मोदी सरकार के लिए विपक्ष की अवहेलना करना आसान नहीं

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ANI

पिछले कार्यकाल में मणिपुर के मुद्दे को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ने 141 सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया था। विपक्ष उस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सदन में बयान देने की मांग कर रहा था। इसे सत्ता पक्ष ने मंजूर नहीं किया।

तीसरी बार केंद्र में सत्ता में आई भाजपा गठबंधन सरकार के लिए इस बार विपक्ष की अवहेलना करना आसान नहीं होगा। मजबूत विपक्ष के कारण केंद्र सरकार को अपना रवैया पिछले कार्यकाल की तुलना में नरम रखना होगा। इसका प्रमाण भी लोकसभा में मिल गया। विपक्ष ने जिस तरह के तेवरों से आगाज किया है, सत्तारुढ़ दल उस तरह प्रतिरोध नहीं कर पाया जिस तरह पहले और दूसरे कार्यकाल में किया था। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी पिछले कार्यकाल की तुलना में इस बार की शुरुआत सामंजस्य बिठाने से की है।  

पिछले कार्यकाल में मणिपुर के मुद्दे को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ने 141 सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया था। विपक्ष उस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सदन में बयान देने की मांग कर रहा था। इसे सत्ता पक्ष ने मंजूर नहीं किया। सदन में कई दिनों तक हंगामे की स्थिति बनी रही। इस पर अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष के सदस्यों को निलंबित कर दिया। विपक्ष का आरोप था कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर की वीभत्स घटनाओं और लगातार होती हिंसा के बावजूद सार्वजनिक बयान देने से कतरा रहे हैं। पीएम मोदी ने मणिपुर की घटना का लोकसभा और सार्वजनिक मंचों का जिक्र तक नहीं किया। इस बार भाजपा गठबंधन सरकार का ऐसी स्थितियों से बचना आसान नहीं होगा। मजबूत विपक्ष की घेराबंदी से सरकार को ऐसे सार्वजनिक मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करने का भारी दवाब होगा।

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लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर और भाजपा सांसद भर्तृहरि महताब द्वारा 18वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाए जाने के दौरान एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने शपथ लेने के बाद नारा लगाया- जय भीम, जय तेलंगाना और फिर जय फलिस्तीन कहा। फिर उन्होंने अल्लाह-ओ-अकबर के भी नारे लगाए। इस पर भाजपा के कई सदस्यों ने आपत्ति जाहिर की। उन्होंने विरोध दर्ज करवाया। इस पर प्रोटेम स्पीकर ने कहा कि अगर ओवैसी ने कोई आपत्तिजनक बात कही है उसे कार्यवाही के रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा। ओवैसी हैदराबाद से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। वह पांचवी बार सांसद बने हैं। विवाद के बाद ओवैसी ने सफाई दी और कहा कि फिलीस्तीन बोलना संविधान के खिलाफ कैसे है। भाजपा सांसद जी किशन रेड्डी का काम ही विरोध करना है। भाजपा के पिछले कार्यकाल के दौरान यदि ओवैसी इस तरह शपथ लेते तो निश्चित तौर पर उन्हें भाजपा सांसदों का भारी विरोध सहना पड़ता, जोकि इस बार इस बार साामन्य नजर आया।   

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को सदन में नेता प्रतिपक्ष के रूप में आधिकारिक रूप से मान्यता दे दी। राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नौ जून, 2024 से प्रभावी रहेगा। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने मंगलवार को लोकसभा के कार्यवाहक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) भर्तृहरि महताब को पत्र भेजकर कांग्रेस के इस फैसले के बारे में उन्हें अवगत कराया था कि राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष होंगे। राहुल गांधी ने कहा कि उनके लिए यह अधिकारों की लड़ाई लडऩे की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि विपक्ष का नेता सिर्फ एक पद नहीं है, यह आपकी आवाज बनकर आपके हितों और अधिकारों की लड़ाई लडऩे की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। लोकसभा के पिछले कार्यकाल में कांग्रेस की लगातार मांग के बावजूद संख्या बल का हवाला देते हुए मोदी सरकार ने नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति नहीं की थी। १७ वीं लोकसभा में पर्याप्त संख्या बल नहीं होने पर लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता का पद रिक्त रहा। नेता प्रतिपक्ष की सदन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका और संवैधानिक अधिकार होते हैं। इनमे कटौती करना सत्तारुढ़ दल के लिए संभव नहीं है। यह एक सम्मानीय पद है। राहुल गांधी के लिए भाजपा जिस तरह का वक्तव्य हर वक्त इस्तेमाल करती रही है, वह अब संभव नहीं होगा। नेता प्रतिपक्ष की हैसीयत सत्तारुढ़ दल के नेता से कम नहीं होती। राहुल गांधी सदन में विपक्ष की आवाज उठाते हुए नजर आने वाले हैं।   

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बहुत कुछ बदलकर रख दिया है। राहुल गांधी के तौर पर पूरे दस सालों बाद सदन के भीतर विपक्ष को अपना सेनापति मिला है. 2014 में सत्ता से बेदखल होने के बाद कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद मिला है, क्योंकि पिछले दस सालों से पार्टी के पास इस पद को पाने के लिए जरूरी 54 सीटें तक नहीं थीं। इस बार कांग्रेस के पास लोकसभा में 99 सीटें हैं और इसीलिए 20 साल लंबे राजनीतिक करियर में राहुल गांधी को पहली बार संवैधानिक पद मिला है। हालांकि, राहुल के लिए आगे का सफर आसान नहीं होगा। विपक्ष के सेनापति के तौर पर और संवैधानिक पद पर होने की वजह से राहुल गांधी को कई जिम्मेदारियां निभानी हैं।   

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को नेता विपक्ष बनने पर बधाई मिल रही है, लेकिन विपक्ष के नेता ये भी कह रहे हैं कि पूरे गठबंधन के हितों का ध्यान रखा जाए। नेता प्रतिपक्ष न सिर्फ अपनी पार्टी को बल्कि पूरे विपक्ष का नेतृत्व करता है। नेता प्रतिपक्ष कई जरूरी नियुक्तियों में पीएम के साथ बैठता है। मतलब ये कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी साथ मिलकर कई फैसले लेंगे। दोनों के राय से फैसले लिए जाएंगे। चुनाव आयुक्त, केंद्रीय सतर्कता आयोग के अध्यक्ष, मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष इन सभी पदों का चयन एक पैनल के जरिए किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष शामिल रहते हैं।   

अब तक राहुल गांधी कभी भी मोदी के साथ किसी पैनल में शामिल नहीं हुए हैं। राहुल गांधी भारत सरकार के खर्चों की जांच करने वाली लोक लेखा समिति के अध्यक्ष होंगे। राहुल सरकार के कामकाज की लगातार समीक्षा करेंगे। वह ये जानने की कोशिश करेंगे कि सरकार कहां पर कितना पैसा खर्च कर रही है। राहुल गांधी दूसरे देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण देने के लिए भारत बुला सकते हैं। मतलब कि अगर वह किसी मुद्दे पर विदेशी मेहमानों से चर्चा करना चाहें तो वह ऐसा कर पाएंगे। नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के प्रमुखों के चयन में भी अहम भूमिका निभाने वाले हैं। वह पिछले 10 साल से इन एजेंसियों पर काफी आरोप लगाते आए हैं। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल को पद भी मिला है और उनका कद भी बढ़ गया है। नेता विपक्ष के तौर पर राहुल गांधी को कई अधिकार और सुविधाएं मिलेंगी। नेता प्रतिपक्ष का पद कैबिनेट मंत्री के बराबर होता है। राहुल गांधी को केंद्रीय मंत्री के समान वेतन, भत्ता और दूसरी सुविधाएं मिलेंगी। राहुल को कैबिनेट मंत्री के आवास के स्तर का बंग्ला मिलेगा। उन्हें कार, ड्राइवर की सुविधा भी दी जाएगी. साथ ही 14 लोगों का स्टाफ मिलेगा। बतौर सांसद राहुल गांधी को एक लाख रुपए और 45 हजार भत्ता मिलता है, लेकिन नेता विपक्ष बनने के बाद उन्हें मासिक वेतन और दूसरे भत्तों के लिए 3 लाख 30 हजार रुपए मिलेंगे। नेता विपक्ष के तौर पर राहुल गांधी की पुरानी छवि टूट जाएगी और वो एक नई छवि को गढ़ते नजर आएंगे। साल 2004 में जब राहुल गांधी ने पहली बार चुनावी राजनीति में दस्तक दी थी। 2004 से 2014 तक कांग्रेस की सत्ता रही लेकिन राहुल ने कोई मंत्री पद नहीं लिया। उन पर कैबिनेट पद के लिए दबाव भी था, लेकिन फिर भी उन्होंने मना कर दिया था। 2014 में कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हुई तो नेता प्रतिपक्ष बनाने लायक सीटें भी हासिल नहीं कर पाई थी। बदले हुए हालात में केंद्र की भाजपा सरकार पिछले कार्यकाल की तरह विपक्ष को दरकिनार करके सदन की कार्यवाही नहीं चलवा सकती। मजबूत विपक्ष और राहुल गांधी के प्रतिपक्ष का नेता बनने से मोदी सरकार को अपने नजरिए में फेरबदल करना होगा।

-  योगेन्द्र योगी

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