वजूद बचाने के लिए लड़ता-भिड़ता इजरायल, अमेरिका का मकसद अपने आप पूरा होता जा रहा, ईरान के सामने कड़ा इम्तिहान

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ANI/Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Oct 1 2024 3:29PM

अमेरिका के लिए आंखों का कांटा ईरान लंबे समय से है। अमेरिका की तरफ से ईरान पर कई सारे प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। वहीं मीडिल ईस्ट में ईरान के बढ़ते प्रभाव कई सारे चरमपंथी जमात यमन में हूती, लेबनान में हिजबुल्लाह, इराक के अंदर चरमपंथी समूहों को ईरान का खुला समर्थन है, जिन्होंने क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति स्थापित की है। अमेरिका के लिए ये समूह बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं।

हसन नसरल्लाह अब दुनिया को आतंकित नहीं कर पाएगा। उसके जाने के बाद दुनिया और ज्यादा सुरक्षित हो गई है। 27 सितंबर की शाम इजरायल ने हिजबुल्लाह के मुख्यालय पर बमबारी की और कई घंटों के बाद नसरल्लाह की मौत की पुष्टि हुई। इस घटना ने पूरे मीडिल ईस्ट में हड़कंप मचा दिया है। दरअससल, हिजबुल्ला लेबनान का चरमपंथी संगठन है और उसकी अपनी सेना है। हिजबुल्लाह राजनीतिक पार्टी भी है। लेबनान की संसद में उसके सांसद बैठते हैं। ये सारा मुकाम नसरल्लाह के दौर में हासिल हुआ। वो 1992 में हिजबुल्लाह का सरगना बना था। बमबारी में उसके जाने के बाद मीडिल ईस्ट में सबसे खतरनाक दौर की शुरुआत भी हो चुकी है। नसरल्लाह ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामनेई का करीबी था। ईरान ने उसके सम्मान में पांच दिनों के शोक का ऐलान भी किया। ये भी कहा कि इजरायल से बदला लिया जाएगा। कहा जा रहा है करि ईरान ने मध्य पूर्व में अपना सबसे विश्वसनीय सहयोगी खो दिया। 

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इजरायल के मिशन नसरल्लाह से अमेरिका ने झाड़ा पल्ला

हसन नसरल्लाह की मौत के बाद अमेरिकी प्रशासन ने आनन फानन में इस अटैक से खुद का पल्ला झाड़ लिया था। बाइडेन प्रशासन ने साफ किया था कि हमले से उसका कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि इजरायलियों ने जरूर कहा कि उन्होंने पहले ही इस बारे में इंफार्म कर दिया था। अमेरिका भले ही खुद को पाक-साफ बता रहा हो, लेकिन नसरल्लाह को मारने के लिए इस्तेमाल की गई मिसाइलें तो संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ही उपलब्ध कराई गई थीं। ऐसे में वे लाख खुद को इस हमले से दूर करने की कोशिश कर लें, लेकिन इजरायल के इतने बड़े ऑपरेशन को अमेरिका को साथ में रखें बिना किया जाना इतना भी आसान नहीं है। 

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नेतन्याहू आर पार के मूड में नजर आ रहे

इजरायली पीएम बेन्यामिन नेतन्याहू ने ईरान के लोगों से कहा कि हर दिन, आप एक ऐसे शासन को देखते हैं जो आपको अपने अधीन कर लेता है। अगर उन्हें आपकी परवाह है, तो वह पूरे मिडिल ईस्ट में बेवजह के युद्धों पर अरबों डॉलर बर्बाद करना बंद करेगा। आपके जीवन में सुधार करना शुरू कर देगा। जब आखिर में ईरान आज़ाद होगा और वह पल बहुत जल्द आएगा, तब हमारे दो देश- इस्राइल और ईरान शांति से रहेंगे। मतलब नेतन्याहू ने ईरानी लोगों को दिए अपने संदेश में साफ कर दिया कि ईरान ने उसके खिलाफ कोई भी कदम उठाया तो इजरायली सेना उस पर धावा बोल देगी। 

ईरान में सत्ता परिवर्तन करना चाहता है अमेरिका

अमेरिका का ईरान को उकसाने का सीधा मकसद उसके युद्ध में एंट्री लेने से है। दरअसल, अमेरिका का मुख्य मकसद ईरान में सत्ता परिवर्तन या अपनी मर्जी की सरकार को स्थापित करना है। लेकिन इस मकसद को डायरेक्ट अटैक करके इसे हासिल नहीं किया जा सकता है। ऐसे में इजरायल पर ईरान की तरफ से उठाए गए कोई भी कदम को लेकर अमेरिका सीधे जंग में उतर सकता है। वैसे भी सीधे किसी देश में कार्रवाई के लिए सैनिक भेजने वाले पिछले इराक और अफगानिस्तान वाले कदम के बाद अमेरिका ने अपनी नीति में बदलाव लाए हैं। एयर स्ट्राइक और बमबारी करके ईरान के सैन्य बल को पहले नष्य किया जाएगा। इसके बाद ईरान में मौजूद विरोधी गुटों को समर्थन और हथियार देकर आगे बढ़ाया जाएगा

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अमेरिका को क्यों चुभता है  ईरान

अमेरिका के लिए आंखों का कांटा ईरान लंबे समय से है। अमेरिका की तरफ से ईरान पर कई सारे प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। वहीं मीडिल ईस्ट में ईरान के बढ़ते प्रभाव कई सारे चरमपंथी जमात यमन में हूती, लेबनान में हिजबुल्लाह, इराक के अंदर चरमपंथी समूहों को ईरान का खुला समर्थन है, जिन्होंने क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति स्थापित की है। अमेरिका के लिए ये समूह बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं। अब उसका मानना है कि बिना ईरान में सत्ता बदले बिना इराक और अफगानिस्तान में दबदबा नहीं कायम हो सकेगा।

ईरान के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल भंडार 

ईरान के पास तेल और गैस का बड़ा भंडार है। ईरान के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल भंडार है। वहीं, गैस के मामले में वह दुनिया में दूसरे नंबर पर है। इसके साथ ही ईरान में दूसरे खनिज पदार्थ भी बड़ी मात्रा में हैं। ईरान की सीमा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, इराक, तुर्की, आर्मेनिया और रूस से मिलती हैं। इस क्षेत्र में खनिज पदार्थों का विशाल भंडार है, जो बेशकीमती है। ईरान के जरिए ही खनिज से समृद्ध मध्य एशिया में पहुंचा जा सकता है। ईरान में प्रभुत्व स्थापित किए बिना यह संभव नहीं है।

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