Ab ki baar, 400 paar: वोटों में इजाफे से होगा सीटों का मुनाफा, 370 सीटें ही नहीं, 50 % वोट के आंकड़ों को छूना है मकसद
182 की चौखट पर हांफने वाली बीजेपी ने एक नहीं दो-दो दफा अपने बूते बहुमत के आंकड़े को पार किया। दसों दिशाओं से आने वाली जीत आती चली गई।
चुनाव के नतीजों में उलटफेर कर देने वाली लहरे जिन्हें देश ने देखा, वोटर के मन को बदल देने वाली लहरे जिसे साल 2014 में पूरी जनता ने देखा। विपक्ष को सत्ता में लाकर बिठा देने वाली लहरे और सत्ता को विपक्ष में बिठाने वाली लहरे से भी मुखातिब हुआ देश। देश की सबसे पुरानी पार्टी को इतिहास की राजनीति का डब्बा बना देने वाली लहरों की तपिश को जनतंत्र ने महसूस किया। जिस भाजपा के बारे में कहा जाता था कि 'बैठक, भोजन और विश्राम... भाजपा के यह तीन काम' इस धारणा को 2014 और फिर 2019 के चुनाव में ध्वस्त करके रख दिया गया। 182 की चौखट पर हांफने वाली बीजेपी ने एक नहीं दो-दो दफा अपने बूते बहुमत के आंकड़े को पार किया। दसों दिशाओं से आने वाली जीत आती चली गई। मोदी के अश्वमेध रथ पर अमित शाह जैसा सारथी घर्र-घर्र करते हुए आगे बढ़े तो उसकी चाप से हिन्दुस्तान का मुकद्दर रचने चले नए सिंकंदर की जयजयकार सुनाई पड़ने लगी। भारतीय जनता पार्टी ने अपने बढ़ते प्रभाव का प्रदर्शन करते हुए 2019 में 224 सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोटों के साथ जीत दर्ज की, जो 2014 में 136 से काफी अधिक रही। लेकिन जैसे-जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं, भाजपा सरकार ने अपने आत्मविश्वास को बढ़ाते हुए सीट लक्ष्य की घोषणा की है जो कि पिछली बार जीते गए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या से 67 अधिक है। पीएम मोदी ने 2024 में तीसरी बार बीजेपी की सरकार बनने का विश्वास जताते हुए आगामी लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सौ सवा सौ दिन रह गए हैं। मैं आमतौर पर आंकड़ों के चक्कर में नहीं पड़ता हूं, लेकिन देश का मिजाज देख रहा हूं। मुझे विश्वास है कि देश बीजेपी को 370 सीटें अवश्य देगा और एनडीए का आंकड़ा 400 के पार रहेगामें अपने तीसरे कार्यकाल के लिए योजनाओं की बात कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के लिए 370 सीटों का लक्ष्य और एनडीए के लिए 400 से अधिक सीटों का लक्ष्य रखा है, तो उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को कथित तौर पर अगली सरकार में अपने वर्तमान मंत्रालयों के लिए 100-दिवसीय योजना तैयार करने के लिए कहा है। साथ ही, भाजपा नए गठबंधनों के साथ-साथ छोटे-बड़े अन्य दलों को अपने पक्ष में लाने के लिए आक्रामक तरीके से प्रयास कर रही है। पार्टी नेताओं ने कहा कि आंध्र प्रदेश में टीडीपी-जनसेना पार्टी और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल के साथ सौदे लगभग तय हो चुके हैं, जबकि किसानों के विरोध प्रदर्शन के कारण लगे झटके के बावजूद अकाली दल के साथ बैक-चैनल बातचीत अभी भी जारी है। चुनावी वर्ष में पूर्व प्रधानमंत्रियों पी वी नरसिम्हा राव और चौधरी चरण सिंह के साथ-साथ एम एस स्वामीनाथन और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की श्रृंखला को भी विशिष्ट राजनीतिक संदेशों के उद्देश्य से देखा गया। जबकि भाजपा के प्रतिद्वंद्वी इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि ये संख्या बल जुटाने के लिए पार्टी की "हताशा" को दर्शाता है, नेताओं का कहना है कि इस चरण-दर-चरण संयोजन की एक विधि है न केवल व्यापक बहुमत हासिल करना है बल्कि वोट शेयर के मामले में 50% के करीब आना भी है। विपक्ष का भारतीय गुट अक्सर इस तथ्य से पीछे हट जाता है कि 64% से अधिक मतदाताओं ने 2019 में भाजपा के गठन को उचित ठहराने के लिए उसे वोट नहीं दिया।
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जब कांग्रेस को मिले 49 % वोट
भाजपा सरकार के पास एक विशिष्ट आंकड़ा है जिसे वह पार करने की उम्मीद कर रही है। साल 1984 जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश की राजनीति की तस्वीर बदली। कांग्रेस ने सहानुभूति को बटोरने के लिए पूरे जोर-शोर से नारा लगाया "जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा।" इस नारे ने कांग्रेस को भारी जीत दिलाई। 1984-85 के दौर में हुए आठवें लोकसभा चुनाव में इस नारे के साथ ही राजीव गांधी के समर्थन में गढ़े गए नारे "उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं" ने कांग्रेस को पूरी ताकत दी और उसे 49.10% वोट मिले थे, 409 सीटों पर उसे कामयाबी मिली। लाल कृष्ण आडवाणी की शब्दों में कहे तो ये लोकसभा का नहीं अपेतु शोकसभा का चुनाव था। 2019 में जीते गए 37.36% वोटों से बढ़कर लगभग 50% तक पहुंचने के लिए, भाजपा को लगभग हर राज्य में अपना वोट शेयर बढ़ाने की आवश्यकता होगी। हालांकि मोदी ने स्वयं संसद के पटल से 370 सीटों के लक्ष्य का खुलासा किया है, लेकिन वरिष्ठ नेता स्वीकार करते हैं कि राह कठिन बनी हुई है, यह देखते हुए कि पार्टी पहले ही हिंदी पट्टी और अन्य पारंपरिक गढ़ों में अपनी बढ़त हासिल कर चुकी है।
हिंदी पट्टी में पहले ही स्ट्राइक रेट हाई
भाजपा ने 2019 में राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में सभी सीटें जीत ली थीं, मध्य प्रदेश में सिर्फ एक (छिंदवाड़ा) और छत्तीसगढ़ में दो (बस्तर, कोरबा) सीटें हार गईं, जबकि एनडीए गठबंधन ने बिहार में एक सीट किशनगंज को छोड़कर सभी सीटें जीती थीं। सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 80 में से 62 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की थी और राम मंदिर अभिषेक द्वारा बनाई गई सद्भावना के बल पर इसे बनाए रखने के लिए पार्टी पूरी तरह से आश्वस्त है। यहां तक कि एकमात्र दक्षिणी राज्य कर्नाटक में जहां एक प्रमुख पार्टी बीजेपी ने 2019 में 29 में से 28 सीटों पर फतह हासिल किया था। एकमात्र शेष सांसद सुमलता अंबरीश (स्वतंत्र) ने लोक में मोदी सरकार को अपना समर्थन दिया था। 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद, भाजपा को जद (एस) के साथ सहयोगी के रूप में गठबंधन करने के बाद अपना प्रभुत्व बनाए रखने की उम्मीद है।
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पूर्वोत्तर में 25 सीटों पर क्लीन स्पीप
पूर्वोत्तर के राज्यों की कुल 25 लोकसभा सीटों में से अभी बीजेपी 11 पर काबिज है। लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों की वजह से असम में ही इसके बढ़ने की उम्मीद है। असम में कुल 14 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से बीजेपी के पास 9 सीटें हैं। जहां 3 से 4 सीटें बढ़ सकती हैं। बीजेपी की कोशिश असम में अपनी 9 सीटों को बढ़ाकर 12 तक ले जाना। अरुणाचल प्रदेश से लकर मेघालय और त्रिपुरा सहित पूर्वोत्तर की सभी 25 सीटों को बीजेपी गठबंधन अपने पास रखने की फिराक में है।
मिशन साउथ पर फोकस, क्यों 131 सीट अहम
भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी ओडिशा और तेलंगाना में भी अपनी संख्या बढ़ाएगी, जहां अपनी उपस्थिति सुधारने के उसके प्रयास बहुत सफल नहीं रहे हैं। हालाँकि, अगर ये सभी संख्याएँ सही रहती हैं, तो भी भाजपा की संख्या 370 को पार नहीं कर सकती है। इसलिए आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में गठबंधन पर जोर दिया जा रहा है, जहां भले ही भाजपा सीटें नहीं जीतती हो, लेकिन वह इन गठबंधनों के बल पर वोट हासिल कर सकती है। हाल ही में आयोजित भाजपा के राष्ट्रीय सम्मेलन में बूथ स्तर तक चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं के लिए विशिष्ट कार्य निर्धारित किए गए। पार्टी अब संदेश को मजबूत करने के लिए राज्य, जिला, ब्लॉक और बूथ स्तर पर बैठकें करेगी। पार्टी सूत्रों ने कहा कि भाजपा अपने संदेश को भी संशोधित करेगी, खासकर हिंदुत्व पर क्योंकि राम मंदिर उद्घाटन का आधा काम पहले ही पूरा हो चुका है। उसे एहसास है कि जहां आक्रामक हिंदुत्व हिंदी पट्टी राज्यों में उसके पीछे वोटों को मजबूत कर सकता है, वहीं ये दक्षिण में मतदाताओं को अलग-थलग कर सकता है, जहां संदेश इसके बजाय मोदी की लोकप्रियता पर केंद्रित होगा। नेताओं ने कहा कि लगभग बहुमत के साथ जीत के माध्यम से विपक्ष को एक निर्णायक संदेश देने के अलावा, मोदी का मानना है कि इस तरह की सकारात्मक संख्या उन उपायों के रास्ते में शेष बाधाओं को दूर कर देगी जो वह चाहते हैं कि उनकी अगली सरकार उठाए। दक्षिण भारत की 131 सीटों में से बीजेपी अगर 60 से 70 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती है तभी जाकर पीएम मोदी के 400 पार का सपना साकार हो सकता है। कर्नाटक में बीजेपी ने जेडीएस से गठबंधन करके राज्य की 29 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए तैयारी कर रखी है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बीजेपी ने एक बार फिर टीडीपी और पवन कल्याण की जनसेना पार्टी के साथ गठबंधन कर रखा है। आंध्र प्रदेश में खाता खोलने की चुनौती है। तेलंगाना में बीजेपी को अपनी 4 सीटों को बढ़ाकर 6 से 8 करनी होगी। केरल और तमिलनाडु में बीजेपी लगातार मशक्कत कर रही है। लोकसभा चुनाव से पहले एक्टर थलापति विजय ने तमिलनाडु में राजनीतिक पार्टी लॉन्च की है। जिसका नाम तमिझगा वेत्री कड़गम रखा है। केरल में पिछले दिनों पीएम मोदी ने एक्टर राजनेता सुरेश गोपी की बेटी की शादी में शिरकत की थी और वर वधु को आशीर्वाद दिया था।
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