भ्रष्टाचारियों की ढाल बनी केंद्र और राज्यों की सरकारें
केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और राज्य सरकारों ने 212 मामलों में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए 543 अफसरों व कार्मिकों पर अभियोजन स्वीकृति लंबित है। भ्रष्टाचार को लेकर राजनीतिक दल बड़े-बड़े दावे करते हैं।
वादे हैं वादों क्या, भ्रष्टाचार को लेकर कुछ ऐसी ही हालत भारत की है। भ्रष्टाचार को लेकर राजनीतिक दल बड़े-बड़े दावे करते हैं। भाजपा गठबंधन ने लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों के भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाया था। इसी तरह विपक्षी दलों ने भी केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को निशाने पर रखा था। सत्ता पक्ष और विपक्ष के भ्रष्टाचार पर एक-दूसरे पर जबरदस्त प्रहार के बावजूद यह मुद्दा सुरसा के मुंह की तरह लगातार फैलता ही जा रहा है। भ्रष्टाचार की इस गंगोत्री से कोई अछूता नहीं है। भ्रष्टाचार का जड़ से खात्मा करना तो दूर बल्कि सत्तातंत्र भ्रष्टाचारियों की ढाल बन कर खड़ा है। इसमें कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं हैं। देश को खोखला करने वाले इस धीमे जहर को संरक्षण देने में केंद्र और राज्यों की सरकारों पीछे नहीं हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और राज्य सरकारों ने 212 मामलों में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए 543 अफसरों व कार्मिकों पर अभियोजन स्वीकृति लंबित है। सीबीआई के कामकाज पर निगरानी रखने वाले केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) की सरकारों में अभियोजन स्वीकृति के 41 मामले शामिल हैं जिनमें 149 अधिकारी भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल भ्रष्टाचार की सबसे अधिक शिकायतें रेलवे कर्मचारियों के खिलाफ की गईं।
इसके बाद दिल्ली के स्थानीय निकायों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के खिलाफ शिकायतें मिलीं। रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में सभी श्रेणी के अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की कुल 74,203 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 66,373 का निपटारा कर दिया गया और 7,830 शिकायतें लंबित हैं। सीवीसी की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार में वित्त मंत्रालय के विभिन्न विभागों में अभियोजन स्वीकृति के सबसे ज्यादा 75 मामले लंबित हैं जिनमें 197 भ्रष्ट अफसर-कार्मिक फंसें हैं। इनमें वित्तीय सेवा विभाग के 53 मामलों में मुकदमा चलाने की अनुमति लंबित है। वित्त मंत्रालय के बाद रक्षा, रेल, शिक्षा तथा कार्मिक मंत्रालयों में लंबित मामलों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा है। राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों में भ्रष्टाचार के मामलों में सैकड़ों अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी जा रही है। राज्यों/केंद्रशासित राज्यों में कुल 41 भ्रष्टाचार के मामलों 149 अधिकारी आरोपित हैं। इनमें महाराष्ट्र में 3 मामलों में 41 अधिकारी, उत्तर प्रदेश में 10 मामलों में 31, प.बंगाल में 4 मामलों 25, केंद्रशासित जम्मू-कश्मीर में 4 में 19, पंजाब में 4 में 6, मध्यप्रदेश में 1 भ्रष्टाचार के प्रकरण में एक अधिकारी शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक नियमों के अनुसार सीबीआइ से प्रस्ताव भेजे जाने के बाद अधिकतम तीन माह में अभियोजन स्वीकृति देने का प्रयास किया जाना चाहिए लेकिन लंबित मामलों में 249 अधिकारियों के खिलाफ 81 मामले तीन माह की अवधि से अधिक पुराने हैं।
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सीवीसी की रिपोर्ट में उन मामलो का भी जिक्र किया है जिनमें जांच में दोषी पाए गए अफसरों के खिलाफ आयोग की सिफारिशों को भी दरकिनार कर दिया गया। इनमें विभिन्न मंत्रालयों और केंद्र सरकार के अधीन संस्थाएं (पीएसयू-बैंक आदि) शामिल हैं। सीवीसी केंद्रीय मंत्रालयों और पीएसयू-बैंकों में मुख्य सतर्कता अधिकारियों (सीवीओ) के जरिये भ्रष्टाचार व अनियमितताओं पर नजर रखता है। सीवीसी ने कहा है कि कुछ संगठन आयोग की सलाह पर अमल करने और आरोपी अधिकारी को चार्जशीट जारी करने में देरी करते हैं। इससे कई मामलों में दोषी अधिकारी सेवानिवृत्त हो जाता है और समय सीमा चूकने के कारण कोई भ्रष्ट अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती। गौरतलब है कि सरकारी विभागों में विषबेल की तरह बढ़ते भ्रष्टाचार पर भारत विश्व में कलंकित हो रहा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 के लिए भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में भारत 180 देशों में 93वें स्थान पर रहा। जबकि वर्ष 2022 में भारत की रैंक 85 वीं थी। अर्थात भारत में भ्रष्टाचार की रफ्तार थमी नहीं है। इसमें तेजी आई है। इस सूचकांक में भारत आठ पायदान आगे बढ़ गया। वर्ष २०२३ की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में पाकिस्तान (133) और श्रीलंका (115) अपने अपने कर्ज के बोझ तले दबे हैं और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि हालांकि दोनों देशों में मजबूत न्यायिक निगरानी है, जो सरकार को नियंत्रण में रखने में मदद कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन (76) ने पिछले दशक में भ्रष्टाचार के लिए 37 लाख से अधिक सार्वजनिक अधिकारियों को दंडित करके अपनी आक्रामक भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई से सुर्खियां बटोरीं।
भ्रष्टाचार से देश एक भी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अछूता नहीं है। केंद्र हो या राज्यों में चाहे किसी भी राजनीतिक दल की सरकारें हों, किन्तु एक भी सत्तारुढ़ दल यह दावा नहीं कर सकता की कोई भी एक विभाग पूर्णत: भ्रष्टाचार से मुक्त हो सका है। देश की तरक्की मे बाधक बना यह मुद्दा सिर्फ शोर-शराबे तक ज्यादा सीमित है। जमीनी स्तर पर कोई भी राजनीतिक दल इसके जड़ सहित खात्मे की दिशा को लेकर गंभीर नहीं है। ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार के मामलों सिर्फ नौकरशाह ही शामिल हैं। राजनेता भी इसमें पीछे नहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों के गठजोड़ के कारण ही भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता जा रहा है। केंद्र और राज्यों की सरकारें विकास और पारदर्शिता के चाहे जितने दावे कर लें, जब तक भ्रष्टाचार मौजूद है तब तक देश इस मुद्दे पर शर्मसार होता रहेगा।
- योगेन्द्र योगी
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