Congress and China Part 2 | क्या तय थी 1962 में चीन के हाथों भारत की हार? | Teh Tak

Congress and China
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Nov 1 2023 6:15PM

लेफ्टिनेंट जनरल नील एंडरसन और ब्रिगेडियर पीएस भगत ने अपनी रिपोर्ट में भारत की पराजय से जुड़े सवालों को ढूंढने की कोशिश की थी।

20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर हमला किया था। ये वो जख्म है जो आज तक नहीं भरा है। चीन से भारत क्यों हारा, इसके पीछे कौन जिम्मेदार था। क्या इस युद्ध के अंजाम को बदला जा सकता है। कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब 61 सालों बाद भी भारत जानना चाहता है। ये आपके लिए जानना भी जरूरी है क्योंकि जब तक हम इतिहास में की गई गलतियों की समीक्षा नहीं करेंगे तब तक हम भविष्य के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे। जब कभी भी 1962 के युद्ध का जिक्र होता है तो पंडित जवाहर लाल नेहरू का भी जिक्र अपने आप ही चर्चा में आ जाता है। कहा जाता है कि ये जवाहर लाल नेहरू की नीतियां ही थी जिसकी वजह से भारत को पूरी दुनिया में शर्मिंदा होना पड़ा। 

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''एक मुल्क यानी हिंदुस्तान दोस्ती उसने कि चीनी हुकूमत से वहां के लोगों से चीनी सरकार ने इस भलाई का जवाब बुराई से दिया।'' 

22 अक्टूबर 1962 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू राष्ट्र के नाम संदेश में छल की वह कहानी सुना रहे थे। जिसके वह खुद एक लेखक भी थे, किरदार भी और आखिरकार छल के शिकार भी। साथ ही छला गया था पूरा भारत। भारत के लोगों के मन में हमेशा ये पीड़ा रही है कि अगर चीन के मामले में भारत ने इतिहास में इतनी बड़ी-बड़ी गलतियां न की होती तो आज चीन भारत को आंखें दिखाने की हैसियत में होता ही नहीं। ये एक के बाद एक की गई गलतियों का नतीजा था कि हम 1962 के युद्ध में चीन से बुरी तरह हार गए थे। 962 के एक महीने तक चले युद्ध में हम चीन से हार गए थे और हमारे करीब साढ़े तीन हजार सैनिक शहीद हुए थे। भारत की 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया था। हमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अक्साई चिन को भी गंवाना पड़ा था। 

युद्ध और कोई समझौता नहीं 

पंचशील समझौते (1954) से भारत को तिब्बत से बाहर निकालने के बाद, चीन ने भारतीय सीमा पर अपने क्षेत्रीय दावों को लागू करने का सही समय पाया। इसकी प्रारंभिक घुसपैठ को प्रधान मंत्री द्वारा मामूली घटनाओं के रूप में खारिज कर दिया गया था। जबकि घुसपैठ जारी रही और धीरे धीरे चिंताजनक हो गई। लेकिन तब तक कोई गंभीर रुख नहीं लिया गया और फिर बहुत देर हो चुकी थी। नेहरू की चीन की नीति का दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा यह था कि सीमाओं पर मतभेदों को झूठे लिबास में लपेट कर रखा गया था और एक अनजान लेकिन मंत्रमुग्ध जनता "हिंदी-चीन भाई भाई" चिल्ला रही थी। अगस्त 1959 में लोंगजू और अक्टूबर में कोंगका में आक्रामकता से साथ आगे बढ़ना संभवत: भारत की ताकत का अंदाजा लगाने की कोशिश थी। दोनों देशों के बीच रिश्ते तेजी से बिगड़ने लगे थे। जनता की राय बदलने लगी और नेहरू को बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ा। 

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क्यों हुआ था 1962 का भारत-चीन युद्ध 

1962 में भारत पर चीन ने हमला क्यों किया था और इस युद्ध के पीछे चीन की मंशा क्या थी। इसको लेकर जितने सवाल उतने ही जवाब सामने आते हैं। लेकिन चीन के एक शीर्ष रणनीतिकार वांग जिसी ने इस युद्ध के 50 साल पूरे होने पर साल 2012 में दावा किया था कि चीन के बड़े नेता माओत्से तुंग ने 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' आंदोलन की असफलता के बाद सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी पर अपना फिर से नियंत्रण कायम करने के लिए भारत के साथ वर्ष 1962 का युद्ध छेड़ा था। 

क्या तय थी 1962 में चीन के हाथों भारत की हार? 

लेफ्टिनेंट जनरल नील एंडरसन और ब्रिगेडियर पीएस भगत ने अपनी रिपोर्ट में भारत की पराजय से जुड़े सवालों को ढूंढने की कोशिश की थी। इस रिपोर्ट को गोपनीय घोषित कर दिया गया था। इसकी दोनों कॉपियों को रक्षा मंत्रालय में सुरक्षित रख दिया गया था। लेकिन 1962 के दौर में 'टाइम' के संवाददाता के तौर पर दिल्ली में काम कर रहे मैक्स नेविल ने इस रिपोर्ट के मौजूद होने का दावा किया था। उन्होंने इस रिपोर्ट को ऑनलाइन डाल दिया था। मैक्स नेविल का दावा था कि रिपोर्ट में हार के लिए नेहरू की नीतियां जिम्मेदार थीं। नेहरू की फारवर्ड पालियी पूरी तरह नाकाम साबित हुई। साथ ही दिल्ली और सेना के फील्ड कमांडरों के बीत तालमेल की बेहद कमी, सैनिकों की खराब तैयारियां और संसाधनों की कमी को भी जिम्मेदार माना गया। थापर बहुत पहले से सेना की बदहाली से अवगत करा रहे थे, बार बार वह हथियार और संसाधनों की मांग कर रहे थे। नेहरू ने कभी उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। शायद प्रधानमंत्री को रक्षा मंत्री वी कृष्णा मेनन की बातों पर ज्यादा भरोसा था, जिन्होंने सेना की क्षमता और तैयारी के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बता रखा था। 

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अक्साई चिन की जगह नगा समस्या को महत्व 

1962 में करीब एक महीने के युद्ध में चीन से हम हार गए थे। हमारे करीब तीन हजार सैनिक शहीद हुए थे और भारत के करीब 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया था। हमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अक्साई चीन को भी तब गंवाना पड़ा था। 28 जुलाई 1956 को रक्षा मंत्री केएन काटजू को एक नोट दिखाते हुए नेहरू ने कहा था कि चीन जो भी करे, लेकिन वो नगा समस्या को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। चीन भी नेहरू के इस रवैये से भलि-भांति वाकिफ था। 

नेहरू का राजनैतिक बयान और चीन ने कर दिया आक्रमण 

13 अक्टूबर 1962 श्रीलंका जाते हुए नेहरू ने चेन्नई में मीडिया को बयान दिया कि उन्होंने सेना को आदेश दिया है कि वह चीनियों को भारतीय सीमा से निकाल फेकें। नेहरू के इस बयान से सैनिक हेडक्वार्टर हक्का-बक्का रह गया। जब सेना प्रमुख थापर ने रक्षा मंत्री से इस बारे में पूछा, तब उनका जवाब था कि प्रधानमंत्री का बयान राजनीतिक स्टेटमेंट है। इसका अर्थ है कि कारवाई दस दिन में भी की जा सकती है और सौ दिन में या हजार दिन में भी। लेकिन नेहरू के इस स्टेटमेंट के आठ दिन बाद चीनियों ने आक्रमण कर दिया। 

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