Britain वामपंथ की तरफ तो ईरान में उदारवादी आगे, फ्रांस और अमेरिका में दक्षिणपंथियों का दबदबा, 2024 में कैसे बदल रही वैश्विक राजनीति
भारत में प्रधानमंत्री मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुए। संयुक्त राष्ट्र में वीटो रखने वाले देश अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन में भी इस साल ही चुनाव है। ईरान में भी वोट डाले जा रहे हैं।
2024 चुनावी साल है। इस वर्ष 80 से अधिक देशों में चुनाव होने हैं, उनमें से कुछ पहले ही संपन्न हो चुके हैं। इनमें कुछ सबसे धनी और सबसे शक्तिशाली, सबसे अधिक आबादी वाले, सबसे अधिक सत्तावादी राष्ट्र शामिल हैं। इनमें से कई चुनाव लोकतंत्र की सीमाओं का परीक्षण तो अन्य केवल रबर-स्टैंपिंग प्रैक्टिस सरीखे भी नजर आए। वोटिंग के लिहाज से दुनिया के दो सबसे बड़े चुनाव समझे जाने वाले भारत और यूरोपीयन यूनियन के चुनाव भी इस साल ही हुए हैं। एक तरफ जहां ईयू में सेंटरिस्ट पार्टियों के हाथ से सत्ता राइट विंग पार्टियों के पास चली गई। वहीं भारत में प्रधानमंत्री मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुए। संयुक्त राष्ट्र में वीटो रखने वाले देश अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन में भी इस साल ही चुनाव है। ईरान में भी वोट डाले जा रहे हैं।
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ब्रिटेन
दूसरे विश्व युद्ध के बाद फ्रांस में ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी दक्षिणपंथी पार्टी के सरकार बनाने की प्रबल उम्मीद जताई जा रही है। पहले चरण के संसदीय चुनाव के बाद मरीन ले पेन के नेतृत्व में देश की धुर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली अपनी बढ़त से खुश नजर आ रही है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी इस बार तीसरे स्थान पर खिसक गई है। मरीन ल पेन खुद को राष्ट्रवादी बताती हैं और उन्होंने यह वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो सबसे पहले फ्रांस में इमीग्रेशन से जुड़े नियमों को सख्त बनाएंगे। शरणार्थियों की संख्या में कमी करेंगे। कट्टर इस्लामिक तत्वों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे और फ्रांस को यूरोपीय यूनियन से निकालने पर भी विचार किया जाएगा। मरिन ले पेन हैं को पहले राउंड के चुनाव में कुल 23.15 फीसद वोट मिले हैं। नेशनल रैली का नस्लवाद और यहूदी-विरोधी भावना से पुराना संबंध है और यह फ्रांस के मुस्लिम समुदाय की विरोधी मानी जाती है। इमैनुएल मैक्रों को उदारवादी नेता माना जाता है। वो यूरोप के साथ फ्रांस के संबंधों को मजबूत बनाना चाहते हैं। इस साल जून की शुरुआत में यूरोपीय संसद के चुनाव में नेशनल रैली से मिली करारी शिकस्त के बाद मैक्रों ने फ्रांस में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी देश में 4.95 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं जो फ्रांस की संसद के प्रभावशाली निचले सदन नेशनल असेंबली के 577 सदस्यों को चुनेंगे।
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अमेरिका
अमेरिका में अमूमन ऐसा देखने को मिलता है कि राष्ट्रपति चुनाव में हारने वाले उम्मीदवारों को लोग भूल जाते हैं। हारे हुए उम्मीदवार कभी भी दोबारा कमबैक नहीं कर पाते हैं। लेकिन इस बार रिपब्लिकन पार्टी के केस में अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है और ट्रंप की खासी धमक नजर आ रही है। चार बरस पहले ट्रंप ने राष्ट्रपति का पहला कार्यकाल विवादों के बीच समाप्त किया था। 6 जनवरी को कैपिटल हिल पर हुई हिंसा अमेरिकी इतिहास का सबसे दुखद हिस्सा बन चुका है। एक बार फिर ट्रंप और बाइडेन राष्ट्रपति चुनाव के लिए आमने सामने हैं। दोनों नेताओं के बीच बीते दिनों 90 मिनट की बहस हुई। इस दौरान अर्थव्यवस्था, आव्रजन, विदेश नीति, गर्भपात और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर राष्ट्रपति बाइडेन और ट्रंप के बीच वार पलटवार देखने को मिला। एसएसआरएस द्वारा आयोजित सीएनए फ्लैश सर्वेक्षण के अनुसार डिबेट देखने वाले रजिस्टर्ड लोगों में से 67 प्रतिशत ने ट्रंप के प्रदर्शन को बेहतर कहा जबकि 33 फीसदी लोग इस मामले में बाइडेन के साथ दिखे।
फ्रांस और ईरान
ब्रिटेन में चार जुलाई को हुए आम चुनाव की अभी तक मतगणना में लेबर पार्टी ने बहुमत के लिए पर्याप्त सीटों पर जीत हासिल कर ली है। वहीं, निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने हार स्वीकार करते हुए लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर को बधाई दी है। कंजर्वेटिव पार्टी को अब तक की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ रहा है। कीर स्टारमर की पर्सनालिटी सुनक से एकदम उलट है। भारतवंशी सुनक जहां खुद को धार्मिक बताते रहे हैं, वहीं स्टार्मर भगवान में यकीन नहीं करते। वे सुनक की तरह अरबपति भी नहीं हैं। एक वक्त ऐसा भी था कि जब हिंदू वोटर्स से जुड़े संगठनों ने लेबर पार्टी को वोट न देने की कसम खाई थी। 2020 में कीर स्टार्मर लेबर पार्टी के नेता बने तो उन्होंने हिंदू वोटरों की नाराजगी खत्म करने की कोशिश की और कश्मीर मुद्दे पर पार्टी का स्टैंड बदला।
ईरान में पिछले महीने हेलीकॉप्टर दुर्घटना में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के मारे जाने के बाद देश में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहे हैं जिसमें मुकाबला कट्टरपंथी परमाणु वार्ताकार सईद जलीली और सुधारवादी मसूद पजशकियान के बीच है। इससे पहले 28 जून को मतदान के शुरुआती दौर में किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिले जिसके कारण दोबारा मतदान कराए जा रहे हैं। मतदाताओं को कट्टरपंथी पूर्व परमाणु वार्ताकार सईद जलीली और हार्ट सर्जन तथा लंबे समय से संसद सदस्य रहे मसूद पजशकियान के बीच चुनाव करना है। 28 जून को हुए मतदान में उदारवादी नेता मसूद पजशकियान ने 10.4 मिलियन यानी 42 फीसद वोट हासिल किए हैं। वहीं कट्टरपंथी नेता सईद जलीली को महज 9.4 मिलियन यानी 38.6 फीसद वोट ही मिले हैं। अगर रन ऑफ राउंड में भी मसूद पजशकियान जीतते हैं तो ये मध्य पूर्व में बड़ा बदलाव ला सकता है। तबरीज से सांसद मसूद पजशकियान की पहचान सबसे उदारवादी नेता के रूप में रही है। ईरानी मीडिया ईरान वायर के मुताबिक लोग पेजेशकियन को रिफॉर्मिस्ट के तौर पर देख रहे हैं। उन्हें पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी का करीबी माना जाता है। पश्चमी देशों संग बेहतर रिश्ता बनाने के हिमायती भी हैं।
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