रूस ने परमाणु संधि सम्मेलन में अंतिम दस्तावेज को बाधित किया

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रूस ने परमाणु निरस्त्रीकरण की आधारशिला समझी जाने वाली संयुक्त राष्ट्र की संधि की चार सप्ताह तक चली समीक्षा के अंतिम दस्तावेज पर समझौते को शुक्रवार को बाधित कर दिया। इस दस्तावेज में यूक्रेन पर रूसी सुरक्षा बलों के हमले के बाद यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र पर सैन्य कब्जे की निंदा की गई है। इस सैन्य कब्जे ने परमाणु हादसे की आशंकाएं पैदा कर दी हैं।

संयुक्त राष्ट्र, 28 अगस्त (एपी)। रूस ने परमाणु निरस्त्रीकरण की आधारशिला समझी जाने वाली संयुक्त राष्ट्र की संधि की चार सप्ताह तक चली समीक्षा के अंतिम दस्तावेज पर समझौते को शुक्रवार को बाधित कर दिया। इस दस्तावेज में यूक्रेन पर रूसी सुरक्षा बलों के हमले के बाद यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र पर सैन्य कब्जे की निंदा की गई है। इस सैन्य कब्जे ने परमाणु हादसे की आशंकाएं पैदा कर दी हैं। रूसी विदेश मंत्रालय के निरस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियंत्रण विभाग के उप निदेशक इगोर विश्नेवेत्की ने 50 साल पुरानी परमाणु अप्रसार संधि की समीक्षा कर रहे सम्मेलन की देरी से हुई अंतिम बैठक में कहा, ‘‘दुर्भाग्य से इस दस्तावेज पर कोई आम सहमति नहीं बन पाई।’’

उन्होंने कहा कि केवल रूस ही नहीं, बल्कि कई देश 36 पृष्ठ के अंतिम दस्तावेज में शामिल किए गए ‘‘कई मामलों’’ से सहमत नहीं हैं। दस्तावेज को पारित करने के लिए परमाणु हथियारों का प्रसार रोकने के मकसद से की गई संधि के सभी पक्षकार 191 देशों की मंजूरी की आवश्यकता थी। सम्मेलन के अध्यक्ष एवं अर्जेंटीना के राजदूत गुस्तावो ज्लाउविनेन ने कहा कि अंतिम मसौदे में ‘‘एक प्रगतिशील परिणाम के लिए’’ सभी पक्षों के अलग-अलग विचारों को रखने और उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने के सर्वोत्तम प्रयासों का ऐसे समय में प्रतिनिधित्व किया गया, जब ‘‘हमारी दुनिया बढ़ते संघर्षों और सबसे खतरनाक रूप से, अकल्पनीय परमाणु युद्ध के बढ़ते खतरे’’ का सामना कर रही है।

लेकिन विश्नेवेत्की के बोलने के बाद, ज्लाउविनेन ने प्रतिनिधियों से कहा, ‘‘मैं देख रहा हूं कि सम्मेलन इस समय अपने मौलिक कार्य पर सहमति बनाने करने की स्थिति में नहीं है।’’ एनपीटी का समीक्षा सम्मेलन हर पांच साल में होता है, लेकिन कोविड-19 के कारण इस बार इसमें देरी हुई। यह दूसरी बार है, जब अंतिम दस्तावेज पर सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई है। इससे पहले 2015 के सम्मेलन में सामूहिक विनाश के हथियारों से मुक्त पश्चिम एशिया क्षेत्र की स्थापना को लेकर गंभीर मतभेदों के कारण समझौता नहीं हो पाया था।

पश्चिम एशिया क्षेत्र संबंधी पुराने मतभेद दूर नहीं हुए हैं, लेकिन उन पर चर्चा की जा रही है, और ‘एसोसिएटेड प्रेस’ (एपी) को प्राप्त हुए अंतिम दस्तावेज के मसौदे के अनुसार, परमाणु मुक्त पश्चिम एशिया क्षेत्र की स्थापना का मामला अहम है, लेकिन यह इस साल बड़ी बाधा नहीं रहा। सम्मेलन को इस बार सबसे अधिक प्रभावित करने वाला मुद्दा रूस द्वारा यूक्रेन पर 24 फरवरी को किया गया हमला है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी दी कि रूस एक ‘‘शक्तिशाली’’ परमाणु संपन्न देश है और हस्तक्षेप करने के किसी भी प्रयास के ‘‘ऐसे परिणाम होंगे, जो आपने पहले कभी नहीं देखे होंगे।’’

बहरहाल, बाद में पुतिन ने कहा, ‘‘परमाणु युद्ध जीता नहीं जा सकता और इसे कभी लड़ा नहीं जाना चाहिए।’’ सम्मेलन की शुरुआत दो अगस्त को हुई थी। इसके अलावा दक्षिण पूर्वी यूक्रेन के जपोरिजिया में यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र पर रूस के कब्जे ने परमाणु त्रासदी का भय पैदा कर दिया है। रूस और यूक्रेन दोनों ने एक दूसरे पर संयंत्र के पास गोलाबारी करने के आरोप लगाए हैं। जपोरिजिया के लिए अंतिम मसौदा दस्तावेज में चार संदर्भ में एनपीटी के पक्षों ने संयंत्र और इसके आसपास ‘‘सैन्य गतिविधियों के लिए गंभीर चिंता व्यक्त की।’’

दस्तावेज स्वीकार होने की स्थिति में यूक्रेन का नियंत्रण खत्म होने और संयंत्र की परमाणु सामग्री की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की नाकामी को भी मान्यता दी जाती। दस्तावेज ने जपोरिजिया का दौरा करने के आईएईए के प्रयासों का समर्थन किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इसकी परमाणु सामग्री से कोई छेड़छाड़ नहीं हो। आईएईए के निदेशक आगामी दिनों में संयंत्र का दौरा करने की उम्मीद कर रहे हैं। मसौदे में यूक्रेन के परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा पर भी ‘‘गंभीर चिंता’’ व्यक्त की गई और ‘‘यूक्रेन के सक्षम अधिकारियों द्वारा नियंत्रण सुनिश्चित करने के सर्वोपरि महत्व’’ पर जोर दिया गया।

दस्तावेज को अपनाने में सम्मेलन की विफलता के बाद, दर्जनों देशों ने अपने विचार व्यक्त किए। 120 विकासशील देशों के गुटनिरपेक्ष आंदोलन की ओर से बोलते हुए इंडोनेशिया ने इसे स्वीकार नहीं किए जाने पर निराशा व्यक्त करते हुए अंतिम दस्तावेज को ‘‘अत्यंत महत्वपूर्ण’’ कहा। देशों ने गहरी चिंता व्यक्त की कि रूस ‘‘यूक्रेन के खिलाफ अवैध युद्ध को छेड़कर’’ अंतरराष्ट्रीय शांति और एनपीटी के उद्देश्यों को कमजोर कर रहा है। एनपीटी के प्रावधानों के तहत, पांच मूल परमाणु शक्तियां - अमेरिका, चीन, रूस (तब सोवियत संघ), ब्रिटेन और फ्रांस - अपने शस्त्रागार को एक दिन खत्म करने की दिशा में बातचीत करने पर सहमत हुई थीं और परमाणु हथियारों रहित राष्ट्रों ने इस शर्त पर परमाणु हथियार हासिल नहीं करने का वादा किया था कि उन्हें शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा विकसित करने में सक्षम बनाने की गारंटी दी जाए।

भारत और पाकिस्तान एनपीटी में शामिल नहीं हुए थे। उन्होंने परमाणु हथियार बनाए। उत्तर कोरिया ने भी ऐसा ही किया। उसने पहले समझौते की पुष्टि की लेकिन बाद में घोषणा की कि वह पीछे हट रहा है। एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले इजराइल के बारे में माना जाता है कि उसके पास परमाणु शस्त्रागार है, लेकिन वह इसकी न तो पुष्टि करता है और न ही इनकार करता है। वर्ष 2017 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित, ब्रिटिश परमाणु विश्लेषक और ‘परमाणु हथियारों को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुहिम’ की सह-संस्थापक रेबेका जॉनसन ने कहा, ‘‘युद्ध के समय में हफ्तों की बातचीत के बाद अभूतपूर्व वैश्विक जोखिम और बढ़े हुए परमाणु खतरे अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट हैं, जिसके कारणपरमाणु उन्मूलन अत्यावश्यक है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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