Congress and China Part 4 | चीन के साथ कैसा रहा है भारत के संबंधों का इतिहास | Teh Tak
15 अगस्त 1947 की वो तारीख जब हिन्दुस्तान का नियति से मिलन हुआ। वहीं इसके ठीक 2 बरस बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के तौर पर चीन अस्तित्व में आया। दो दशक तक गृह युद्ध झेलने के बाद चीन ने एक देश के रूप में आकार लिया।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और प्रतियोगी भावना हमेशा से रही है। लेकिन बढ़ती आर्थिक निर्भताओं की वजह से ये भावना वर्तमान दौर में बड़ा रूप नहीं लेती नजर आ रही थी। लेकिन गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष ने दोनों देशों के बीच से जो कड़वाहट पैदा की वो वर्तमान दौर में भी जारी है। हाल के कुछ सालों में भारत और चीन के बीच के संबंध सबसे बुरे दौर में पहुंच चुके हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा था कि भारत और चीन के संबंध सबसे खराब दौर में पहुंच गए हैं। इसके लिए उन्होंने चीन के रवैयो को जिम्मेदार ठहराया था।
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दोनों देशों के संबंधों की शुरुआत
15 अगस्त 1947 की वो तारीख जब हिन्दुस्तान का नियति से मिलन हुआ। वहीं इसके ठीक 2 बरस बाद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के तौर पर चीन अस्तित्व में आया। दो दशक तक गृह युद्ध झेलने के बाद चीन ने एक देश के रूप में आकार लियाष भारत ने 1 अप्रैल 1950 को चीन के साथ राजनयिक संबंधों की शुरुआत कर दी। भारत चीन के साथ ऐसा करने वाला पहला गैर समाजवादी ब्लॉक का देश था। करीब एक दशक तक दोनों देशों के रिश्ते ठीक ठाक चलते रहे।
युद्ध और कोई समझौता नहीं
पंचशील समझौते (1954) से भारत को तिब्बत से बाहर निकालने के बाद, चीन ने भारतीय सीमा पर अपने क्षेत्रीय दावों को लागू करने का सही समय पाया। इसकी प्रारंभिक घुसपैठ को प्रधान मंत्री द्वारा मामूली घटनाओं के रूप में खारिज कर दिया गया था। जबकि घुसपैठ जारी रही और धीरे धीरे चिंताजनक हो गई। लेकिन तब तक कोई गंभीर रुख नहीं लिया गया और फिर बहुत देर हो चुकी थी। नेहरू की चीन की नीति का दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा यह था कि सीमाओं पर मतभेदों को झूठे लिबास में लपेट कर रखा गया था और एक अनजान लेकिन मंत्रमुग्ध जनता "हिंदी-चीन भाई भाई" चिल्ला रही थी।
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दलाई लामा
1959 में दलाई लामा के भारत में शरण लेने के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव आने लगा। यही भारत-चीन युद्ध की बड़ी वजह बना। 1950 में चीनी सेनाओं ने तिब्बत पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया। दलाई लामा के नेतृत्व में चीन के खिलाफ आजादी के लिए विद्रोह हुआ। तिब्बत में विद्रोह को कुचलने के लिए चीन ने पूरा जोर लगा दिया। चीन ये जानता था कि उसे अपने अवैध कब्जे के खिलाफ मोर्चे को ध्वस्त करना है तो इसका एक ही उपाय है-दलाई लामा का अंत। लेकिन इसकी भनक दलाई लामा के अनुयायियों को पहले ही पड़ गई और उन्होंने इसकी सूचना दे दी। कहा जाता है कि दलाई लामा को सुरक्षित चीन से निकालने में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एक विशेष टुकड़ी का भी योगदान था। जिसके बाद 30 मार्च 1959 को दलाई लामा ने भारत में प्रवेश किया और पिछले 63 सालों से वो यहीं हैं।
राजीव गांधी की चीन यात्रा
1988 में भारत के उस वक्त के पीएम राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया था, जिससे रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल गई थी, दोनों देशों के बीच फिर से दोस्ती शुरू होने और संबंधों को आगे बढ़ाने में राजीव के दौरे का काफी बड़ा रोल था। , 1954 में नेहरू की यात्रा के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा पहली बार चीन की यात्रा की गई थी। यह प्रश्न करने के लिए खुला है कि क्या सीमाओं को बंद करने और अन्य क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ावा देने से भारत को लाभ हुआ है। चीनी उन सभी क्षेत्रों में रहते हैं जिन पर उन्होंने 1962 में कब्जा कर लिया था।
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चीनी राष्ट्रपति ने किया भारत का दौरा
नवंबर 1996 में चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन की भारत यात्रा से रिश्तों को बेहतर बनाने की नई उम्मीद जागी। ये पीपुल्स रिपबल्कि ऑफ चाइना बनने के बाद किसी राष्ट्राध्यक्ष की पहली भारत यात्रा थी। चीन को आजादी मिलने के बाद वहां के किसी राष्ट्रपति को भारत पहुंचने में 47 साल लग गए। 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चीन की यात्रा कर रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश की थी। इसी दौरान चीन-भारत संबंधों में सिद्धांतों और व्यापक सहयोग पर दोनों पक्षों ने हस्ताक्षर किए थे। भारत के तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने जनवरी 2008 में चीन की यात्रा की थी। इस दौरान 21वीं शताब्दी के लिए एक साझा विजन के नाम से संयुक्त दस्तावेज जारी किया गया था। मार्च 2012 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए हू जिंताओं ने भारत यात्रा पर दोनों देशों की ओर से 2012 को मैत्री और सहयोग वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
संबंध सुधारने की कोशिश
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पहली बार मई 2015 में चीन की यात्रा की. इस दौरान दोनों देशों ने आपसी संबंधों को नई दिशा देने पर सहमति जताई। इसके बाद चीन के वुहान में अप्रैल 2018 को दोनों देशों के बीच पहला अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों मतभेदों को दूर कर हर तरह के सहयोग को बढ़ाने पर सहमत हुए। तमिलनाडु के मामल्लपुरम अक्टूबर 2019 में हुई। इस दौरान नरेंद्र मोदी और जिनपिंग ने दोस्ताना माहौल में आपसी संबंधों के दायरे को बढ़ाने पर सहमति जताई। हालांकि इसके बाद जून 2020 में गलवान में चीन सैनिकों के कार्रवाई के बाद भारत-चीन के रिश्तों ने फिर से यूटर्न ले लिया।
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