जा सकता है?

जवाब : जम्मू कश्मीर की स्थिति ‘युद्ध क्षेत्र’ की तरह हो गई है जिसके कारण विकास से जुड़ी नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सकता है। भारत और पाकिस्तान के संबंध काफी खराब हो गए हैं और दोनों के बीच लगातार आरोप-प्रत्यारोप चलता रहता है। इन आरोपों में आतंकी गतिविधियों के वित्त पोषण का विषय प्रमुख है। पाकिस्तान, चीन के काफी करीब चला गया है तो दूसरी तरफ भारत और अमेरिका में सहयोग बढ़ा है। ऐसे में बातचीत के जरिये समाधान निकालने की बजाए क्षेत्रीय संघर्ष की स्थितियां बनती दिखती हैं, ऐसे में समाधान एवं विकास की संभावना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

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सवाल : जम्मू कश्मीर के संबंध में बड़े मुद्दे क्या हैं, आपका सरकार को क्या सुझाव है?

जवाब : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा था कि न गाली से, न गोली से बल्कि गले लगाने से कश्मीर समस्या हल होगी। इस बड़ी सोच वाले विचार के अनुरूप लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं एवं स्थापित नियमों का पालन करते हुए सरकार को गुपकार गठबंधन की घोषणा पर विचार करते हुए सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से खुले मन से बातचीत करनी चाहिए। इस क्षेत्र में टिकाऊ शांति एवं विकास सुनिश्चित करे एवं निर्णय लेने की प्रक्रिया में लोगों की लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए। सरकार को चाहिए कि शुरुआती कदम उठाते हुए तत्काल लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करे, राज्य का दर्जा वापस करे और चुनाव कराए।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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