महाशक्ति नहीं है चीन, कई बार युद्ध हारने का रिकॉर्ड है उसके नाम
इस समय की बात करें तो चीन के बौखलाने की कई और वजहें भी हैं। दुनियाभर में कोरोना फैलाने की चीन की साजिश बेनकाब हो गई है और उसकी अर्थव्यवस्था भी दांव पर लग गई है। चीन में स्थापित दुनिया के कई देशों की कंपनियां भारत आने की तैयारी भी कर रही हैं।
भारत सरकार ने यह पहली बार आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया है कि चीन की सेना भारतीय क्षेत्र में घुस आई है। चीनी सेना की घुसपैठ पर आधिकारिक बयान इस बार स्वयं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से आया है इसलिए यह साफ हो गया है कि इस बार चीन का मंसूबा जितना खतरनाक है, भारत सरकार भी उसी दृढ़ता के साथ जवाब देने की तैयारी कर रही है। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से दुनिया भर में आलोचना का शिकार हो रही चीन को यह लग रहा है कि इस तनातनी के सहारे वो दुनिया के बड़े देशों का ध्यान भटका सकती है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े देशों को चीन विरोधी एजेंडे को त्यागने को मजबूर कर सकती है और यही सोच कर चीन अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने में लगा हुआ है।
चीनी सेना की घुसपैठ पर रक्षा मंत्री का बयान
सबसे पहले बात कर लेते हैं भारत सरकार के कद्दावर मंत्री और सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले मोदी सरकार के अहम मंत्रियों में शामिल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान की। रक्षा मंत्री ने यह माना कि पूर्वी लद्दाख में बड़ी तादाद में चीनी सेना प्रवेश कर गई है। रक्षा मंत्री के मुताबिक, “चीन वहां तक आ गया है जिसे वह अपना मानता है, जबकि भारतीय उसे अपना मानते हैं। दोनों देशों के बीच इस बात को लेकर मतभेद हुए हैं और अच्छी-खासी संख्या में चीन के लोग भी आ गए हैं।'' हालांकि इसके साथ ही इन्होने पुरजोर शब्दों में यह भी कहा कि भारत अपनी मौजूदा स्थिति से किसी भी कीमत पर कदम पीछे नहीं लेगा और सरकार किसी भी रूप में देश का सर झुकने नहीं देगी। उन्होंने यह विश्वास दिलाया कि सरकार को जो करना चाहिए, वो सरकार ने अपनी तरफ से किया है।
5 मई से शुरू हुआ विवाद, 6 जून की तारीख है महत्वपूर्ण
भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (जिसे एलएसी के नाम से जाना जाता है) पर कई स्थानों को लेकर दोनों देशों में विवाद है। चीन अपनी दादागिरी के बल पर भारतीय क्षेत्र में यदा-कदा घुसपैठ करता रहा है लेकिन अब भारतीय सेना भी मुंहतोड़ जवाब दे रही है। ताजा विवाद की शुरूआत पिछले महीने 5 मई को हुई थी, जब सैंकड़ों चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए थे। उसी दिन भारतीय सीमा में गश्त कर रहे हमारे सैनिकों के साथ उन्होंने हाथापाई भी की। इसके बाद हालात तेजी से बदलने लगे। सीमा पर भारतीय सेना और कूटनीतिक स्तर पर भारत सरकार के रवैये ने चीन को यह बखूबी समझा दिया कि इस बार उसे करारा जवाब मिलने वाला है। भारत के आत्मबल को देखिए कि उसने मध्यस्थता करने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऑफर को भी ठुकराते हुए यह साफ-साफ कहा कि चीन के साथ मतभेद सुलझाने के लिए वह अकेले ही काफी है। भारत के इस स्टैंड ने चीन को यह बता दिया कि सीमा पर चीनी हरकत से निपटने में भारत सक्षम है और वह किसी भी स्तर पर इसे अंतर्राष्ट्रीय विवाद का मुद्दा नहीं बनने देगा, जैसा कि चीन की मंशा है। ऐसे में तुंरत ही चीन ने शांति का राग अलापना शुरू कर दिया और अब बताया जा रहा है कि भारतीय और चीनी सेना के अधिकारियों के बीच सीमा पर शांति बनाए रखने को लेकर 6 जून को अहम बैठक होने जा रही है।
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यह भारत 1962 का भारत नहीं है
एक तरफ जहां बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश की जा रही है तो वहीं साथ ही दूसरी तरफ भारत ने भी चीनी सेना की तैयारियों को देखते हुए अपनी रक्षा तैयारियों को तेज कर दिया है। चीन के नापाक मंसूबों को देखते हुए भारत ने चीन सीमा से सटे अपने सैन्य अड्डों पर तोपों, टैंकों, हथियारों और अन्य युद्धक उपकरणों को तैनात कर दिया है। भारतीय सेना वहां पर लगातार अपनी ताकत और संख्या को बढ़ा रही है। चीन की चालबाजी देखिए कि एक तरफ जहां वो शांति का राग अलाप रहा है, रोजाना सैन्य अधिकारी के स्तर पर बातचीत कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सीमा पर सैन्य ताकत बढ़ा रहा है और तोप, टैंक सहित अन्य युद्धक साजो-सामान भी एकत्र कर रहा है। साफ-साफ लग रहा है कि चीन भारत को बातचीत में उलझा कर 1962 की तरह ही धोखा देने का षड्यंत्र रच रहा है। ऐसा मंसूबा बनाते समय शायद चीन यह भूल रहा है कि यह 2020 का भारत है। यह 1962 का भारत नहीं है जब चीन ने भारत को हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे में उलझा कर धोखे से आक्रमण कर दिया था। उस समय भी कुर्बानी के जोश और जज्बे से भरी हुई भारतीय सेना चीनी सेना पर भारी पड़ी थी लेकिन अचानक हुए हमले और सैन्य तैयारियां नहीं होने की वजह से हमें हार का सामना करना पड़ा था। उस समय एक तरफ चीन था, जिसके तानाशाह ने धोखे से भारत को सबक सिखाने की योजना कई साल में बनाई थी तो दूसरी तरफ भारत था, जिसकी सरकार को यह आभास भी नहीं था कि चीन हम पर हमला कर सकता है। कूटनीतिक तैयारियों का आलम देखिए कि हमारे सबसे करीबी माने जाने वाले सोवियत संघ रूस ने भी हमें ठेंगा दिखा दिया था। लेकिन अब माहौल बदल गया है। भारत की सेना हो या सरकार, सभी चीन के नापाक मंसूबों को समझ चुके हैं। सीमा पर इस बार भारतीय सेना पूरी तरह से तैयार है। राजधानी दिल्ली में बैठी सरकार कूटनीतिक स्तर पर भी चीन की घेरेबंदी करने की तैयारी कर रही है।
इस बार क्यों बौखलाया है चीन ?
दरअसल, चीन की फितरत बहुत अजीब-सी है। आत्मसम्मान से रहित यह देश अपने स्टैंड को बदलने में तनिक भी वक्त नहीं लगाता है। कुछ महीने पहले, यही चीन भारत से लगातार गुहार लगा रहा था कि अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों की सरकारों द्वारा कोरोना वायरस को चीनी वायरस कह कर संबोधित करने के मुद्दे पर भारत उसका साथ दे और उसके कुछ दिनों बाद ही चीन ने अपना असली चेहरा दिखा दिया।
हालांकि इस बार चीन के बौखलाने की कई और वजहें भी हैं। दुनियाभर में कोरोना फैलाने की चीन की साजिश बेनकाब हो गई है और उसकी अर्थव्यवस्था भी दांव पर लग गई है। चीन में स्थापित दुनिया के कई देशों की कंपनियां भारत आने की तैयारी कर रही हैं तो वहीं सवा अरब से ज्यादा आबादी वाले देश भारत में चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम भी जोर पकड़ती जा रही है। आर्थिक नुकसान की इसी आशंका से ग्रस्त चीन इस तरह की हरकतें कर रहा है।
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लड़ाइयों में पराजित होने का लंबा रिकॉर्ड रहा है चीन का
यह बात उन लोगों को बहुत अजीब लग सकती है जो चीन को एक महाशक्ति मानते हैं लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि चीन उतना ही प्राचीन देश है जितना कि भारत। युद्ध में हारने का चीन का एक लंबा इतिहास रहा है। यह भी एक सच्चाई है कि इतिहास में गिने-चुने मौकों पर ही चीन को विजय हासिल हुई है, ज्यादातर लड़ाइयों में चीन को हार का सामना ही करना पड़ा है। आधुनिक चीन के इतिहास की बात करें तो 1894-95 में उसके आकार की तुलना में काफी छोटे देश जापान ने चीन को बुरी तरह से हरा दिया था। इसके बाद एक दौर ऐसा भी आया जब ब्रिटेन, रूस, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे देशों ने खरबूजे की तरह चीन को आपस में बांट लिया था। उस समय एक देश के तौर पर चीन का अस्तित्व स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में ही था लेकिन लगातार हो रही पराजय की वजह से इन देशों के साथ चीन को कई तरह की अपमानजनक संधि करनी पड़ी थी और इसकी दयनीय हालत को इतिहास में चीनी खरबूजे के काटे जाने के नाम से आज भी जाना जाता है। 1949 की चीनी क्रांति के बाद वहां पर कम्यूनिस्ट सरकार की स्थापना हुई जो आज तक चल रही है लेकिन इनके दौर में भी चीन को कई बार हार का सामना करना पड़ा। 1962 की लड़ाई भले ही चीन धोखे से जीत गया लेकिन इसके कुछ सालों के बाद ही चीन को सिक्किम के मोर्चे पर भारत से करारी हार का सामना करना पड़ा था। पिछले कई दशकों से चीन कभी पाकिस्तान, कभी श्रीलंका, कभी नेपाल या कभी अन्य किसी देश के सहारे भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है लेकिन इस नापाक कोशिश में भी चीन थोड़े समय के लिए ही भारी पड़ता नजर आता है। पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सभी मोर्चों पर चीन को बार-बार भारत से हार का सामना ही करना पड़ा है और डोकलाम का घाव तो अभी ताजा ही है।
-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)
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