अच्छाई पर बुराई की जीत (व्यंग्य)

सांकेतिक रूप में संतुष्ट हो जाना ऐसा ही है जैसे किसी चुनाव में लड़ने वाले शातिर व्यक्ति द्वारा मानवीय वायदे करना और सरकार का हिस्सा होते ही भूल जाना लेकिन उनके समर्थकों दवारा खुश होते रहना कि हमने उन्हें वोट दिया।
‘अच्छाई पर बुराई की जीत हुई’ ऐसा कहना कितना आसान लगता है। वक़्त ही ऐसा आ गया है कि बुराई पर अच्छाई की जीत हुई कहना मुश्किल सा हो गया है। अब यह एक पुराना मुहावरा सा लगता है। बड़ा दिलचस्प और दुःख भरा है कि बुराई अच्छाई को परेशान करती रही और इस मामले में, कुछ कर सकने वाले भी कुछ न कर सके। जिधर देखो अच्छाई को टुकड़े टुकड़े कर परेशान किया जाता है फिर भी कई पर्वों को हम बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाकर खुश होते रहते हैं। सांकेतिक रूप में संतुष्ट हो जाना ऐसा ही है जैसे किसी चुनाव में लड़ने वाले शातिर व्यक्ति द्वारा मानवीय वायदे करना और सरकार का हिस्सा होते ही भूल जाना लेकिन उनके समर्थकों दवारा खुश होते रहना कि हमने उन्हें वोट दिया।
होली को बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व भी कहा जाता है लेकिन बढ़ते बाज़ार के युग में ऐसा दिखता नहीं। रंगों को जीवन में उतारने को प्रेरित करता पर्व भी है यह, दुश्मनी और विरोध को भूलकर सभी को गले लगाकर प्रेम बढाने का पर्व भी कहा गया है लेकिन ऐसी बातें किताबों में ज्यादा हैं। अब तो यह दिखावे का पर्व ज़्यादा हो गया है। ऐसा दुनिया की सबसे रंगीन, मोटी, बहुत ज्यादा पड़ी जाने वाली बुक यानी फेसबुक भी दिखाती है।
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बाज़ार ने एक तरफ होली में आर्गेनिक, प्राकृतिक और घरेलू रंगों का पिटारा खोला होता है दूसरी तरफ इस रंग पर्व से कई दिन पहले प्लास्टिक के सामान की बहार आ जाती है। दिवाली के ढंग में बनी पटाखा रहित, रंग छोड़ती ‘कलर फौग’ मिलती है। इसमें आग लगाने से यह रंगीन गैस छोड़ती हैं जो सेहत के लिए नुकसानदेह होती है। यह इलेक्ट्रोनिक गन से भी चलाई जा सकती हैं, इसमें भरे हानिकारक, रासायनिक पदार्थों से पेड़ पौधे भी खुश तो नहीं होते होंगे।
वैसे भी इतने भाषण और प्रवचनों के बावजूद, नकली रंग बनाए जा रहे, बिक रहे और प्रयोग किए जा रहे हैं। यह सस्ते हैं इसलिए इनमें ज़्यादा बिकने की काबलियत है। जैसे फिल्मों में हीरोइन के सस्ते फूहड़ आइटम गीत के सामने बढ़िया होली गीत की क्या बिसात। वह अलग बात है कि त्वचा का ध्यान रखने के लिए सलाह और क्रीम हाज़िर हैं। विशेषज्ञ यह बताकर ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं कि नकली रंगों की कैसे पहचान करें। नकली रंगों की चमक दमक, पवित्र होली में इतनी ज़्यादा बसी हुई है कि असली रंग ढंग फीके पड़ जाते हैं। बुराई पर अच्छाई की जीत होती नहीं। सुविचारों बारे अच्छी, मधुर बातें जितनी चाहे कर लो व्यवहारिक स्तर पर बदलाव आते नहीं। नैतिक बदलाव को बेचारा कर दिया गया है। अच्छाई पर बुराई की जीत का आनंद उत्सव जारी है।
- संतोष उत्सुक
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