उड़ गए तोते (व्यंग्य)
पत्नी के बार-बार पति के मन की बात पूछने की चेष्टा ने इस बार गजानन को झकझोर दिया था। बहुत दिनों तक सत्ता से बेदखल विपक्ष की कुबुलाहट उनके भीतर दिखी। एकदम से उठे और बोले- देखो भाग्यवान! प्रधानमंत्री मन की बात करते हैं, तो उनके पास मन भी होता है।
पत्नी की बातें सुन गजानन कुछ देर के लिए चुप रहा। वह कहे तो भी क्या कहे। शादी के शुरुआती दिनों में थोड़ा-बहुत मुँह खुलता था। लेकिन पत्नी के परिजनों की बहुमत के सामने इनके तोते विपक्षी दल की तरह उड़ जाते थे। पहले पहल बहुत सी शिकायतें की। कोई लाभ नहीं हुआ। उल्टे लोगों के ताने-उलाहने सुनने पड़े। किसी ने कहा इतने दिनों तक कुँवारे बैठे रहे। जैसे-तैसे शादी हुई तो मीनमेख निकालने लगे। नई सरकार को सत्ता संभालने के लिए भी जनता पाँच साल देती है। क्या तुम कुछ दिन अडजस्ट नहीं कर सकते। तुम बड़े किस्मत वाले हो जो तुम्हारी शादी हो गई। वरना आज के दिनों में अच्छी लड़की और सरकार भला किसी को मिलती है? यही सब कुछ कह-कहकर गजानन को लोगों ने पत्नी पुराण महिमा के नीचे ऐसा धर दबोचा कि किसी के सामने उनकी बोलती खुलना तो दूर सोचने से भी उनके रोंगटे खड़े हो उठते हैं।
पत्नी के बार-बार पति के मन की बात पूछने की चेष्टा ने इस बार गजानन को झकझोर दिया था। बहुत दिनों तक सत्ता से बेदखल विपक्ष की कुबुलाहट उनके भीतर दिखी। एकदम से उठे और बोले- देखो भाग्यवान! प्रधानमंत्री मन की बात करते हैं, तो उनके पास मन भी होता है। मैं तो अपना मन कब का मार चुका हूँ। शेक्सपियर ने कहा था कि एक अच्छा जोड़ा वही होता है जिसमें पत्नी अंधी और पति बहरा हो। न पत्नी कुछ देखेगी, न कुछ बोलेगी। यदि बोल भी देती है तो पति तो पहले से बहरा है। वह खाक सुनेगा। मैं भी कुछ उसी तरह का हूँ। तुम कुछ भी बोल देती हो उसे मैं ऐसे सुनता हूँ जैसे मैंने कुछ सुना ही नहीं।
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प्रधानमंत्री अपनी मन की बातें मनवाने के लिए सीबीआई, ईडी, सेना, जाँच अधिकारियों की बड़ी खेप रखते हैं। मेरे पास क्या है? मन की बात मनवाने के लिए ताकत होनी चाहिए, जो कि मेरे पास नहीं है। दुनिया में जीने के दो ही तरीके हैं। एक जो गलत हो रहा है उसके खिलाफ आवाज़ उठाओ। उसके लिए हाथ में सत्ता होनी चाहिए। जो कि मेरे पास नहीं है। दूसरा तरीका है जो कुछ गलत हो रहा है उसे होने दो। चुपचाप पड़े रहने दो। इससे खुद का भला होता ही है और सामने वाले का मन भी शांत रहता है। मैं इस उम्र में भगतसिंह नहीं बनना चाहता। भगतसिंह और बुलंद आवाजों की आयु दो पल की होती है। मैं दो पल से अधिक जीवन काट चुका हूँ, इसलिए अब मुझमें क्रांति करने की कोई इच्छा नहीं है। तुम जैसी हो, बहुत अच्छी हो। मेरे इस हार्डवेयर वाले बदन में तुम्हारी व्यवस्थाओं का सॉफ्टवेयर बहुत फबता है। इसलिए मुझे मेरे मन की बात करने की कोई इच्छा नहीं है।
- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)
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