पर्याप्त मात्रा में मशीनें मौजूद, फिर भी पराली जलाना पसंद करते हैं पंजाब के किसान, रिपोर्ट में खुलासा

burning stubble
ANI
अंकित सिंह । Jul 3 2024 12:38PM

दिल्ली स्थित स्वतंत्र थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) की रिपोर्ट, 'पंजाब फसल अवशेष प्रबंधन विधियों को कैसे अपना सकता है?' से पता चला कि सर्वेक्षण में शामिल 58% किसानों ने सुपर सीडर्स और रोटावेटर जैसी मशीनों का उपयोग करके पुआल का प्रबंधन किया।

दिल्ली स्थित एक थिंक टैंक द्वारा जारी एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनों का उपयोग करने वाले पंजाब के लगभग आधे किसान अभी भी मशीनों के कुशल संचालन को सुनिश्चित करने और कीट नियंत्रण के लिए कुछ ढीले धान के भूसे को जलाते हैं। दिल्ली स्थित स्वतंत्र थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) की रिपोर्ट, 'पंजाब फसल अवशेष प्रबंधन विधियों को कैसे अपना सकता है?' से पता चला कि सर्वेक्षण में शामिल 58% किसानों ने सुपर सीडर्स और रोटावेटर जैसी मशीनों का उपयोग करके पुआल का प्रबंधन किया।

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हालाँकि, पराली जलाने को रोकने की चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, जैसे कि सीआरएम मशीनों तक समय पर पहुँच, उनका उपयोग करने के लिए उचित प्रशिक्षण की कमी और कम पैदावार पर गलत धारणाएँ और उनका उपयोग करके बोए गए गेहूं पर कीटों का हमला। अध्ययन के लिए पंजाब के 11 जिलों के 1,478 किसानों का सर्वेक्षण किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनों का इस्तेमाल करने वाले पंजाब के लगभग आधे किसान अब भी मशीनों के कुशल संचालन और कीट नियंत्रण को सुनिश्चित करने के लिए खेतों में फैली हुई पराली को जला देते हैं। सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट कहती है कि पंजाब के 11 जिलों में सर्वेक्षण में शामिल 1,478 किसानों में से 36 प्रतिशत ने पूसा-44 किस्म के धान की अधिक उपज को ध्यान में रखते हुए 2022 के खरीफ सत्र में इसकी खेती की थी। सर्वेक्षण पंजाब के अमृतसर, बठिंडा, फतेहगढ़ साहिब, फाजिल्का, फिरोजपुर, गुरदासपुर, जालंधर, लुधियाना, पटियाला, संगरूर और एसबीएस नगर जिलों में किया गया। 

यह खरीफ सत्र 2022 में पंजाब में पराली जलाने के लगभग 58 प्रतिशत हिस्सा था। संगरूर और लुधियाना जैसे जिलों में पराली जलाने के अधिक मामले सामने आए थे और वहां पर पूसा-44 किस्म की धान की खेती करने वाले किसानों का अनुपात सबसे अधिक है। सीईईडब्ल्यू में कार्यक्रम सहयोगी कुरिंजी केमंथ ने कहा कि पंजाब के किसान अधिक उपज के लिए पूसा-44 किस्म को पसंद करते हैं, लेकिन इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को वे बिजली एवं उर्वरक पर मिलने वाली सब्सिडी की वजह से नजरअंदाज कर देते हैं। केमंथ ने कहा कि पंजाब सरकार ने पूसा-44 किस्म के धान को पर्यावरण के लिए हानिकारक मानते हुए अक्टूबर, 2023 में गैर-अधिसूचित कर दिया था। लेकिन यह किस्म अब भी मुख्य रूप से निजी बीज डीलरों के माध्यम से प्रचलन में है।

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