Ratan Tata: 86 साल की उम्र में रतन टाटा ने दुनिया को कहा अलविदा, जानिए कुछ रोचक बातें
टाटा ग्रुप को कई बुलंदियों तक पहुंचाने वाले रतन टाटा का 09 अक्तूबर को निधन हो गया है। पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा ने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली।
टाटा समूह के मानद चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा का 09 अक्तूबर को निधन हो गया है। बता दें कि वह 86 साल के थे। दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा का निधन हो गया। टाटा ग्रुप को कई बुलंदियों तक पहुंचाने के पीछे रतन टाटा का बड़ा और अहम योगदान रहा है। टाटा ग्रुप ने देश-विदेश में काफी नाम कमाया है। भले ही आज रतन टाटा हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी उदारता, विनम्रता और उद्देश्य की विरासत भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर रतन टाटा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
बता दें कि 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में रतन टाटा का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम नवल टाटा और माता का नाम सूनी टाटा था। साल 1948 में इनके माता-पिता अलग हो गए थे। जिसके बाद रतन टाटा की दादी नवाजबाई टाटा ने उनका पालन-पोषण किया।
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क्यों नहीं की शादी
रतन टाटा करीब चार बार शादी के बंधन में बंधने के काफी करीब पहुंचने के बाद भी अविवाहित थे। एक इंटरव्यू के दौरान रतन टाटा ने बताया था कि लॉस एंजिल्स में काम करने के दौरान उन्हें एक लड़की से प्यार हो गया था। लेकिन साल 1962 में चल रहे भारत-चीन युद्ध की वजह से लड़की के माता-पिता ने उसे भारत आने से मना कर दिया।
कॅरियर
वहीं साल 1961 में रतन टाटा ने अपने कॅरियर की शुरूआत में जमीनी स्तर से टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर ऑपरेशन का मैनेजमेंट किया। इस दौरान हासिल किए गए एक्सपीरियंस से वह टाटा ग्रुप में लीडरशिप रोल में आ सके। रतन टाटा ने टाटा समूह का पुनर्गठन उस दौरान किया, जब भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण चल रहा था। इस दौरान रतन टाटा ने टाटा नैनों और टाटा इंडिका सहित पॉपुलर कारों के बिजनेस को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।
2004 में रतन टाटा ने टाटा टी को टेटली का अधिग्रहण किया। साल 2009 में रतन टाटा ने मीडियम वर्ग के लिए दुनिया की सबसे सस्ती कार उपलब्ध कराने का वादा किया। इस वादे के तहत उन्होंने 1 लाख की कीमत वाली टाटा नैनो इनोवेशन और अफॉरडिबिलिटी वाले कार के रूप में उभरा। उन्होंने जमशेदजी टाटा के समय से चली आ रही परंपरा को जारी रखा औऱ यह सुनिश्चित किया कि टाटा ग्रुप का हेडक्वार्टर बॉम्बे हाउस आवारा कुत्तों के लिए स्वर्ग बना रहे।
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