Haj Yatra 2023: केरल से 7 जून को निकलेगा यात्रियों का पहला ग्रुप, जानिए क्या होती है हज यात्रा
हर साल दुनिया भर से लाखों मुसलमान अपने पवित्र तीर्थ स्थल हज की यात्रा करते हैं। बता दें कि सऊदी अरब के मक्का में हज के लिए जाते हैं। इस साल 7 जून को केरल से जेद्दा के लिए हज यात्रियों का पहला जत्था निकलेगा।
हर साल दुनिया भर से मुस्लिम लोग लाखों की संख्या में अपने पवित्र तीर्थ स्थल मक्का की यात्रा करने जाते हैं। इस यात्रा को हज यात्रा भी कहा जाता है। बता दें कि इस साल यानी की 2023 में हज यात्रा पर जाने की आखिरी तारीख 20 मार्च थी। 7 जून को तीर्थयात्रियों का पहला जत्था हज यात्रा के लिए केरल से जेद्दा के लिए निकलेगा। ऐसे में अगर आपके मन में भी यह सवाल है कि हज आखिर क्या होती है और इसे कैसे पूरा किया जाता है तो यह आर्टिकल आपके लिए है। इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको हज और हज यात्रा किए जाने की पूरी जानकारी दे रहे हैं।
जानिए क्या है हज यात्रा
बता दें कि इस्लाम धर्म में कुल 5 फर्ज बताए जाते हैं। जिनमें से रोजा, कलमा, नमाज, जकात और हज है। रमजान के पाक महीने में मुस्लिम लोग रोजा कर अल्लाह की इबादत करते हैं। वहीं कलमा यानी की अल्लाह के पैगंबर मोहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के उसूलों पर भरोसा करना होता है। नमाज का अर्थ है कि दिन के अलग-अलग पहर में 5 बार नमाज के जरिए अल्लाद की इबादत करना और जकात यानी की जरूरतमंद और गरीबों को अपनी कमाई के कुछ हिस्से से हर संभव मदद करना। इसी तरह हज भी एक धार्मिक कर्तव्य है, जिस हर मुस्लिम को अपने पूरे जीवन में कम से कम एक बार जरूर पूरा करना चाहिए।
हर वह व्यक्ति और स्त्री जो सेहतमंद शरीर के साथ हज का खर्च उठाने में सक्षम होते हैं, उनके लिए हज यात्रा अनिवार्य मानी गई है। शारीरिक और आर्थिक रूप से हज करने में सक्षम होने की स्थिति इस्तिताह कहते हैं। वहीं जो मुस्लिम इस धार्मिक कर्तव्य को पूरा करने का काम करता है, उसे मुस्ताती कहते हैं। बता दें कि मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार, इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने पत्थर की एक छोटी-सा घनाकार इमारत बनाई थी। जिसे वर्तमान में काबा कहा जाता है। जिसके बाद धीरे-धीरे लोगों ने इस स्थान में अलग-अलग भगवानों की पूजा करनी शुरू कर दी।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब को अल्लाह ने उन्हें काबा को पहले जैसी स्थिति में जाने का आदेश दिया और वहां पर सिर्फ अल्लाह की इबादत करने का हुक्म दिया। जिसके बाद 628 में पैगम्बर ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा की शुरूआत की। बता दें कि इस यात्रा को इस्लाम की पहली तीर्थ यात्रा कहा गया। इसके बाद इस यात्रा के दौरान पैगम्बर मोहम्मद ने इस धार्मिक परंपरा को शुरू किया। जिसे हज कहा जाता है। हर साल दुनियाभर के लाखों मुस्लिम सऊदी अरब के मक्का में हज के लिए जाते हैं। हज को पूरा करने में 5 दिन का समय लगता है। यह यात्रा ईद उल अजहा या बकरीद के साथ पूरी होती है।
कब करते हैं हज यात्रा
इस्लामिक कैलेंडर के 12वें और आखिरी महीने जु अल-हज्जा की 8वीं से 12वीं तारीख तक हज यात्रा की जाती है। बता दें कि इस्लामिक कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर पर आधारित होता है। इसलिए पश्चिमी देशों में इस्तेमाल होने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक इसमें 11 दिन कम होते हैं। इसी कारण ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से हज यात्रा की तारीखों में बदलाव होता रहता है।
ऐसी होती है हज यात्रा
हज तीर्थ यात्री उन लाखों लोगों के जलूस में शामिल होते हैं, जो एक साथ हज वाले सप्ताह में मक्का में एकत्र होते हैं। साथ ही यहां पर होने वाले कई धार्मिक अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हैं। हर मुस्लिम व्यक्ति घनाकार इमारत यानी की काबा के चारों ओर सात बार चक्कर लगाता है। बता दें कि यह मुस्लिमों के लिए एक प्रार्थना की दिशा होती है, जो सफा और मरवा नाम की पहाड़ियों के आगे-पीछे चलता है। इसके बाद जमजम के कुएं से पानी पिया जाता है और चौकसी में खड़ा होने के लिए माउंट अराफात के मैदानों में जाता है। फिर शैतान को पत्थर मारने की रस्म पूरी की जाती है। इसके बाद हज पर आए तीर्थ यात्री अपना सिर मुंडवाते हैं और पशु की बलि के साथ रस्म अदा की जाती है। इस क्रिया के बाद तीन दिवसीय वैश्विक उत्सव ईद अल-अजहा यानी बकरा ईद मनाई जाती है।
इतना आता है खर्च
देश के अलग-अलग शहरों के यात्रियों को उनके शहर के हिसाब के हज का खर्च उठाना पड़ता है। अगर आप साल 2022 के आंकड़ों की बात करें तो दिल्ली से हज यात्रा पर जाने वाले यात्री को 3 लाख 88 हजार रुपए, लखनऊ ने यात्रा करने वाले यात्री को 3 लाख 90 हजार और गुवाहाटी से हज यात्री को 4 लाख 39 हजार रुपए का खर्च उठाना पड़ा था।
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