सड़कों पर जमे प्रदर्शनकारी सरकार का विरोध कर रहे हैं या जनता का ?

Farmers Protest

दिल्ली के शाहीन बाग और किसानों जैसे धरने यदि हफ्तों तक चलते रहते हैं तो देश को अरबों रुपए का नुकसान हो जाता है। रेल रोको अभियान सड़कबंद धरनों से भी ज्यादा दुखदायी सिद्ध होते हैं। ऐसे प्रदर्शनकारी जनता की भी सहानुभूति खो देते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने जन-प्रदर्शनों के बारे में जो ताज़ा फैसला किया है, उससे उन याचिकाकर्ताओं को निराशा जरूर हुई होगी, जो विरोध-प्रदर्शन के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं। यदि किसी राज्य में जनता को विरोध-प्रदर्शन का अधिकार न हो तो वह लोकतंत्र हो ही नहीं सकता। विपक्ष या विरोध तो लोकतंत्र की मोटरकार में ब्रेक की तरह होता है। विरोधरहित लोकतंत्र तो बिना ब्रेक की गाड़ी बन जाता है। अदालत ने विरोध-प्रदर्शन, धरने, अनशन, जुलूस आदि को भारतीय नागरिकों का मूलभूत अधिकार माना है लेकिन उसने यह भी साफ़-साफ़ कहा है कि उक्त सभी कार्यों से जनता को लंबे समय तक असुविधा होती है तो उन्हें रोकना सरकार का अधिकार है।

इसे भी पढ़ें: भारत की 'राष्ट्र प्रथम' विदेश नीति के चलते ही तुनकमिजाजों के तेवर हो रहे हैं ढीले

अदालत की यह बात एकदम सही है, क्योंकि आम जनता का कोई हुक्का-पानी बंद कर दे तो यह भी उसके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। यह सरकार का नहीं, जनता का विरोध है। प्रदर्शनकारी तो सीमित संख्या में होते हैं लेकिन उनके धरनों से असंख्य लोगों की स्वतंत्रता बाधित हो जाती है। लाखों लोगों को लंबे-लंबे रास्तों से गुजरना पड़ता है, धरना-स्थलों के आस-पास के कल-कारखाने बंद हो जाते हैं और सैकड़ों छोटे-व्यापारियों की दुकानें चौपट हो जाती हैं। गंभीर मरीज़ अस्पताल तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देते हैं।

इसे भी पढ़ें: कृषि कानूनों पर पंजाब के विशेषज्ञों ने लगाई मुहर, कांग्रेस का दोहरा चरित्र उजागर

शाहीन बाग और किसानों जैसे धरने यदि हफ्तों तक चलते रहते हैं तो देश को अरबों रु. का नुकसान हो जाता है। रेल रोको अभियान सड़कबंद धरनों से भी ज्यादा दुखदायी सिद्ध होते हैं। ऐसे प्रदर्शनकारी जनता की भी सहानुभूति खो देते हैं। उनसे कोई पूछे कि आप किसका विरोध कर रहे हैं, सरकार का या जनता का ? इस तरह के धरने चलाने के पहले अब पुलिस की अनुमति लेनी जरूरी होगी, वरना पुलिस उन्हें हटा देगी। पता नहीं, दिल्ली सीमा पर चल रहे लंबे धरने पर बैठे किसान अब अदालत की सुनेंगे या नहीं। इन धरनों और जुलूसों से एक-दो घंटे के लिए यदि सड़कें बंद हो जाती हैं और कुछ सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा हो जाता है तो कोई बात नहीं लेकिन यदि इन पैंतरों से मानव-अधिकारों का लंबा उल्लंघन होगा तो पुलिस-कार्रवाई न्यायोचित ही कही जाएगी। पिछले 60-65 वर्षों में मैंने ऐसे धरने, प्रदर्शन, जुलूस और अनशन दर्जनों बार स्वयं आयोजित किए हैं लेकिन इंदौर, दिल्ली, लखनऊ, वाराणसी, भोपाल, नागपुर आदि शहरों की पुलिस ने उन पर कभी भी लाठियां नहीं बरसाईं। महात्मा गांधी ने यही सिखाया है कि हमें अपने प्रदर्शनों को हमेशा अहिंसक और अनुशासित रखना है। उन्होंने चौरीचौरा का आंदोलन बंद क्यों किया था, क्योंकि आंदोलनकारियों ने वहां हत्या और हुड़दंग मचा दिया था।

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़