कांग्रेस का अमेठी के बाद रायबरेली का किला भी ढहा, सोनिया के संसदीय क्षेत्र में सपा और भाजपा की बल्ले-बल्ले
रायबरेली संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 6 सीटों में से 4 पर समाजवादी पार्टी ने तो 2 पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कब्जा किया है। भाजपा ने जिन दो सीटों पर जीत दर्ज की है, उनमें रायबरेली सदर और सलोन सीट है।
रायबरेली। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस को उठाना पड़ा है। पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली, जो कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, उस पर समाजवादियों और भगवाधारियों ने कब्जा कर लिया है। आपको बता दें कि गांधी परिवार का किला रहा अमेठी पहले ही ढह गया था और अब रायबरेली से भी पंजे का निशान गायब हो गया है। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को इससे पहले ऐसी शिकस्त कभी नहीं मिली थी।
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रायबरेली संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 6 सीटों में से 4 पर समाजवादी पार्टी ने तो 2 पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कब्जा किया है। भाजपा ने जिन दो सीटों पर जीत दर्ज की है, उनमें रायबरेली सदर और सलोन सीट है। आपको बता दें कि रायबरेली सदर से कांग्रेस की बागी नेता अदिति सिंह ने भाजपा के चुनाव चिह्न पर जीत दर्ज की है। जबकि सलोन से अशोक कोरी को जीत मिली है।
अदिति सिंह को मिली कांटे की टक्कर
अदिति सिंह को समाजवादी पार्टी के राम प्रताप यादव से कांटे की टक्कर मिली और अंतिम राउंड तक दोनों के बीच घमासान देखने को मिला। अदिति सिंह को कुल 1,01,974 वोट मिले। जबकि राम प्रताप सिंह को 94,294 वोट हासिल हुए और अगर कांग्रेस की बात करें तो पार्टी ने डॉ. मनीष चौहान को टिकट दिया था। जिन्हें महज 14,884 वोट मिले हैं। रायबरेली की 6 में से 3 सीटों पर तो कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। अमेठी की 4 सीटों पर भी पार्टी का हाल बुरा रहा। कांग्रेस एक सीट भी जीत पाने में कामयाब नहीं हो पाई है।
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कौन हैं अदिति सिंह ?
रायबरेली की सदर सीट से विधायक रही अदिति सिंह ने कांग्रेस को अलविदा कह कर भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की। इस सीट पर उनके परिवार का दबदबा 33 साल से चला आ रहा है। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र की रायबरेली सदर सीट से अदिति सिंह के पिता अखिलेश सिंह लगातार पांच बार विधायक चुने जा चुके हैं।
साल 1989 में पहली बार रायबरेली की सदर सीट से पूर्व सांसद अशोक सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने साल 1993 में अपने भाई अखिलेश सिंह के लिए यह सीट छोड़ दी थी और फिर कांग्रेस के टिकट पर अखिलेश सिंह विधानसभा पहुंचे थे। हालांकि साल 2003 में राकेश पांडे हत्याकांड में अखिलेश सिंह का नाम सामने आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें निकाल दिया था। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर चुनाव लड़ा और विधायक चुके गए।
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कांग्रेस भी इस सीट पर अखिलेश सिंह के प्रभाव को अच्छी तरह से समझती थी, ऐसे में वो ज्यादा दिन तक पार्टी से जुटा नहीं रहे। आखिरी बार उन्होंने साल 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा था। जिसमें हुए जीत मिली थी। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने की वजह से उन्होंने 2017 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया और अपनी बेटी को कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़वाया। इस चुनाव में अदिति सिंह ने अपने प्रतिद्वंद्वी को करीब 89,000 वोट से परास्त किया और विधानसभा पहुंची। लेकिन फिर उनका पार्टी से मोहभंग हो गया और फिर चुनाव से ठीक पहले भाजपा में चली गई।
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