सफेद सूफी, रंगीन शराबी (व्यंग्य)
रंगीन सिंह रंग फैलाकर बोले, इन पियू यारों ने अपने अपने गैंग बना लिए ताकि न तो वाईफों की प्रेजेंस व टेंशन, न बच्चों की कार्टूननुमा हरकतों का झंझट। खास तौर पर सूफियों के लिए कोल्ड डिंक, जूस, शाही पनीर मंगवाने की फॉर्मेलिटी खत्म।
बहुत दिनों बाद मिले मित्र से शिकवा किया तो बोले हम तो घर पर ही रहे। खानेपीने वाली पार्टी में हम सूफियों को मज़ा कहां आता है। उनकी पार्टी अलग होती है और हमारी अलग। मित्र के साथ रंगीन सिंह भी थे कहने लगे, भला हो इन पियुओं का यह बढ़िया बंदे होते हैं। सूफियों की तरह नहीं, जब भी मिलेगें सूखेसूखे बतियाएं, ज़्यादा बात हो तो चायकाफी। मुलाकात को याद रखना हो तो खाने में पनीर, मैं बोलूं पियु ही सच्चे मिलु होते। इनकी वजह से महफिलें जमती, जानपहचान बढ़ती काम होने के चांस जवान होते। पैग अंदर, दिल और ज़बान खुल कर बाहर।
इनकी पार्टी में सबकी बीवियां मिलकर घंटों तम्बोला, फैशन, सैक्स, गहने, कपड़े, स्टेटस, सोशल और एंटी सोशल मीडिया पर राष्ट्रीय मुद्दों वाले सीरियलों व अन्य कई मसलों पर बतियाती न थकती। सूफी मित्र टेढे हो बोले, ये पैगू सूफियों को बंदा नहीं समझते। इन्हें पचता नहीं कि पार्टी में सूफी हों। ये एडजस्ट तो करते मगर उपरी दिल से, पर कमाल है जी हमारे क्लब प्रधान ने सूफी होते हुए भी ड्रिंक्स पार्टी शुरू की। रंगीन सिंह ने उसे समझाया आजकल ऐसा करना बहुत ज़रूरी है जी।
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रंगीन सिंह रंग फैलाकर बोले, इन पियू यारों ने अपने अपने गैंग बना लिए ताकि न तो वाईफों की प्रेजेंस व टेंशन, न बच्चों की कार्टूननुमा हरकतों का झंझट। खास तौर पर सूफियों के लिए कोल्ड डिंक, जूस, शाही पनीर मंगवाने की फॉर्मेलिटी खत्म। जी भरकर खाओ और दबा कर पियो, कैंटीन से लाई बेहतरीन विहस्कीज़ और साथ में होम थिएटर में सब कुछ बड़ा बड़ा देखो। मैंने पूछा, सुना है आजकल सूफीज़ ने पार्टियों में ज्यादा मज़ा लेने के लिए मीनू बदल दिया है वे भी मंहगे स्वादिष्ट जूस के साथ महंगे सनैक्स खाने लगे हैं। ठीक कहते हो, मेरे सूफी मित्र अब सीधे होकर बोले, सूफियों पर कई बार ज्यादा खर्च हो जाता है इन पैग न गिनने वालों से।
सुना है सूफी बंदे ज्यादा एडजस्टिंग होते हैं। पार्टी या शादी चाहे सूफियों की हो, वे ड्रिंक्स लेने वाले यार दोस्तों के साथ पूरे सदभाव के साथ शामिल होते हैं। गपशप करते हैं, डांस करते हैं। अपनी पत्नियों व दर्जनों भाभियों के साथ हंसी मज़ाक शेयर कर एक खुशनुमा माहौल की रचना करते हैं। दूसरी तरफ कई बार नहीं अनेक बार ऐसा होता है कि पीने वाले हल्के फुल्के मज़ाक से होते हुए अश्लील मज़ाक तक पहुंच जाते हैं। कितनी बार ऐसा होता है कि खुंदक में अपनी गुंजाइश से ज्यादा पी लेते हैं। कोई पुरानी अकड़ अचानक उखड़ आने पर हिसाब चुकता करने की धुन सवार हो जाती है मौके की नजाकत न भांपते हुए पंगे का झंडा गाड़ देते हैं जिसके लिए बोतल उन्हें हौसला देती है। ऐसा पियू मित्र भी स्वीकारते हैं।
रविवार की छुट्टी रही तभी तो सभी ने बात की खाल उतारी। एक बात सभी ने हाथ जोड़कर मानी कि पीना खाना मानवीय जीवन का बहुत ज़रूरी अभिन्न अंग है। शादी में ही नहीं छोटे से छोटे आयोजन में भाईचारे का स्वादिष्ट प्रसाद है। नौजवानों का तो मोशन ही नहीं बनता इसके बिना। प्रगतिशील युवतियों व महिलाओं का मनोरंजन परस्त अतिवादी वर्ग समाज में इसी आधार पर दमक रहा है। बढ़ती सम्पन्नता आने वाले वक्त में ऐसे जश्न और बढाने वाली है। हिंसक, तनावयुक्त और अर्धनग्न जा रहा मनोरंजन, तनरंजन के लिए नशे को संजीदा मित्र बना चुका है। बदलता सांस्कृतिक माहौल, बच्चों व युवाओं के लिए स्वतंत्रता और नैतिकता के नए ताज़ा संस्कार बहा रहा है। तरक्की होती है तो हर तरफ होती है जी। विकास के हमशक्ल विनाश ने, बुज़ुर्गों, प्रवाचकों, चिकित्सकों के परामर्श, अभिभावकों के क्रियाकलापों में सफ़ेद और रंगीन अंतर खत्म कर नया इंद्रधनुष रच दिया है। अब कोई मानता ही नहीं कि सूफी सफ़ेद और शराबी रंगीन।
- संतोष उत्सुक
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