Sam Manekshaw Death Anniversary: पिता की इच्छा के खिलाफ सेना में शामिल हुए थे सैम मानेकशॉ, गढ़े कई कीर्तिमान

Sam Manekshaw
Prabhasakshi

पंजाब के अमृतसर में 03 अप्रैल 1914 को सैम मानेकशॉ का जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम सैम होरमूजजी फ्रांमजी जमशेदजी मानेकशॉ था। वहीं इनके पिता होर्मसजी मानेकशॉ एक जाने-माने डॉक्टर थे। सैम के पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा सेना में भर्ती हो, लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था।

आज ही के दिन यानी की 27 जून को देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का निधन हो गया था। सैम मानेकशॉ के बहादुरी के किस्से अक्सर सुनने को मिलते हैं। उनके रण के कौशल के कारण ही भारत ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया था। पाकिस्तान के साथ हुई जंग में भारतीय सेना को मिली अभूतपूर्व सफलता का पूरा श्रेय सैम मानेकशॉ को जाता है। इससे पहले भी उन्होंने विश्व युद्ध प्रथम में अपनी हिम्मत व कार्यकुशलता का परिचय दिया था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

पंजाब के अमृतसर में 03 अप्रैल 1914 को सैम मानेकशॉ का जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम सैम होरमूजजी फ्रांमजी जमशेदजी मानेकशॉ था। वहीं इनके पिता होर्मसजी मानेकशॉ एक जाने-माने डॉक्टर थे। सैम के पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा सेना में भर्ती हो, लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था। सैम ने हिंदू सभा कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई और फिर पिता के खिलाफ जाकर साल 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी में एडमिशन ले लिया। इसके दो साल बाद वह 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट का हिस्सा बन गए।

इसे भी पढ़ें: KB Hedgewar Death Anniversary: केबी हेडगेवार ने देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया था पूरा जीवन, ऐसे की थी RSS की स्थापना

पहले विश्व युद्ध में दिखाई दिलेरी

दरअसल, साल 1942 में सैम मानेकशॉ को बेहद कम उम्र में युद्ध का सामना करना पड़ा। विश्व युद्ध के दौरान सैम मानेकशॉ बर्मा के मोर्चे पर अपने साथियों के साथ डटे हुए थे। उसी दौरान एक जापानी सैनिक ने मशीन गन से 7 गोलियां सैम के शरीर में उतार दीं। इन गोलियों ने उनके गुर्दे, जिगर और आंतों को नुकसान पहुंचाया। किसी को उम्मीद नहीं थी कि सैम जीवित बचेंगे। सैम की और अन्य सैनिकों की गंभीर हालत को देखते हुए ऊपर से आदेश दिया गया कि घायलों को छोड़कर बटालियन पीछे हट जाए।

इस दौरान यदि घायलों को वापस लाने की कवायद की जाती, तो वापसी में बटालियन कम हो जाती। ऊपर से आदेश आने के बाद भी सैम मानेकशॉ के अर्दली सूबेदार शेर सिंह नहीं माने और उन्होंने सैम को अपने कंधे पर उठाकर डॉक्टर के पास पहुंचाया। लेकिन डॉक्टर ने हालत गंभीर देखते हुए उनका इलाज करने से इंकार कर दिया, तब अर्दली ने डॉक्टर पर अपनी राइफल तान दी। अर्दली ने कहा कि जब वह घायल को अपने कंधे पर ला सकते हैं, तो डॉक्टर इलाज क्यों नहीं कर सकते हैं।

डॉक्टर सैम का इलाज करने के लिए मन से वैसे भी तैयार नहीं थे। हालांकि डॉक्टर ने सैम के शरीर से गोलियां निकाल दीं और आंत का हिस्सा काट दिया। लेकिन इसके बाद भी चमत्कार हुआ और सैम मानेकशॉ स्वस्थ होने लगे। स्वस्थ होने के बाद उनको मांडले ले जाया गया। सैम वहां से होते हुए रंगून पहुंचे और साल 1946 तक वह लेफ्टिनेंट कर्नल बन गए और सेना मुख्यालय दिल्ली में तैनात किए गए।

पीएम इंदिरा गांधी की टाली बात

साल 1962 में जब चीन के साथ युद्ध चल रहा था, तो देश के तत्कालीन पीएम पं. नेहरु और रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण सीमा के दौरे पर थे। इस दौरान उनके साथ मौजूद इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन रूम में जाने की इजाजत मांगी तो सैम मानकेशॉ ने उनको यह कहते हुए रोक दिया कि उन्होंने गोपनीयता की शपथ नहीं ली है।

वहीं साल 1971 के दौरान जब पीएम इंदिरा गांधी चाहती थीं कि भारत मार्च महीने में पाकिस्तान पर चढ़ाई करे। लेकिन अपनी रणनीति के हिसाब से सैम मानेकशॉ ने उनको मना कर दिया। क्योंकि सैम का मानना था कि भारतीय सेना उस दौरान इस लड़ाई के लिए तैयार नहीं थी। सैम के इस जवाब से पीएम इंदिरा नाराज हुईं, तो सैम ने पीएम से पूछा कि वह यह युद्ध जीतना चाहती हैं या नहीं। जब पीएम इंदिरा ने कहा कि वह युद्ध जीतना चाहती हैं, तो मानेकशॉ ने कहा कि उनको सिर्फ 6 महीने का समय दिया जाए और बदले में वह गारंटी देते हैं कि जीत भारतीय सेना की होगी।

वहीं पीएम इंदिरा ने सैम की बात मानते हुए उनको समय दिया। इस दौरान मानेकशॉ ने सेना को तैयार किया और अपनी अगुवाई में पाकिस्तान सेना को धूल चाटने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान पड़ोसी देश पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने सरेंडर कर दिया था। बता दें कि किसी भी युद्ध में हथियार डालने वाले सैनिकों में यह संख्या सबसे ज्यादा थी।

फील्ड मार्शल की उपाधि और सम्मान

सैन मानेकशॉ को अपने सैन्य करियर में कई सम्मान मिए। बता दें कि 59 साल की उम्र में मानेकशॉ को फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया और इस तरह से वह देश के पहले फील्ड मार्शल बनें। साल 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। फिर साल 1973 में वह सेना प्रमुख के पद से रिटायर हो गए।

मौत

सेना से रिटायरमेंट के बाद सैम मानेकशॉ वेलिंगटन चल गए। वहीं 27 जून 2008 में सैम मानेकशॉ का निधन हो गया।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़