साइलेंट शब्दों की ट्रेजडी (व्यंग्य)

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साइलेंट अक्षरों के मामले में अपनी हिन्दी का कोई जवाब नहीं। कोई भी शब्द लिख लो, साइलेंट अक्षर का लफड़ा ही नहीं। पर यही बात बोलते हुए साइलेंट शब्दों के बारे में नहीं कह सकते। इस मामले में अंग्रेजी हिन्दी के आगे कहीं नहीं लगती।

जिन लोगों ने अंग्रेज़ी पढ़ी है उन्होंने बहुत से अंग्रेज़ी शब्दों को लिखते हुए गच्चा जरूर खाया होगा। बड़ी विचित्र भाषा है अंग्रेजी, शब्द का उच्चारण किसी अक्षर का आभास देता है और स्पेलिंग की शुरुआत किसी ऐसे अक्षर से होती है जिसका उस शब्द से दूर-दूर का भी वास्ता नहीं होता। कहते हैं ये साइलेंट अक्षर है। जरा सा भी पता नहीं चलता कि "नो" "नी" या "नाइफ" की स्पेलिंग "के" से, "राइट", "रिस्ट" या रेस्लिंग की स्पेलिंग "डब्ल्यू" से और "ऑनर" या "ऑनेस्ट" की स्पेलिंग "एच" से शुरु होती है। यही नहीं बोलचाल के ऐसे कितने ही शब्द हैं जिनके कभी बीच में तो कभी अंत में कोई साइलेंट अक्षर आकर स्पेलिंग की बैण्ड बजा जाता है। वॉक में "एल", साइन में "जी", कॉलम में "एन", डाउट में "बी" और नेम में "ई", स्पेलिंग के बीच या अंत में रोहिंग्याओं की तरह अवांछित घुसपैठ कर मजा किरकिरा कर देते हैं। स्पेलिंग का रट्टा न मारो तो गलत होने की शत-प्रतिशत गुंजाइश। रट्टा मारने के बावजूद न्यूमोनिया और साइकोलॉजी की सही-सही स्पेलिंग लिख पाना आज भी चुनौती है। ये शब्द लिखने के लिए जब भी सामने आते हैं तो "राम लखन" का गीत "ओ राम जी बड़ा दुःख दीना" याद आने लगता है।

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जब मैं इंजीनियरिंग में पढ़ता था उस समय का एक वाक्या याद आ रहा है। एयर टर्बाइन के बारे में पढ़ते हुए लगभग सभी ने अपने सेसनल में न्यूमेटिक स्टार्टर की स्पेलिंग गलत लिखी थी। तब हमारे एक मित्र द्वारका गुप्ता ने स्पेलिंग को याद करने के एक नायाब तरीका निकाला और उसने न्यूमेटिक को पिन्यूमेटिक बोलना शुरु कर दिया। दोस्तों ने उसका मजाक बनाया और उसका नाम पिद्वारका रख दिया। वर्षों बाद उसकी यह युक्ति मुझे अपनी अमेरिका यात्रा पर बहुत काम आई जब नार्थ कैरोलीना की राजधानी शारलेट की स्पेलिंग से मेरा पाला पड़ा। अमेरिकन इंग्लिश समझने से कई गुना ज्यादा कठिन था शारलेट की सही स्पेलिंग लिख पाना। पता नहीं कितने साइलेंट अक्षर थे उसमें.. अक्षर मिला कर पढ़ो तो "चारलोट्टे" उच्चारण बनता था पर अमेरिकन उसे शारलेट कहते हैं। मैं भी इज्जत की खातिर बोलता शारलेट था लेकिन लिखते वक्त मन ही मन में "चारलोट्टे" दोहराता था।

साइलेंट अक्षरों के मामले में अपनी हिन्दी का कोई जवाब नहीं। कोई भी शब्द लिख लो, साइलेंट अक्षर का लफड़ा ही नहीं। पर यही बात बोलते हुए साइलेंट शब्दों के बारे में नहीं कह सकते। इस मामले में अंग्रेजी हिन्दी के आगे कहीं नहीं लगती। हमारे देश के लोग इतने चतुर सुजान हैं कि वे अपनी बातचीत में ऐसे-ऐसे शब्द या वाक्यांश ही साइलेंट कर देते हैं जिनका अर्थ वर्षों बाद समझ में आता है। बताते हैं रामधन काका की जब शादी हुई थी तो उनकी सासू माँ ने कहा था "हमारी बेटी गाय के समान है, ख्याल रखिए।" ये तो काका को बाद में पता चला कि सासू माँ के वाक्य में दो-दो शब्द साइलेंट थे। उनके कहने का आशय था कि "हमारी बेटी "मरखनी" गाय के समान है, "अपना" ख्याल रखिए।" इन साइलेंट शब्दों ने ऐसा गजब ढाया कि काका सांड सरीखे दो पुत्रों के पिता बन गए और ताउम्र कष्ट में रहे।

ये तो एक उदाहरण है। ऐसे कितने ही साइलेंट शब्दों से हमारा रोज पाला पड़ता है जिनका अर्थ बाद में समझ आता है। भगीरथ सब्जीवाले से जब भी मोलभाव करो तो वह बड़ी मासूमियत से कहता है कि "साब, आपको ज्यादा थोड़े ही लगाएँगे" और वह आधा किलो भिण्डी में डेढ़ सौ ग्राम रूढ़ी भिण्डी डेड़ गुने दाम में टिका जाता है। यह तो काफी समय बाद समझ में आया कि भगीरथ "चूना" शब्द को साइलेंट रखता था।

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कुछ साल पहले एक नेता जी "गरीबी हटाओ" का नारा देते हुए वोट ले गए थे। गलती लोगों से हुई जो अपनी गरीबी हटने की उम्मीद लगा बैठे जबकि नेता जी ने कभी ऐसा वादा नहीं किया था, उन्होंने केवल "हमारी" शब्द को साइलेंट मोड में रखा था। इसी तरह पिछले दिनों "अच्छे दिन आएँगे" मामले में भी हुआ। लोगों ने फिर गलती से अच्छे दिनों के सपने देखने शुरु कर दिए। पिछली बार की तरह इस बार भी "हमारे" शब्द साइलेंट रखा गया था, ये लोगों को बाद में समझ में आया।

छुट्टी के दिन देर तक सोने की इच्छा रखने वाले मित्रों को अपनी पत्नी का यह उलाहना जरूर याद होगा- "अजी उठो भी, क्या अभी तक पड़े हुए हो।" आप मित्र हैं तो सोचा आपको बता दूँ। अब यदि कभी आपको यह उलाहना सुनने को मिले तो समझ जाइए कि "अभी तक" के बाद "भैंसे की तरह" वाक्यांश को साइलेंट मोड में रखा गया है।

- अरुण अर्णव खरे

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