चुनौतियों के संग दिल्ली में ‘आतिशी’ पारी का आरंभ?
पार्टी कार्यकर्ता आतिशी की ताजपोशी को बेशक ‘आतिशी पारी’ कह रहे हों, पर चुनौतियों की भी कोई कमी नहीं है? सभी भली भांति जानते हैं कि नई मुख्यमंत्री के लिए करने को कुछ ज्यादा नहीं है। सिर्फ नाम भर की मुख्यमंत्री रहेंगी।
मैं आतिशी ईश्वर की शपथ लेती हूं...........के साथ ही आतिशी दिल्ली की 8वीं और तीसरी महिला मुख्यमंत्री बन गईं। पार्टी ने बहुत सोच समझकर उन्हें ये पद सौंपा है। महिला हैं, विश्वास पात्र हैं और पार्टी के प्रति पूर्ण वफादार भी हैं, इसलिए, वरना अरविंद केजीवाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखंड़ के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जैसा जाखिम जानबूझकर नहीं उठाते। उन दोनों ने भी कभी अपनी जगह जीतनराम मांझी और चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी, जिन्होंने कुछ महीनों में ही आंखें दिखानी शुरू कर दिया थी। खैर, केजरीवाल भी इस कड़ी में शामिल होते, उसके लिए उन्होंने गंभीरता से होमवर्क करके ही अपनी सीट पर आतिशी को बैठाने का निर्णय लिया। फिलहाल दिल्ली की स्थिति बिहार-झारखंड जैसी नहीं हैं। क्योंकि दिल्ली में अगले चार-पांच महीनों के भीतर ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। अब से कुछ समय बाद ही आचार संहिता लग जानी है।
पार्टी कार्यकर्ता आतिशी की ताजपोशी को बेशक ‘आतिशी पारी’ कह रहे हों, पर चुनौतियों की भी कोई कमी नहीं है? सभी भली भांति जानते हैं कि नई मुख्यमंत्री के लिए करने को कुछ ज्यादा नहीं है। सिर्फ नाम भर की मुख्यमंत्री रहेंगी। ये भी सच हैं कि कुर्सी पर बेशक आतिशी बैठें, लेकिन चलाएंगे केजरीवाल ही? सरकार संचालन का रिमोट केजरीवाल के पास ही सदैव होगा। बहरहाल, अरविंद केजरीवाल अभी कोर्ट-कचहरी और कानूनी पचेड़े में बुरी तरह से फंसे हुए हैं। आतिशी को दिल्ली की कमान सौंपने के पीछे एक वजह ये भी है कि वो महिला हैं इसलिए विपक्ष खासकर भाजपा खुलकर हमलावर नहीं होगी। पार्टी नेताओं की माने तो आतिशी को चुनाव तक के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस बीच वो गड़बडाई पार्टी की स्थिति को कितना संभाल पाती हैं, ये उनके सामने कड़ी परीक्षा जैसी रहेगी।
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फिलहाल राज निवास में आयोजित एक समारोह में शनिवार को उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उनको मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी है। दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उन्होंने भारत की 17वीं महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव भी हासिल कर लिया। समारोह में मौजूद रहे विपक्षी नेता बिजेंद्र गुप्ता, भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने भी उन्हें मुख्यमंत्री बनने की बधाइयां दी। दिल्ली के कालकाजी से विधायक आतिशी ने शपथ लेने के बाद अरविंद केजरीवाल के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। आतिशी आम आदमी पार्टी के कोटे से चौथी मुख्यमंत्री बनी हैं, उनसे पूर्व 3 मर्तबा पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल खुद मुख्यमंत्री रहे हैं। आतिशी के जगह अगर कोई पुरुष नेता मुख्यमंत्री बनता, तो भाजपा हमलावर होती। इसलिए केजरीवाल ने महिला को सीएम की कुर्सी सौंपकर बड़ा सियासी दांव खेला है।
मुख्यमंत्री आतिशी के समक्ष चुनौतियां बेशक हजार हो, लेकिन पार्टी उनके पीछे खड़ी है। पार्टी उन्हें चुनाव तक धुंआधांर पारी खेलने का मौका देगी। क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी की वापसी भी करवानी है। मीडिया और सार्वजनिक रूप से सबसे बड़ा सवाल यही है चारो ओर गूंज रहा है कि क्या अगले वर्ष होने वाले चुनाव तक मुख्यमंत्री आतिशी पार्टी की वापसी करवा पाएंगी या नहीं? दिल्ली के सरकारी कामकाज काफी हद तक रुके हुए हैं। उन्हें दोबारा से संचालित करना होगा। पार्टी के कई नेता नाराज होकर दूसरे दलों में चले गए हैं और कोई न जाए, उन्हें रोकना होगा। रूठे नेताओं को मनाना होगा। एमसीडी जोन चुनाव में पार्टी भाजपा से पिछड़ चुकी है, दोबारा से पटरी पर लाना होगा। ऐसे कई मुद्दे नई मुख्यमंत्री के सामने मुंह खोले खड़े हैं। उन सभी को उन्हें पार पाना होगा। कुछ कठोर निर्णय भी लेने पड़ सकते हैं। अगले सप्ताह विधानसभा का सत्र भी बुलाया गया ।दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य महका भी चरमरा गया है, जबकि ये ऐसे महकमें है जिनके बूत उनकी पार्टी प्रचार करती है।शिक्षा में क्रांति लाने वाले मनीष सिसोदिया भी मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं है।
दिल्ली में पूर्व के मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल पर अगर नजर डाले, तो कईयों का बहुत अच्छा इतिहास और शानदार कार्यकाल रहा। एकाध मुख्यमंत्रियों ने तो लंबे समय तक राजधानी पर राज किया। पहले मुख्यमंत्री थे ब्रह्म प्रकाश, जो 17 मार्च 1952 से लेकर 12 फरवरी 1955 तक दिल्ली के मुखिया रहे। दूसरे, नंबर पर गुरमुख निहाल सिंह रहे जिनका कार्यकाल 12 फरवरी 1955 से लेकर 1 नवंबर 1956 तक रहा। तीसरे, मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना हुए उन्होंने 2 दिसंबर 1993 से लेकर 26 फरवरी 1996 तक दिल्ली की कमान संभाली। चौथे मुख्यमंत्री की बात करें, तो साहिब सिंह वर्मा थे जिन्होंने 26 फरवरी 1996 से लेकर 12 अक्टूबर 1998 तक दिल्ली को मुख्यमंत्री के तौर पर संभाला। वहीं, पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज थी जिनका कार्यकाल कम अवधि का था, वह मात्र 12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998 तक ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहीं।
वहीं, दूसरी महिला मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित ने लंबा कार्यकाल बिताया उन्होंने 3 दिसंबर 1998 से लेकर 1 दिसंबर 2003, 2 दिसंबर 2003 से 29 नवंबर 2008 तक और फिर 30 नवंबर 2008 से 28 दिसंबर 2013 तक दिल्ली की सेवा की। उनका कार्यकाल कई मायनों में यादगार रहेगा। सफल कॉमनवेल्थ गेम्स से लेकर मेट्रो के आगमन का श्रेय उन्हीं ही दिल्लीवासी देते हैं। इन सभी के बाद फिर आम आदमी पार्टी का आगाज हुआ, नई आम आदमी पार्टी वजूद में आई उनके संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 28 दिसंबर 2013 से लेकर 14 फरवरी 2014 तक, फिर 14 फरवरी 2015 से लेकर 15 फरवरी 2020 और फिर 16 फरवरी 2020 से लेकर 21 सितंबर 2024 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। अब आतिशी की पारी का आगाज हुआ है। दिल्लीवासियों को उनसे भी बहुत उम्मीदें हैं, देखते वह कितना खरा उतर पाती हैं।
- डॉ. रमेश ठाकुर
सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!
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