संघर्ष और कारोबार के चलते भारत में बढ़ रही चीनी भाषा की प्रासंगिकता

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कई चीनी कंपनियां मशीनरी, बुनियादी ढांचे के निर्माण, आईटी और हार्डवेयर विनिर्माण, मोबाइल हैंडसेट, इलेक्ट्रॉनिक और बिजली क्षेत्र में ईपीसी परियोजनाओं में शामिल हैं। इसके साथ ही चीनी मोबाइल हैंडसेट कंपनियां ओप्पो, वीवो, श्याओमी, वन प्लस आदि भारतीय मोबाइल हैंडसेट बाजार के लगभग सत्तर फीसद हिस्से पर काबिज हैं।

बीते बीस अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र में चीनी भाषा दिवस मनाया गया। यूनेस्को के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा चीनी या मंदारिन ही है। इसे चीन के अलावा ताइवान, सिंगापुर, मलयेशिया, थाइलैंड, ब्रुनई, इंडोनेशिया और फिलीपिंस में भी इसका व्यवहार हो रहा है। मंदारिन को लेकर भाषा विज्ञानियों में मान्यता है कि यह कठिन भाषा है। हालांकि चीनी भाषाविदों ने इसे पिछली सदी के सत्तर के दशक से ही सहज बनाने की दिशा में बड़ा काम किया है। इसलिए यह पहले की तुलना में अब कहीं ज्यादा सहज हो गई है। इसलिए दुनियाभर में इसे सहज रूप से इसे स्वीकार भी किया जाने लगा है। 

जहां तक भारत का सवाल है तो चीन के साथ सीमाओं पर जारी तनातनी के चलते चीनी भाषा की पढ़ाई और जानकारी के लिए भारत में भी क्रेज बढ़ रहा है। गलवान में भारत-चीनी सैनिकों के संघर्ष के बाद चीनी सीमा पर तैनात सैनिकों को चीनी भाषा की जानकारी और शिक्षा देने की कोशिशें हो रही हैं। बेशक भारत का सबसे नजदीकी पड़ोसी चीन है, लेकिन उसकी भाषा और हमारी भाषाओं के बीच संबंधों की कोई सहज कडी नजर नहीं आती। इसलिए इस भाषा को सीखना थोड़ा कठिन होता है। चीन की भाषा को मंदारिन कहते हैं और मंदारिन का शाब्दिक अर्थ ही होता है, कठिन। इसलिए इस भाषा को सीखने के लिए विशेष प्रयास की जरूरत पड़ती है। 

मंदारिन में 21 व्यंजन और 16 स्वर होते हैं। इन ध्वनियों को मिलाकर लगभग 420 अलग-अलग शब्दांश बनाए जा सकते हैं। जहां तक मंदारिन में स्वरों की बात है तो इसमें चार स्वर होते हैं। ये चार स्वर - पहला स्वर, दूसरा स्वर, तीसरा स्वर, और चौथा स्वर – कहे जाते हैं। ये स्वर एक शब्दांश के उच्चारण में बदलाव करते हैं और अर्थ को बदल देते हैं। इसके अलावा, एक तटस्थ स्वर भी होता है, जिसे मंदारिन के भाषा विज्ञानी पाँचवाँ स्वर भी मानते हैं। 

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चीनी भाषा में, अक्षर को "हांजी" कहा जाता है। ये अक्षर, अंग्रेजी वर्णमाला या हिंदी वर्णमाला के अक्षरों की तरह नहीं हैं। प्रत्येक अक्षर एक शब्द या अर्थ के लिए एक प्रतीक है। चीनी भाषा में हज़ारों अक्षर हैं, लेकिन दैनिक उपयोग में छह हजार से लेकर आठ हजार अक्षरों का प्रयोग होता है। इतने स्वरों को याद रखना आसान नहीं है, इसीलिए मंदारिन को कठिन भाषा कहा जाता है। 

भारत में कई संस्थान चीनी भाषा के डिप्लोमा पाठ्यक्रम चला रहे हैं, लेकिन यहां के कई विश्वविद्यालयों मसलन दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, कुमार मंगलम विश्वविद्यालय, गुरूग्राम, पंजाब विश्वविद्यालय, विश्वभारती, जामिया मिलिया इस्लामिया, सिक्किम विश्वविद्यालय के साथ ही देहरादून के दून विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों में चीनी भाषा की पढ़ाई होती है। लेकिन अब इसे चीनी सीमा से सटे राज्य उत्तराखंड के स्कूलों में भी पढ़ाया जाने लगा है। इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है। जिसके तहत उत्तराखंड राज्य के पंद्रह सरकारी स्कूलों के 11 वीं और बारहवीं कक्षा के करीब ढाई सौ बच्चों को चीनी भाषा पढ़ाई जा रही है। इस पहल का मकसद स्कूली छात्रों को मंदारिन भाषा से लैस करना है। इसकी बड़ी वजह यह है कि वैश्विक बाजार में चीन की हिस्सेदारी बढ़ती चली गई है। इतना ही नहीं, चीन आज विश्व की नंबर दो आर्थिक महाशक्ति हो चुका है। इस वजह से चीनी संस्कृति और भाषा के साथ ही आर्थिकी की ओर दुनिया हाथ बढ़ा रही है। इसके लिए चीनी भाषा के कुशल लोगों की वैश्वक स्तर पर जरूरत बढ़ रही है। चीन की कंपनियों और बाजार से संपर्क अंग्रेजी के जरिए भले ही हो जाए,लेकिन वहां की असल जरूरत और समस्या को उसी की भाषा में ही समझा और जाना जा सकता है। इसीलिए चीनी भाषा को लेकर दुनिया भर में उत्सुकता बढ़ी है। उत्तराखंड भी इसी वजह से अपने छात्रों को चीनी भाषा सिखा रहा है।

उत्तराखंड राज्य के पीएमश्री विद्यालयों में जारी इस परियोजना की नींव पौड़ी गढ़वाल के डीएम आशीष चौहान ने 2023 में रखी थी। बच्चों को मंदारिन पढ़ाने का विचार साल 2021 में तत्कालीन भारतीय सेनाओं के चीफ ऑफ स्टॉफ जनरल बिपिन रावत और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल के बीच चर्चा के बाद आया था। दून विश्वविद्यालय के चीनी अध्ययन विभाग के अध्यक्ष शैंकी चंद्रा के अनुसार, अभी यह परियोजना ऑनलाइन चलाई जा रही है, क्योंकि विश्वविद्यालय के पास अभी फिजिकल क्लास के लिए जरूरी संसाधनों की कमी है। 

परियोजना के संचालकों के अनुसार, ‘मंदारिन सीखने से वैश्विक स्तर पर नौकरी की संभावनाएं बढ़ेंगी। इसकी वजह यह है कि चीन अब भी भारत के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में एक है। बारहवीं पास कर चुके तीन छात्रों को मंदारिन की वजह से ही पिछले साल भारत के कुछ पड़ोसी देशों में ऊंचे वेतन पर नौकरियां मिल चुकीं हैं। वैसे भारतीय विदेश मंत्रालय के साथ ही चीनी बाजार और कंपनियों के साथ काम करने वाली भारतीय कंपनियों में भी चीनी भाषा जानने वालों की मांग बढ़ी है। चीनी पर्यटकों के साथ काम करने वाले भारतीय होटलों और पर्यटन उद्योग को भी चीनी दुभाषियों की जरूरत बढ़ रही है। लिहाजा इन क्षेत्रों में भी चीनी भाषा के जानकारों की मांग बढ़ी है। एक कहावत है कि आप सबकुछ बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं। चीन भारत का सबसे नजदीकी पड़ोसी है। लिहाजा इस वजह से भी जरूरी है कि चीन की भाषा सीखी जाए। यह सोच भारतीय समाज में भी बढ़ रही है। 

भारत और चीन कई अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से एक-दूसरे के सहयोगी है। भारत-चीन आर्थिक और वाणिज्यिक व्यापारिक संबंध कई प्लेटफार्मों के जरिए बन रहे हैं। आर्थिक संबंध, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर संयुक्त समूह, सामरिक आर्थिक वार्ता, चीन का विकास अनुसंधान केंद्र, भारत-चीन वित्तीय वार्ता और अन्य संस्थागत तंत्रों के जरिए भारत और चीन के बीच संवाद और कारोबारी-बौद्धिक रिश्ते हैं। इसके साथ ही दोनों देश अंतरराष्ट्रीय संगठन ब्रिक्स के सक्रिय साझेदार हैं। इतना ही नहीं, चीन की करीब  150 से अधिक कंपनियां भारत में कारोबार कर रही हैं। ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, बिजली और उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में दोनों देशों का कारोबार आसमान छू रहा है। कई चीनी कंपनियां मशीनरी, बुनियादी ढांचे के निर्माण, आईटी और हार्डवेयर विनिर्माण, मोबाइल हैंडसेट, इलेक्ट्रॉनिक और बिजली क्षेत्र में ईपीसी परियोजनाओं में शामिल हैं। इसके साथ ही चीनी मोबाइल हैंडसेट कंपनियां ओप्पो, वीवो, श्याओमी, वन प्लस आदि भारतीय मोबाइल हैंडसेट बाजार के लगभग सत्तर फीसद हिस्से पर काबिज हैं। इस वजह से भी चीनी भाषा की भारत में पूछ बढ़ रही है और वह जरूरत भी बनती जा रही है। चीन में सक्रिय भारतीय कंपनियों के लिए भी चीनी कंटेंट लेखकों और दुभाषियों की जरूरत बढ़ रही है। यही वजह है कि मंदारिन को लेकर भारत में भी जड़ता टूट रही है।

- उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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