Next Dalai Lama: चीन की साजिश, भारत से उम्मीद, नया अमेरिकी अधिनियम, क्या खत्म होगी परंपरा या फिर चुना जाएगा नया दलाई लामा
वर्तमान के दलाई लामा से लेकर भारत के एंगल पर भी आज बात करेंगे। भारत और चीन के बीच हालिया रिश्तों को सुधारने की कोशिश हो या अमेरिका में ट्रंप का सत्ता संभालना इन सब का तिब्बत मूवमेंट पर क्या कोई असर पड़ेगा?
आकिर आने वाले समय में कौन अगला दलाई लामा होगा? वर्तमान के दलाई लामा की उम्र 90 के पास पहुंच गई है और इसी कारण से अगले दलाई लामा को लेकर चर्चा तेज हो गई है। चीन लगातार दलाई लामा को लेकर कई सारे आक्षेप लगाते रहा है। भारत और चीन के बीच के संबंध कड़वे रहे हैं। इसी में एक अहम सवाल है कि चीन की तरफ से पूरे प्रकरण में साजिश किए जाने की बात सामने भी आ रही है। तिब्बती लोगों की नजर भारत की तरफ भी टिकी हुई है कि वो उनकी सहायता करेगा। दलाई लामा के चुनने की क्या प्रक्रिया होती है, वर्तमान के दलाई लामा से लेकर भारत के एंगल पर भी आज बात करेंगे। भारत और चीन के बीच हालिया रिश्तों को सुधारने की कोशिश हो या अमेरिका में ट्रंप का सत्ता संभालना इन सब का तिब्बत मूवमेंट पर क्या कोई असर पड़ेगा?
इसे भी पढ़ें: भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधि 18 दिसंबर को बीजिंग में वार्ता करेंगे : चीनी विदेश मंत्रालय
90 साल के हो जाएंगे दलाई लामा
दलाई लामा के जन्मदिन को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। अगले बरस 25 जुलाई को दलाई लामा 90 साल के हो जाएंगे। इस कारण से इनके उत्तराधिकारी को लेकर बड़े स्तर पर चर्चा हो रही है। परमपावन 14वें दलाई लामा 89 वर्ष के हैं। वह 1959 से निर्वासन में रह रहे हैं। वह अपने अनुयायियों को आश्वासन देते हैं कि वह कई और वर्षों तक जीवित रहेंगे, संभवतः जब तक वह 113 वर्ष के नहीं हो जाते। 1980 के दशक की शुरुआत से दलाई लामा द्वारा पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के साथ सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास किए गए हैं। लेकिन ये अब तक, ये प्रयास फलीभूत नहीं हो पाए हैं। हालाँकि भविष्य में ऐसा होने की संभावना बहुत कम प्रतीत होती है। संभवतः निर्वासन में उनका निधन हो सकता है। उन्होंने 2022 में कहा था कि वह अपनी मृत्यु के समय चीनी अधिकारियों से घिरे रहने के बजाय भारत जैसे स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश में मरना पसंद करेंगे। पूरे विश्व में तिब्बती समुदाय बड़े पैमाने पर उत्सव मनाने की तैयारी में अभी से जुट गया है। इस उत्सव का केंद्र होगा हिमाचल प्रदेश का धर्मशालास जहां खुद दलाई लामा और तिब्बत की निर्वासित सरकार के सभी वरिष्ठ पदाधिकारी रहते हैं। माना जा रहा है कि इसी उत्सव के बीच अगले साल 6 जुलाई को दलाई लामा अपने उत्तराधिकारी पर उठी चर्चाओं पर विराम दे सकते हैं।
खत्म होगी दलाई लामा की परंपरा ?
दलाई लामा के पुनर्जन्म का चयन कौन करता है यह प्रश्न विवादास्पद है। तिब्बती इस विचार को अस्वीकार करते हैं कि चीन के पास दलाई लामा (और तिब्बत के अन्य जीवित बुद्ध) के चयन की प्रक्रिया पर कानूनी अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का अधिकार है। पीआरसी का दावा है कि 1793 का शाही अध्यादेश (तिब्बत के बेहतर शासन के लिए शाही रूप से स्वीकृत अध्यादेश या 29-अनुच्छेद अध्यादेश के रूप में जाना जाता है) जीवित बुद्धों (दलाई लामा सहित) के पुनर्जन्म की प्रक्रिया निर्धारित करता है और चयनित उम्मीदवार को अधीन करता है। बीजिंग द्वारा अनुमोदन।3 हालाँकि, यह एक तथ्य है कि 1793 के शाही अध्यादेश द्वारा निर्धारित दलाई लामाओं के चयन की स्वर्ण कलश पद्धति केवल 11वें और 12वें दलाई लामाओं के मामलों में चुनिंदा रूप से लागू किया गया लेकिन 9वें, 13वें और 14वें दलाई लामाओं के लिए इसे हटा दिया गया। हाल के वर्षों में जिस तरह से तिब्ब्ती मूवमेंट में उतार-चढ़ाव देखा गया है, उसके बाद यह चर्चा जोरों पर है कि क्या 14वें दलाई लामा इस परंपरा के अंतिम प्रतिनिधि होंगे? क्या इनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा? इस चचा के पीछे दो ठोस वजह है। पहला तो चीन की ओर से किसी तरह की हरकत की आशंका को कम करने के लिए इस विकल्प पर विचार हो सकता है। दूसरी, चर्चा इसलिए उठी कि खुद मौजूदा दलाई लामा हाल के वर्षों में कुछ मौकों पर इस तरह का संकेत दे चुके हैं। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के बारे में पूर्व में कहा था कि अब तिब्त मूल के लोगों को गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए कि वे अपने फैसले खुद लें और इस परंपरा को यहां विराम दें।
पूरे मामलों को इन बिंदुओं से समझ सकते हैं
माओ से जिनपिंग तक तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति चीन की नीती
1949 से पहले माओत्से तुंग की बातचीत और भाषणों में धर्म प्रमुखता से नहीं आता था। उनकी प्राथमिकता चीन में साम्यवादी शासन स्थापित करना था, जिसमें तिब्बत जैसे अल्पसंख्यक क्षेत्र भी शामिल थे। जैसा कि माओ ने कहा था, अल्पसंख्यक क्षेत्रों में चीन का आधे से अधिक क्षेत्र शामिल था। माओ के निधन के बाद, पीआरसी की धार्मिक नीति अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर गई। मार्च 1982 में पार्टी की केंद्रीय समिति ने औपचारिक रूप से सांस्कृतिक क्रांति के दौरान चीन में कठोर धार्मिक दमन और पूजा स्थलों के भारी विनाश को स्वीकार किया। इसने "हमारे देश के समाजवादी काल के दौरान धार्मिक प्रश्न पर बुनियादी दृष्टिकोण और नीति नामक एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया। 2013 के बाद से चीन के वर्तमान नेता, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन में सभी धार्मिक गतिविधियों पर नियंत्रण को और कड़ा कर दिया है। यह पार्टी के अधिकार को बहाल करने और विरोधी ताकतों को पार्टी के प्रभुत्व के लिए हानिकारक विचारों को इंजेक्ट करने से रोकने की उनकी व्यापक योजना का हिस्सा है।
इसे भी पढ़ें: Parliament Diary: नेहरू से राहुल तक, लोकसभा में गांधी परिवार पर जमकर बरसे पीएम मोदी
अमेरिक का उतार चढ़ाव वाला स्टैंड
चीन में स्थापित धर्मों द्वारा सामाजिक स्थिरता को कमज़ोर करने पर घरेलू चिंताओं के अलावा, क्षेत्र के अंदर धर्मों पर बाहरी ताकतों का प्रभाव भी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए एक सामान्य चिंता का विषय है। इसका मानना है कि विशेष रूप से कैथोलिक और प्रोटेस्टेंटवाद जैसे पश्चिमी धर्म लंबे समय से उपनिवेशवादियों और साम्राज्यवादियों द्वारा नियंत्रित और उपयोग किए गए थे। 1949 में, पीआरसी ने पश्चिमी मिशनरियों को निर्वासित कर दिया। जहां तक तिब्बत का सवाल है, जातीय पहचान ने तिब्बत को चीन से अलग करने के लिए बाहरी ताकतों द्वारा तिब्बती बौद्ध धर्म के हेरफेर के बारे में पीआरसी की चिंताओं को बढ़ावा दिया। तिब्बत के संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका की नीति उतार-चढ़ाव भरी रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अमेरिकी सरकार तिब्बत की स्थिति पर ब्रिटिशों से असहमत थी। स्वतंत्र तिब्बत के विचार के समर्थन के लिए 1949 में दलाई लामा के अनुरोध से भी संयुक्त राज्य अमेरिका सहमत नहीं था।46 1950 के दशक की शुरुआत तक, कोरियाई युद्ध के कारण अमेरिकी नीति बदल गई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका चाहता था कि दलाई लामा सत्रह-बिंदु समझौते (1951) को अस्वीकार कर दें और निर्वासन में चले जाएँ और कहा कि वह उन्हें "एक स्वायत्त तिब्बत के प्रमुख" के रूप में मान्यता देगा। लेकिन अमेरिका-चीन मेल-मिलाप के बाद तिब्बत अमेरिकी हितों के लिए हाशिये पर चला गया। अमेरिका में बाइडन प्रशासन ने इसी साल तिब्बती मूवमेंट के पक्ष में बड़ा फैसला लिया था। बाइडन प्रशासन की ओर से पेश 'रिज़ॉल्व तिब्बत' अधिनियम पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने 12 जुलाई 2024 को हस्ताक्षर भी किए थे। इसमें कहा गया था कि भले अमेरिका तिब्बत को चीन का हिस्सा मानता है, लेकिन नए कानून के प्रभाव में आने के बाद वहां के स्टेट डिपार्टमेंट को तिब्बती गैर-सरकारी संगठनों को अलग से फंड देने की अनुमति दी जाएगी, ताकि तिब्बती लोगों के इतिहास और संस्कृति के बारे में गलत सूचना का जमकर मुकाबला किया जा सके।
भारत, चीन और दलाई लामा का त्रिकोण
भारत और तिब्बत के बीच कई शताब्दियों का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संपर्क था, लेकिन आधुनिक राजनीतिक संबंध भारत पर ब्रिटिश शासन के साथ शुरू हुए। तिब्बत में ब्रिटिश रुचि इस चिंता से बढ़ी कि उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में, रूसी साम्राज्य दक्षिणी एशिया में विस्तार करना चाह रहा था। विशाल हिमालय श्रृंखला के उत्तर में रूस की प्रगति को रोकने के लिए सीमा का निर्धारण महत्वपूर्ण था। मामला चीन और तिब्बत के बीच की गतिशीलता से जटिल था - चीनियों ने तिब्बत पर संप्रभुता का दावा किया, और तिब्बतियों ने दावा किया कि तिब्बत कभी भी चीन का हिस्सा नहीं था। अंग्रेजों ने तिब्बत पर चीनी "आधिपत्य" को नहीं बल्कि "संप्रभुता" को स्वीकार करके तिब्बत की स्थिति के सवाल को दरकिनार कर दिया और 13वें दलाई लामा की सरकार के साथ, उच्चतम हिमालयी जलक्षेत्र के साथ लगने वाली पारंपरिक और प्रथागत रेखा के अनुसार भारत-तिब्बत सीमा को अंतिम रूप दिया। 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने दलाई लामा की सरकार से अपने संबंध बनाए रखे। 1950 में चीनी अधिग्रहण के बाद तिब्बत में यह प्राथमिक भारतीय उद्देश्य बना रहा। दलाई लामा भारत की नीति का एक कारक बहुत बाद में बने जब वे निर्वासन में धर्मशाला आ गए।
क्या चीन रच रहा कोई साजिश
चीन ने एक चीनी सुरक्षा अधिकारी के बेटे को पंचेन लामा के पद पर मान्यता दे दी है। यही कारण है कि तिब्बती अधिकारियों का मानना है कि चीन इस दिशा में साजिश रच रहा है। पूर्व में खुद दलाई लामा पहले ही कई मौकों पर साफ रूप से कह चुके हैं कि उनके उत्तराधिकारी के चयन में चीन का किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं होगा और वे इस मसले पर अमेरिका सहित अधिकतर पश्चिमी देशों का समर्थन भी ले चुके हैं। वे तिब्बत से भी अपना उत्तराधिकारी नहीं चाहते हैं। निर्वासित तिब्बती सरकार के अधिकतर लोगों से बात कर अंदाजा लगा कि वे सभी दलाई लामा का उत्तराधिकारी भारत के अंदर या किसी दूसरे देशों में ही तलाश करते हैं।
तिब्बत भारत से क्या कर रहा उम्मीदें?
तिब्बती समुदाय और भारत से संचालित उनकी निर्वासित अंदर की बात सरकार ने दोराहे पर खड़े अपने संघर्ष के बीच भारत से बहुत उम्मीद कर रखी है। इसके पीछे उनके पास वजह भी है। उनका मानना है कि अगर चीन के साथ भारत को सीमा विवाद सुलझाना है और अरुणाचल प्रदेश के आसपास चीनी हरकत पर लगाम कसना है तो भारत को तिब्बत की ऑटोनमी देना उनके हित में है। तिब्बतन ऐडमिनिस्ट्रेशन की प्रेजिडेंड डोल्मा म्यारी के अनुसार, विन्त भारत के लिए भौगौलिका और रणनीतिक हिसाब से बेहद अहम है और ऐसे समय राम के हित में है। हालांकि, तिब्बती प्रशासन की भारत सरकार से हाल के समय में उनके साथ मजबूती के साथ खड़ा नहीं होने के कारण थोड़ी नाराजगी है, लेकिन वे यह भी मानते हैं कि ग्लोबल कूटनीति में कई चीजें हालात के हिसाब से करनी होती है।
अन्य न्यूज़