10 साल बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता से क्या बदलेगा? राहुल गांधी की ताकत तो बढ़ी लेकिन सामने होगी ये 10 चुनौतियां

Rahul Gandhi
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jun 27 2024 2:10PM

2014 में कांग्रेस की तरफ से लीडरशिप मल्लिकार्जुन खड़गे कर रहे थे, लेकिन वे नेता प्रतिपक्ष नहीं थे। इसी तरह 2019 में सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने के नाते दूसरे विपक्षी दलों ने भी अधीर रंजन को समर्थन दिया, लेकिन मोदी सरकार ने कभी भी अधीर रंजन को प्रोटोकाल के तहत नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं दिया।

आज आपको थोड़ा फ्लैश बैक में लिए चलते हैं। आपके बचपन की ओर। बचपन में आपका कोई साथी जरूर रहा होगा जो हमेशा क्लास में आपको डांट खिलवाने के चक्कर में रहता होगा? यहां आपने कुछ भी भूल कि और बस उसकी बांछे खिल गई, वाह! अभी इसको मजा चखाता हूं। लाख प्रयत्न के बाद भी आप उससे पीछा नहीं छुड़ा पाते। उस वक्त आपको ये साथी बड़ा अप्रिय लगता होगा और आप सोचते होंगे कि ये क्यों मेरे पीछे पड़ा है और आप उससे दूरी बनाकर भी रखने की कोशिश करते होंगे। लेकिन जाने-अनजाने में ये साथी आपको वक्त का पाबंद, नियम का पक्का और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जवाबदेह बना जाता है और इस बात का आपको पता भी नहीं चलता है। इस पूरे क्रम को देश के संदर्भ से जोड़ कर देखें तो आपका बचपन देश की अर्थव्यवस्था है, आप सत्ताधारी हैं...मतलब फुल पावर के साथ और यही पर आपके साथ आपका वो बचपन वाला कांटेदार साथी विपक्ष के रोल में है। जब सत्ता कुछ गलती करती है, विपक्ष उस पर सवाल उठाता है और सत्ताधारी होने की वजह से आप जवाबदेह हैं। साथ ही साथ सत्ताधारी के मन में ये बात रहती है एक किस्म का डर रहता है कि अगर कुछ गलत हुआ तो विपक्ष है, वो बवाल काट देगा। 

10 साल बाद लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता होगा, हाल के आम चुनावों में कांग्रेस ने 99 सीटें जीती हैं। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ बैठक के बाद कांग्रेस ने इस पद के लिए वरिष्ठ नेता और सांसद राहुल गांधी को नामित किया। पिछले दो सत्रों में संसद में कोई एलओपी नहीं था क्योंकि किसी भी विपक्षी दल के पास लोकसभा की कुल संख्या के दसवें हिस्से के बराबर सदस्य नहीं थे, जो कि अभ्यास के अनुसार इस पद के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। 2014 में कांग्रेस ने न केवल सत्ता खो दी, बल्कि नेता प्रतिपक्ष का पद भी खो दिया। विपक्ष के नेता पद की कांग्रेस की मांग को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने खारिज कर दिया। तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को पत्र लिखकर सदन में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने का अनुरोध किया था। सोनिया के पत्र के जवाब में स्पीकर ने कहा था कि लागू प्रावधानों और पिछले उदाहरणों पर विचार करने के बाद उनके अनुरोध को स्वीकार करना संभव नहीं है। मैंने नियमों और परंपराओं का अध्ययन करने और इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय लेने के बाद निर्णय लिया है। 2019 में कांग्रेस फिर से एलओपी के लिए न्यूनतम 54 सीटों के आंकड़े से पीछे रह गई और उसे फिर से वह दर्जा नहीं दिया गया। 2014 में कांग्रेस की तरफ से लीडरशिप मल्लिकार्जुन खड़गे कर रहे थे, लेकिन वे नेता प्रतिपक्ष नहीं थे। इसी तरह 2019 में सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने के नाते दूसरे विपक्षी दलों ने भी अधीर रंजन को समर्थन दिया, लेकिन मोदी सरकार ने कभी भी अधीर रंजन को प्रोटोकाल के तहत नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं दिया। 

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नेता प्रतिपक्ष के रूप में किसे चुना जाता है और इस पद के कर्तव्य क्या हैं?

यह पद आधिकारिक तौर पर संसद अधिनियम, 1977 में विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्ते के माध्यम से अस्तित्व में आया। अधिनियम में एलओपी को राज्यों की परिषद या लोगों के सदन का सदस्य के रूप में वर्णित किया गया है। सरकार के विरोध में पार्टी के उस सदन में नेता के पास सबसे बड़ी संख्यात्मक ताकत होती है और राज्यों की परिषद के अध्यक्ष या लोगों के सदन के अध्यक्ष द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। इसलिए यह पद लोकसभा में सबसे अधिक सांसदों वाली विपक्षी पार्टी द्वारा चुने गए नेता को दिया जाता है, जिसमें एलओपी का मुख्य कर्तव्य सदन में विपक्ष की आवाज के रूप में कार्य करना है। मई 2017 में द इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख में, पूर्व लोकसभा महासचिव पी डी टी आचार्य ने लिखा था कि कानून स्पष्ट है कि अध्यक्ष को विपक्ष में संख्यात्मक रूप से सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देना आवश्यक है। उसे न पहचानने का विकल्प ही उपलब्ध नहीं है। संसद पर 2012 की एक आधिकारिक पुस्तिका में आगे कहा गया है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता को "एक छाया मंत्रिमंडल के साथ एक छाया प्रधान मंत्री माना जाता है, जो सरकार के इस्तीफा देने या सदन के पटल पर पराजित होने पर प्रशासन संभालने के लिए तैयार होता है।

पद के लाभ क्या हैं?

विपक्ष के नेता सदन में सबसे आगे की पंक्ति में अध्यक्ष के बाईं ओर की सीट पर रहते हैं और उन्हें औपचारिक अवसरों पर कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जैसे निर्वाचित अध्यक्ष को मंच तक ले जाना। संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण के समय नेता प्रतिपक्ष भी अग्रिम पंक्ति में सीट के हकदार होते हैं। इसके अलावा, एलओपी सीबीआई निदेशक, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, मुख्य सूचना आयुक्त, एनएचआरसी के अध्यक्ष और सदस्यों और लोकपाल जैसे प्रमुख पदों पर नियुक्ति के लिए प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समितियों में विपक्ष का प्रतिनिधि है। 2014 से 2019 तक लोकसभा में कांग्रेस के नेता के रूप में, खड़गे ने दावा किया था कि सरकार ने बार-बार विपक्ष को लोकपाल के चयन से बाहर रखने की कोशिश की थी, इस आधार पर कि कोई एलओपी नहीं था।

विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी की भूमिका क्या होगी?

1. सरकारी नीतियों का विरोध/प्रश्न करना

प्रधानमंत्री का काम शासन करना और सरकार चलाना है तो विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी कुछ उचित न लगने पर विरोध करने की है। लेकिन नारेबाजी या किसी अन्य तरीके से संसद के कामकाज में बाधा डालने की अनुमति नहीं है। विपक्ष के नेता की प्रमुख भूमिकाओं में से एक सरकार की नीतियों पर 'प्रभावी ढंग से' सवाल उठाना है। विपक्ष के नेता की भूमिका वास्तव में बहुत चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि उसे विधायिका और जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होती है और सरकारी प्रस्तावों/नीतियों के लिए विकल्प प्रस्तुत करना होता है। "द इंडियन पार्लियामेंट" पर एक पुस्तिका में कहा गया है कि सदन के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने में उनकी सक्रिय भूमिका सरकार जितनी ही महत्वपूर्ण है।

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2. विपक्ष का नेता प्रधानमंत्री की छाया सरीखा

विपक्ष का नेता एक शैडो पीएम जैसा होता है, जिसके पास 'छाया मंत्रिमंडल' होता है। यदि उसकी पार्टी चुनाव में बहुमत हासिल करती है या यदि वर्तमान सरकार इस्तीफा दे देती है या हार जाती है, तो सरकार बनाने की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार होता है। एक सरकारी दस्तावेज़ कहता है कि इसलिए, विपक्ष के नेता को अपने शब्दों और कार्यों को सावधानीपूर्वक मापना होगा और उतनी ही जिम्मेदारी के साथ कार्य करना होगा जितनी राष्ट्रीय हित के मामले पर प्रधान मंत्री से अपेक्षा की जाती है।

3. बहस की मांग करें

यदि विपक्ष के नेता को लगता है कि सरकार एक महत्वपूर्ण मुद्दे को टालने और संसदीय आलोचना से बचने की कोशिश कर रही है," तो वह उचित रूप से इस मुद्दे पर बहस की मांग कर सकते हैं।

4. पीएम नीतियों पर विपक्ष के नेता से सलाह ले सकते हैं

विदेश संबंधों और रक्षा नीति जैसे मामलों पर, प्रधान मंत्री, प्रतिबद्धता बनाने से पहले, कभी-कभी विपक्ष के नेता से परामर्श कर सकते हैं। सरकारी दस्तावेज़ में लिखा है, गंभीर राष्ट्रीय संकट के समय में विपक्ष के नेता आम तौर पर खुले तौर पर खुद को सरकारी नीति के साथ जोड़कर किसी विशेष मुद्दे पर राष्ट्र की एकता को रेखांकित करते हैं।

5. विपक्ष के नेता को विदेश में दलगत राजनीति से दूर रहना चाहिए

दस्तावेज़ के अनुसार, विपक्ष का नेता सदन के अंदर और बाहर अपने देश में सरकार की तीखी आलोचना कर सकता है। लेकिन विदेश में रहते हुए उन्हें दलगत राजनीति से दूर रहना चाहिए।

6. अल्पसंख्यक के आधिकारिक प्रवक्ता

विपक्ष के नेता को अल्पसंख्यकों या अल्पसंख्यकों का आधिकारिक प्रवक्ता कहा जाता है। उन्हें न्याय की मांग करनी चाहिए और उनके अधिकारों पर किसी भी अतिक्रमण के मामले में कार्रवाई करनी चाहिए।

7. प्रमुख नियुक्तियों में भूमिका

लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक, मुख्य चुनाव आयुक्तों, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, मुख्य सतर्कता आयुक्त जैसे अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार समितियों का हिस्सा बन सकते हैं। विपक्ष के नेता सार्वजनिक लेखा, सार्वजनिक उपक्रम, अनुमान और कई संयुक्त संसदीय समितियों जैसी प्रमुख समितियों के सदस्य भी होते हैं।

8. टाइम मैनेजमेंट पर ध्यान

कांग्रेस को भले ही इस लोकसभा में अच्छी सीटें आई हैं। 54 से उसकी सीटें बढ़कर 99 हो गई हैं। लेकिन अभी भी कई राज्यों में पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई है। ऐसे में राहुल गांधी को इन राज्यों में संगठन का पुनर्गठन और आपसी खींचतान पर विशेष ध्यान देना होगा। टाइम मैनेजमेंट राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनौती होगी। 

9. सभी दलों को एकजुट करना होगा

इंडिया गठबंधन को संसद से सड़क तक एकजुट रखना भी राहुल के लिए बड़ी चुनौती होगी। राहुल को अपने दल के साथ साथ विपक्ष के अन्य दलों के साथ भी तालमेल बनाकर रखना होगा। आप और कांग्रेस अलग अलग सुर में नजर आ रहे हैं। वहीं टीएमसी और सपा से लेकर राजद तक को अपने साथ रखना बड़ी चुनौती होगी। 

10. कार्रवाई में अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी

राहुल गांधी को संसद के सत्रों की कार्रवाई में अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी। 17वीं लोकसभा में उनकी अटेंडेंस सिर्फ 51% रही है, और वो सिर्फ 8 चर्चाओं में शामिल रहे हैं।

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