ओवैसी को भाजपा का एजेंट मानते हैं यूपी के मुसलमान, इसीलिए काट दी AIMIM की पतंग
चौंकाने वाली बात यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में नोटा से कम वोट पाने वाली पार्टियों में एआईएमआईएम के अलावा आम आदमी पार्टी और जदयू भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि मुस्लिम समाज समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा रहा।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों को लेकर बड़े-बड़े दावे किये जा रहे थे। अखिलेश यादव कह रहे थे कि मुसलमान हमारे साथ हैं, बसपा कह रही थी कि मुस्लिम समाज हमारे साथ है। कांग्रेस ने तो अपने पक्ष में एक मौलवी से फतवा तक जारी करवा लिया था। यही नहीं हैदराबाद से असद्दुदीन ओवैसी भी आकर मुस्लिम वोटों पर हक जता रहे थे लेकिन चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि ओवैसी की पार्टी को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। यही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आठ प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोट भाजपा के खाते में गए हैं। हम आपको बता दें कि भाजपा ने मुस्लिम बहुल सीट देवबंद पर भी जीत हासिल की है जो दर्शाती है कि बड़ी संख्या में मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया है। खासतौर पर मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने के बाद से इस समाज की महिलाओं की पहली पसंद के तौर पर भाजपा उभरी है।
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चौंकाने वाली बात यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में नोटा से कम वोट पाने वाली पार्टियों में एआईएमआईएम के अलावा आम आदमी पार्टी और जदयू भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि मुस्लिम समाज समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा रहा। हैदराबाद से चलकर यूपी आये असद्दुदीन ओवैसी की सभाओं में भले भीड़ उमड़ी हो लेकिन उनकी पार्टी को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। इससे पहले ओवैसी का प्रयास पश्चिम बंगाल में भी रंग नहीं ला पाया था। बिहार में उन्होंने जरूर करिश्मा दिखाया था लेकिन उनके विधायक ही पार्टी छोड़ गये। फिलहाल जनता का रुख दर्शाता है कि लोग सिर्फ उन्हें देखना-सुनना ही चाहते हैं।
ओवैसी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कर्नाटक के हिजाब विवाद को भी मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन वह प्रयास रंग नहीं लाये। यही नहीं जब ओवैसी पर यूपी में कथित हमला हुआ तो उसके जरिये उन्होंने भावनात्मक आधार पर वोट चाहे लेकिन यह प्रयास भी सफल नहीं हुआ। अब अपनी पार्टी की करारी हार पर ओवैसी कह रहे हैं कि कुछ राजनीतिक दल भले अपनी नाकामी छुपाने के लिए ईवीएम की चीख पुकार कर रहे हैं मगर हम ऐसा नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि मैं 2019 से कहता आ रहा हूं कि ईवीएम की गलती नहीं है बल्कि लोगों के दिमाग में चिप डाल दी गई है यह उसकी गलती है। ओवैसी ने कहा है कि चुनाव प्रचार के दौरान भी मैंने अपने भाषण में कहा था कि समाजवादी पार्टी भाजपा को नहीं हरा सकती है और यही हुआ भी। उन्होंने कहा कि अब यूपी की गरीब जनता को समझ आ जाएगा। ओवैसी खुद को भाजपा का एजेंट बताये जाने के आरोपों पर कह रहे हैं कि हम पर जो इल्जाम लगता है, लगाता रहे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने ऐलान किया है कि हम राजस्थान और गुजरात में भी लड़ेंगे।
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बहरहाल, चुनाव परिणाम में भले ओवैसी की पार्टी को कोई सीट नहीं मिली हो लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान भी यही लग रहा था कि लोग अभी ओवैसी का साथ देने के मूड़ में नहीं हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के बहुत सारे लोग ओवैसी की पार्टी को भविष्य का विकल्प मान रहे थे। मुसलमान मतदाताओं का साफ तौर पर मानना था कि इस बार लोग वोटों का बंटवारा नहीं चाहते क्योंकि उनका मकसद योगी आदित्यनाथ की सरकार को सत्ता से हटाना है। वैसे भी उत्तर प्रदेश के मुस्लिमों के राजनीतिक रुख को देखा जाये तो अक्सर यह समाज एकजुटता के साथ उस पार्टी को वोट करता है जो भाजपा को हराने में सक्षम हो। इस बार शुरू से ही ऐसा लग रहा था कि भाजपा का मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी से है इसीलिए मुस्लिम अखिलेश यादव के साथ खड़े रहे और वोट को बंटने से रोका। यह सपा के एमवाई समीकरण का ही चमत्कार था जो सपा गठबंधन का वोट प्रतिशत और सीट बढ़ सके।
बहरहाल, अब ओवैसी कह रहे हैं कि हम और ज्यादा मेहनत करेंगे और मेहनत रंग लायेगी। वैसे भी लोकतंत्र में सभी को अपना दल बनाने, उसका प्रचार करने और कहीं भी चुनाव लड़ने का अधिकार है और ओवैसी इसी अधिकार का उपयोग कर देशभर में घूम रहे हैं। लेकिन विपक्षी पार्टियों ने ओवैसी पर भाजपा का एजेंट होने का जो गहरा ठप्पा लगाया है वह जनता के मन में ऐसा बैठ गया है जो अन्य राज्यों में उनकी पार्टी को आसानी से खड़ा नहीं होने देगा।
-नीरज कुमार दुबे
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