ईरान-इजरायल के बीच ऐलान-ए-जंग के अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों को ऐसे समझिए

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कमलेश पांडे । Oct 3 2024 2:25PM

इधर ईरान-इजरायल के बीच जंग के आसार के चलते कच्चे तेल में भी तेजी देखने को मिल रही है। इससे दुनियाभर में महंगाई बढ़ने के आसार प्रबल हैं। इस हमले के बाद से कच्चे तेल के दामों में 4 फीसदी की तेजी आ गई है।

दुनिया का थानेदार अमेरिका और उसका प्रबल प्रतिद्वंद्वी रूस (पूर्व सोवियत संघ का काबिल वारिस) के बीच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो कुछ भी हुआ, हो रहा है अथवा होगा, वह कोई नई बात नहीं है। क्योंकि अमेरिका-इंग्लैंड की युगलबंदी को संतुलित करने के लिए रूस-चीन का गठजोड़ रणनीतिक पूर्वक आगे बढ़ रहा है। इसलिए हाल में ईरान-इजरायल के बीच शुरू हुए ऐलान-ए-जंग के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को इसी परिप्रेक्ष्य में जानने-समझने की जरूरत है। 

समझा जाता है कि जिस तरह से अमेरिका, यूक्रेन की पीठ थपथपा रहा है; ठीक उसी तरह से रूस, अब फिलिस्तीन, लेबनान और ईरान को शह दे रहा है। क्योंकि उसकी स्पष्ट सोच है कि यूक्रेन में अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो की मदद तभी थमेगी, जब वह इजरायल के बचाव में मध्यपूर्व के देशों के साथ सीधे तौर पर उलझेगा। 

यही वजह है कि जब हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकी संगठन अपने प्रभाव वाले इलाके में इजरायल के सामने कमजोर पड़ने लगे तो हौसलाअफजाई के लिए उनके आका ईरान को इजरायल के खिलाफ सामने आना पड़ा। उधर जब अमेरिका भी इजरायल के साथ खुले मैदान में उतर गया, तो अब ईरान के तरफदारी में रूस की घोषणा की ओर सबकी निगाहें जमीं हुईं हैं।

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वैसे भी इजरायल पर एकाएक बरसीं 200 ईरानी मिसाइलों के बाद अब इजरायली प्रतिक्रिया कितनी भयानक होगी, इस ओर भी पूरी दुनिया की नजर टिकी हुई है। ऐसा इसलिए कि ईरान के हमले के बाद भी इजरायल का हिजबुल्लाह पर एक्शन थमा नहीं है। उसने लेबनान के बेरूत के दक्षिणी इलाकों में भीषण हवाई हमले किए। मतलब लेबनान में फिर बमबारी की। ये हमले हिजबुल्लाह के अहम ठिकानों पर किए गए।

ईरान के हमले के बाद इजरायल ने दो टूक कहा कि हमारा जवाबी ऑपरेशन प्लान तैयार है। हम तय करेंगे कि जवाब कब देना है। जहां भी और जब भी होगा, हम ईरान पर हमला करेंगे। वहीं, ईरान के सेना प्रमुख ने धमकी दी कि अगर उनके देश पर हमला हुआ, तो वो इज़राइल के सारे इंफ्रास्ट्रक्चर को तबाह कर देंगे। इससे तय है कि बात अभी और बढ़ेगी।

इसलिए पुनः यह सवाल मौजूं है कि आखिर में प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध की भयावह त्रासदी को झेलने के बावजूद समकालीन दुनिया स्थाई शांति की परिकल्पना करने के बजाय तीसरे विश्वयुद्ध की परिस्थितियों को बढ़ावा देने पर क्यों तुली हुई हैं? क्या उनका यह कदम उस लोकतंत्र के मुंह पर करारा तमाचा नहीं है, जो स्वतंत्रता-समानता-बंधुत्व की बात करते हुए नहीं अघाता है। 

सही मायने में तो अब संयुक्त राष्ट्र संघ भी दुनियावी विरोधाभाषों को खत्म करने या उन्हें सुलझाने की दृष्टि से पूरी तरह से विफल साबित हो चुका है। विशेषज्ञों के मुताबिक, शीत युद्ध कालीन करतूतों की बात यदि छोड़ भी दी जाए, तो समकालीन वैश्विक करतूतें यही इशारे कर रही हैं कि हथियारों के सौदागरों को जिंदा रखने के लिए दुनियाभर में जारी छद्मयुद्धों की बजाए रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध जैसे अन्य युद्ध भी बेहद जरूरी हैं। इसलिए हर ओर विरोधाभासों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

सच कहूं तो ये वही ताकतें हैं जो भारत-पाक युद्ध, भारत-चीन युद्ध, चीन-ताइवान युद्ध को लंबा चलने देने की परिस्थिति पैदा करने में जब विफल हुईं तो उन्हें अपने ही पड़ोस में नए-नए मोर्चे खोलने पड़े। क्योंकि दुनिया की फैक्टरियों में जब हथियार बनेंगे तो उनके खपत के लायक नित्य नया क्षेत्र चुनने की पहल तो सत्ताधीशों को करनी ही होगी। बहरहाल, अमेरिकन और रूसी नेतृत्व यही कर रहा है। चीनी और भारतीय नेतृत्व भी इसी उधेड़बुन में पड़ा है।

आप मानें या न मानें, लेकिन अमेरिका-रूस गुट को आपस में भिड़ाकर और लंबे युद्ध में उलझाकर उन्हें कमजोर होने देने और खुद को दुनिया का नया थानेदार बनाने की जो चीनी चाल है, और उसके दृष्टिगत भारत की जो चुप्पी है, उससे अमेरिका-रूस दोनों की घिग्गी बंधी हुई है। शायद भारत भी चीन को पछाड़कर यही मंसूबा पाले हुए है।

सच कहूं तो भले ही मुस्लिम आतंकवाद कभी अमेरिकी-ब्रिटिश एजेंडा रहा हो, लेकिन अब रूस-चीन गठबंधन भी इसी एजेंडे को आगे बढ़ाकर तेल के खेल में अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो को पटखनी देने की रणनीति अख्तियार कर चुका है। जिसका साइड इफेक्ट्स आज इजरायल झेल रहा है और कल भारत के समक्ष भी इजरायल वाली परिस्थिति को पैदा किया जा सकता है, यदि उसका ज्यादा झुकाव अमेरिकी गुट की तरफ हुआ तो।

मसलन, पश्चिमी एशिया व मध्यपूर्व एशिया समेत दुनिया के इस्लामिक देशों और इसके कतिपय आतंकी शासकों का दुर्भाग्य यह है कि तेल से अर्जित समृद्धि का सदुपयोग वह अपने मुल्क के नागरिकों को ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के बजाए उन्मुक्त उपभोग, धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की भावना को पैदा करके उसको निर्यात करने में लगा दिया। क्योंकि उनके अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल बॉस को यही पसंद है। इससे इजरायल और भारत जैसे देशों की परेशानी बढ़ी, लेकिन वो यह भूल गए कि प्रकृति वही लौटाती है, जो हमलोग बांटते हैं। 

यही वजह है कि चाहे अमेरिका हो, रूस हो, चीन हो, या बड़े इस्लामिक मुल्क, जब प्रकृति उन्हें छद्मयुद्ध, युद्ध और आतंकवाद की सौगात वापस करने लगी है तो अब ये देश उसे संभालने-झेलने में असमर्थ ही नहीं हैं, बल्कि भौचक्के भी रह जा रहे हैं। आपको ईरान-इराक युद्ध याद होगा। ईरान-अमेरिकी जंग भी याद होगी। तालिबान (अफगानिस्तान)-अमेरिका युद्ध ज्यादा पुरानी बात नहीं हुई है। अमेरिका और सीरिया के बीच जो कुछ हुआ, या हो रहा है, वह सभी जानते हैं। 

जानकारों के मुताबिक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक या मध्यपूर्व के देशों में अमेरिकी रणनीति यदि विफल हो रही है, तो उसके पीछे रूस की बहुत बड़ी भूमिका है। आज यदि अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस जैसे बड़े मुल्क इस्लामिक आतंकवाद व कट्टरता की चपेट में हैं, तो इसके पीछे भी रूसी-चीनी अंतर्राष्ट्रीय शह ही है। 

दिलचस्प बात तो यह है कि पिछले 10 वर्षों में भारत ने अपनी रणनीति बदली है और खुद को उम्मीद से ज्यादा मजबूत बनाया है, इसलिए वह अब अंतर्राष्ट्रीय सत्ता संतुलन का केंद्र बन चुका है। भारत भी अब हथियारों के सौदागरों की टीम में शामिल होने को बेताब है।

अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में चीनी चाल के दृष्टिगत ही भारत सरकार सोच-समझकर कोई कदम उठाती है। इसलिए अब दुनिया की धड़कन इस बात को सोचकर बढ़ रही है कि यदि तीसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो भारत किधर होगा? क्या वह तीसरी दुनिया के देशों के साथ तटस्थ रहेगा, या फिर रूस से अपनी पुरानी यारी और अमेरिका से अपनी नई यारी निभाएगा! 

यही नहीं, जब दुनिया में महंगाई बम फूटेगा, तो उस स्थिति को भारत कैसे संभालेगा। वैसे तो ईरान और इजरायल दोनों भारत के करीब हैं, लेकिन इजरायल और भारत का उद्देश्य एक है-आतंकवाद का समूल सफाया। शायद यह होने का असली वक्त भी अब आ रहा है। भारत की रणनीति साफ होनी चाहिए कि राज्य प्रायोजित आतंकवाद को खत्म किया जाए। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान आदि द्वारा प्रोत्साहित आतंकवाद जितनी जल्दी कुचला जाएगा, दुनिया उतनी जल्दी ही चैन की सांस ले सकेगी।

इधर ईरान-इजरायल के बीच जंग के आसार के चलते कच्चे तेल में भी तेजी देखने को मिल रही है। इससे दुनियाभर में महंगाई बढ़ने के आसार प्रबल हैं। इस हमले के बाद से कच्चे तेल के दामों में 4 फीसदी की तेजी आ गई है। ऐसे में दुनियाभर में महंगाई फिर से बढ़ने के आसार प्रबल हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस मिसाइल हमले से जुड़ी बातों के बीच गत 1 अक्टूबर मंगलवार को ही क्रूड ऑयल का भाव बढ़ गया। ब्रेंट वायदा 3.5% बढ़कर 74.2 डॉलर प्रति बैरल हो गया, जबकि यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड 2.54 डॉलर या 3.7% बढ़कर 70.7 डॉलर हो गया। 

कहना न होगा कि दुनियाभर में कच्चे तेल में होने वाले उतार-चढ़ाव से वैश्विक अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर प्रभावित होती है। जबकि युद्ध से ग्लोबल सप्लाई चैन भी टूट जाती है। ऐसे में आयात और निर्यात की गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं, जिससे महंगाई बढ़ने लगती है। पिछले साल रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान भी ऐसा ही हुआ था, जब रूस के यूक्रेन पर अटैक के बाद ग्लोबल सप्लाई चैन बुरी तरह से प्रभावित हुई थी। वहीं, कच्चे तेल के दामों में भी जबरदस्त तेजी आई थी।

वहीं, इस जियोपॉलिटिकल टेंशन का असर शेयर बाजार पर भी देखने को मिल रहा है। निफ्टी और डाओ फ्यूचर्स समेत कुछ देशों के मार्केट लाल निशान के साथ कारोबार कर रहे हैं। ऐसे में यदि यह जंग और बढ़ी तो कच्चे तेल में बढ़ोतरी से कई चीजें महंगी हो सकती हैं, जबकि शेयर बाजार में ऑयल स्पेसिफिक स्टॉक पर तगड़ा असर देखने को मिल सकता है। कच्चे तेल में तेजी से ऑयल एक्सप्लोरेशन कंपनी जैसे- ओएनजीसी और ऑयल इंडिया के शेयरों में तेजी आने की संभावना है। वहीं, पेंट और टायर शेयरों में गिरावट देखने को मिल सकती है। क्योंकि, इन कंपनियों की निर्भरता क्रूड पर होती है। ऐसे में क्रूड महंगा हुआ तो इन कंपनियों की इनपुट कॉस्ट बढ़ सकती है।

उधर, युद्ध और जियो पॉलिटिकल टेंशन के बढ़ने से सोने के भाव में तेजी देखने को मिलती है। ऐसे में ईरान के इजरायल पर हमले के बाद गोल्ड में खरीदारी देखने को मिल सकती है। दरअसल, युद्ध जैसे हालात में गोल्ड में निवेश को सुरक्षित माना जाता है।

इतना सब कुछ होने के बाद भी ईरान ने इजरायल पर हमला कर बड़ा पलटवार किया है, जिससे मिडिल ईस्ट में जंग की तपिश और बढ़ती ही जा रही है। दावे के मुताबिक, ईरान ने इजरायल पर 200 मिसाइल दागकर हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह की मौत का बदला लिया है। उसने रॉकेट-मिसाइल से इजरायल के आसमान को धुआं-धुआं कर दिया। वहीं, इजरायल के पीएम नेतन्याहू ने ईरान को अब अंजाम भुगतने की धमकी दी है।

आप मानें या न मानें, पर दुनिया में जंग की तपिश और बढ़ती ही जा रही है। पश्चिम एशिया में तनाव अब सातवें आसमान पर है। ईरान-इजरायल के बीच अब आर-पार की जंग शुरू हो गई है। ईरान ने इजरायल से बदला लिया है और बड़ा पलटवार किया है। गत मंगलवार की रात को ईरान ने इजरायल पर रॉकेट-मिसाइल से अटैक कर तेलअवीव के आसमान को धुआं-धुआं कर दिया। इजरायल पर 180 मिसाइलों की बरसात कर दी इजरायल ने जिस बेस से एफ15 जेट्स को लॉन्च किया था, ईरान ने उसे भी ध्वस्त करने का दावा किया है। ईरान-इजरायल के बीच जंग में एक ओर खामनेई के संग रूस खड़ा है तो दूसरी ओर नेतन्याहू के संग अमेरिका।

इजराइल पर ईरान के बड़े पैमाने पर मिसाइल हमले के बाद तेल अवीव में भारतीय दूतावास ने मंगलवार रात को अपने नागरिकों को सावधानी बरतने और देश के भीतर अनावश्यक यात्रा से बचने की चेतावनी दी। भारतीय मिशन ने कहा कि मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के बीच वह स्थिति पर करीब से नजर रखे हुए है। यह चेतावनी पिछले महीने लेबनान में रहने वाले भारतीय नागरिकों के लिए जारी की गई ऐसी ही एडवाइजरी के बाद आई है।

ईरान ने अपने मिशन को ट्रू प्रॉमिस-2 नाम दिया है। उसके प्रतिरक्षा मंत्री ने कसम खाई है कि इजरायल अगर ईरान पर फिर हमला करता है तो तेहरान बहुत ही करारा जवाब देगा।ईरानी डिफेंस मिनिस्टर ब्रिगेडियर जनरल अजीज नसीरजादेह ने कहा कि अगर नेतन्याहू ने जवाब देने की हिम्मत की तो हमारी पलटवार कहीं अधिक गंभीर होगा और हम अपने पास मौजूद मिसाइलों की एक और अधिक उन्नत श्रृंखला तैनात करेंगे। उन्होंने कहा कि अभी तो हमने केवल ट्रेलर दिखाया है, जबकि पूरी पिक्चर बाकी है।

ईरान ने जैसे ही 200 मिसाइलों के साथ इजरायल पर हमला किया, अमेरिका भी पूरी तरह एक्टिव हो गया। दोस्त इजरायल को ईरानी मिसाइलों से बचाने के लिए अमेरिका ने अपनी सेना को बड़ा आदेश दिया। जो बाइडन ने अमेरिकी सेना को ईरानी मिसाइलों को ध्वस्त करने का आदेश दिया और कहा कि इजरायल-ईरान युद्ध पर अमेरिका की पूरी नजर है। अमेरिका अपने दोस्त इजरायल के साथ पूरी तरह खड़ा है। ईरान के इजरायल पर हमले के बाद अब इस महाजंग में एक तरह से अमेरिका की सीधी एंट्री हो गई है।

ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने ऐलान किया है कि हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की हत्या का बदला लेते हुए इजरायल के नवीनतम सैन्य एयरबेस को पूरी तरह तबाह कर दिया गया है। हमने उस एयरबेस को नक्शे से मिटा दिया है, जहां से हसन नसरल्लाह को मारने के लिए एफ-35 ने उड़ान भरी थी।

ईरानी हमले से इजरायल पूरी तरह से भड़क उठा है। उसने अब आसमान को धुआं-धुआं करने की कसम खा ली है। इस बीच इजरायल ने कहा है कि इजरायली वायुसेना मिडिल ईस्ट में आज रात यानी बुधवार को जोरदार तरीके से हमला करेगी। माना जा रहा है कि ईरानी अटैक के जवाब में इजरायल का यह हमला होगा। ईरान के मिसाइल अटैक के बाद नेतन्याहू ने रिवेंज प्लान बताया और कहा कि वह ईरान को सबक सिखा कर रहेंगे।

इजरायल पर हमले के बाद ईरान में जश्न का माहौल है। ईरान के सरकारी टेलीविजन पर देश के अरक, कौम और तेहरान में लोगों को इजराइल पर मिसाइल दागे जाने का जश्न मनाते हुए भी दिखाया गया। जश्न मनाते लोगों में से कुछ चिल्ला रहे थे, ‘अल्लाह हो अकबर, अमेरिका का नाश हो, इजराइल का नाश हो.’ इजरायल पर हमले के बाद ईरान ने एक और चेतावनी दी। ईरान ने कहा कि अभी तो यह ट्रेलर है. अभी और हमले होंगे।

ईरान मीडिया में दावा किया गया कि ईरान ने अपने हाइपरसोनिक मिसाइलों से इजरायल पर हमला किया है।  ईरानी मिसाइल हमलों ने वायु और रडार ठिकानों के साथ साथ सुरक्षा तंत्र को निशाना बनाया, जहां हमास और हिजबुल्ला के कमांडरों की हत्या की योजना बनाई गई थी। ईरान ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत ईरान को अपना बचाव़ करने का अधिकार है।

ईरानी अटैक पर इजराइल का कहना है कि उसने कई मिसाइलों को नष्ट कर दिया है. वहीं अमेरिका का कहना है कि उसका प्रहार करने वाला तंत्र इजराइली रक्षा प्रणाली की सहायता करेगा। ईरान का दावा है कि उसकी मिसाइलों ने अपने टारगेट पर सटीक प्रहार किया है। ईरान का यह भी दावा है कि उसने उन बेसों को ध्वस्त कर दिया है, जहां से इजरायल ने एफ15 को लॉन्च किया था। ईरान के अर्द्धसैनिक बल रिवोलूश्यनरी गार्ड ने कहा कि उसने इजराइल के विरूद्ध जो मिसाइलें दागीं, उनमें 90 प्रतिशत निशाने पर सटीक लगी हैं।

पश्चिम एशिया में जंग की आग भड़क उठी है। अब ईरान और इजरायल के बीच आर-पार की लड़ाई शुरू हो गई है। ईरानी हमले के कारण इजराइली नागरिकों को सुरक्षित स्थानों का आश्रय लेने के मजबूर होना पड़ा। ईरान का दावा है कि उसने हाइपरसोनिक मिसाइलों से इजरायल को निशाना बनाया है। इजरायल पर हमले के बाद ईरान में जश्न का माहौल है। फिलहाल, इजरायल को कितना नुकसान हुआ है, इसकी डिटेल सामने नहीं आई है। इस युद्ध में इजरायल की सीधे तौर पर अमेरिका मदद कर रहा है।

वहीं, ईरान के साथ अमेरिका का दुश्‍मन रूस खड़ा हुआ है।

सच कहूं तो अपने दुश्‍मनों के खिलाफ इजरायल के आक्रामक स्‍वभाव से अब हर कोई वाकिफ है। दो महीने पहले ईरान की राजधानी तेहरान में घुसकर इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने हमास के बड़े नेता इस्‍माइल हानिया को मौत के घाट उतारने में सफलता पाई। इस घटना के बाद तेहरान ने बदला लेने की कसम तो खाई लेकिन अमेरिका द्वारा इस क्षेत्र में अपने युद्ध पोत से लेकर आधुनिक मिसाइल सिस्‍टम को तैनात करने के बाद ईरान बैकफुट पर नजर आया।

वहीं, इस घटना के दो महीने बाद रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने कथित तौर पर इजरायल के साथ एक बड़ा खेल कर दिया। महज दो दिन पहले ही ईरान के सुप्रीम लीडर से मिलने के लिए पुतिन ने अपना खास दूत भेजा था। अगले ही दिन ईरान ने नई ऊर्जा के इजरायल में यह एयरस्‍ट्राइक कर दी। बता दें कि गत सोमवार को ईरान में रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन पहुंचे थे। उन्‍होंने राजधानी तेहरान में ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन से मुलाकात की थी।

वहीं, रूस की तरफ से जारी एक सरकारी बयान में गत सोमवार को स्पष्ट कहा गया कि व्यापार और आर्थिक व सांस्कृतिक और मानवीय क्षेत्रों में रूसी-ईरानी सहयोग को बढ़ाने को लेकर दोनों देशों के बीच चर्चा हुई। जबकि हकीकत यह  है कि वो रूसी पीएम पुतिन का संदेश लेकर ईरान के पास पहुंचे थे। वहीं, इससे पहले रूस की तरफ से भी लेबनान की राजधानी बेरूत में ईरान समर्थित हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह को इजरायल द्वारा मौत के घाट उतारे जाने को एक राजनीतिक हत्या करार दिया था, जिसके पीछे के सियासी मायने को समझने की दरकार है।

बहरहाल, पिछले दो महीने के घटनाक्रम को देखें तो महसूस होगा कि इजरायल के आक्रामक रवैये पर ईरान बड़ी-बड़ी बातें तो कर रहा था, परंतु वो बेंजामिन नेतन्‍याहू की सेना का कुछ बिगाड़ नहीं पाया। उधर,  हमास का नामों निशान मिटाने की कसम खाए बैठे इजरायल के हौसले इस कदर बुलंद हो चुके थे कि उसने लेबनान में हिजबुल्‍लाह के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया। यहां पर इजरायल ना सिर्फ हिजबुल्‍लाह चीफ हसन नसरल्‍लाह को मौत के घाट उतारने में सफल रहा, बल्कि उसने अपनी उत्‍तरी सीमा पर स्थित इस पड़ोसी देश में ग्राउंड ऑपरेशन भी शुरू कर दिया। ऐसे में समझा जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने अपने दूत के रूप में रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन को तेहरान भेजा। जिसके बाद ही ईरान में नई ऊर्जा आई और उसने इजरायल के खिलाफ अब तक का सबसे घातक हमला कर दिया। जिसका दुनिया पर घातक असर निश्चय ही पड़ेगा।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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