वैष्णव सम्प्रदाय के एक प्रसिद्ध एवं प्रतिभाशाली आचार्य अर्थात् जगद्गुरु वल्लभाचार्य महाप्रभुजी - मगनभाई पटेल

Maganbhai Patel
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शाम सेवा फाउंडेशन और सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज के अध्यक्ष मगनभाई पटेलने वल्लभाचार्यजी के प्रागट्य अवसर पर एक संबोधन में कहा कि वल्लभाचार्य वैष्णव संप्रदाय के एक प्रसिद्ध और प्रतिभाशाली आचार्य थे। पुष्टिमार्ग के अनुयायी उन्हें महाप्रभुजी के रूप में जानते हैं और उनकी पूजा करते हैं

शाम सेवा फाउंडेशन और सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज के अध्यक्ष मगनभाई पटेलने वल्लभाचार्यजी के प्रागट्य अवसर पर एक संबोधन में कहा कि वल्लभाचार्य वैष्णव संप्रदाय के एक प्रसिद्ध और प्रतिभाशाली आचार्य थे। पुष्टिमार्ग के अनुयायी उन्हें महाप्रभुजी के रूप में जानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। उनका जन्म आज से करीब ५४७ वर्ष पूर्व चैत्र वद अगियारस को विक्रम संवत १५३५ (वर्ष १४७९) में छत्तीसगढ़ के चंपारण्य में एक विद्वान भारद्वाज गोत्री तेलंग ब्राह्मण लक्ष्मण भट्ट के घर हुआ था। वल्लभाचार्यजीने बनारस में रहकर वेद, वेदांत, दर्शन, सूत्र, धर्मशास्त्र, पुराण और इतिहास का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने पूरे भारत में यात्रा की और अपने धार्मिक विचारों का प्रचार किया।उन्होंने रामेश्वर से हरिद्वार तथा द्वारका से जगन्नाथपुरी तक तीन बार तीर्थयात्रा करके पुष्टिमार्ग का प्रचार किया।यात्रा के दौरान उन्होंने भागवत कथा एव पारायण का पाठ किया।आज देश में उन जगहों को 'बेठक' के नाम से जाना जाता है। इस दिन अहमदाबाद शहर की विभिन्न हवेलियों में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस प्रकार राज्य में एव देश-विदेश में अनेक हवेलियाँ हैं जो सनातन धर्म को संरक्षित करनेवाली संस्था के समान हैं तथा विद्यालय एवं गौशालाएँ जैसी अनेक सेवाकिय प्रवृतिया निरन्तर कार्यरत हैं। 

मगनभाई पटेलने आगे कहा कि वल्लभाचार्यजी महान आचार्यों में से एक थे। वल्लभाचार्यजी के ज्ञान से अबतक अनेक जीव अपनी मूल पहचान से जुड़कर जीवन जी चुके हैं। श्रीवल्लभाचार्यजी तीर्थयात्रा के दौरान राजा कृष्णदेवराय के नगर में आये थे।वहां सभी पंडित अलग-अलग विषयों पर चर्चा कर रहे थे, तब उन्होंने बृहदत्त्व के बारे में अपने विचार व्यक्त किये और गागा भट्ट एव सोमेश्वर जैसे पंडितों से कई दिनों तक शास्त्रार्थ किया।वहा उपस्थित सभी पंडितोंने अंततः वल्लभाचार्यजी के विचारों को स्वीकार किया और उन्हें आचार्य की पदवी प्रदान की।वल्लभाचार्यजी के बाद उनके वंशजों ने पुष्टिमार्ग के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार का कार्य जारी रखा है जिसमे :-

  

पुष्टिसंस्कार संस्थान-किशोरचंद्रजी महाराज-जूनागढ़ की बड़ी हवेली 

मगनभाई पटेलने पुष्टिसंस्कार संस्थान के बारे में अपने भाषण में कहा कि गुजरात के जूनागढ़ में लगभग ३५ से ४० एकड़ में एक प्राचीन और महत्वपूर्ण पुष्टि भक्ति आचार्यगृह है जिसे जूनागढ़ की बड़ी हवेली कहा जाता है। यहाँ उल्लेखनीय है कि यहां एक यूनिट का खातमुहूर्त मगनभाई पटेल एवं श्रीमती शांताबेन मगनभाई पटेल के हाथो किया गया था। यहाँ अनेक स्कूल एव गौशालाओं का निर्माण करनेवाले जूनागढ़ बड़ी हवेली के गादीपति के रूप में लगभग चार दशक पहले गोस्वामी किशोरचंद्रजी महाराजकी तिलकविधि हुई थी। जूनागढ़ के पुरूषोत्तमलालजी महाराज एव चंद्रप्रभावजीने उन्हें लालन के रूप में गोद लिया था।गोस्वामी किशोरचंद्रजी महाराजने दुनियाभर में २३० से अधिक पुष्टिकरण संस्कार पाठशालाएँ शुरू की हैं। अमेरिका,कनाडा, यूरोपीय देशों और भारत में अनेक पाठशालाए कार्यरत हैं।जिसमें करीब १४,००० से अधिक वैष्णव विद्यार्थी हिंदू संस्कृति और श्रीमद्भागवत गीता पर आधारित शिक्षा प्राप्त करते हैं। वह जीवनभर गाय के गोबर को बिस्तर बनाकर सोते रहे। उन्होंने कुछ महान कार्य भी किए जैसे उन्होंने एक गौशाला का निर्माण किया और वहां आई.आई.टी दिल्ली द्वारा अनुसंधान कराया, वहां ४५० गौए हैं और देश के कई राज्यों में गौशालाएं बनवाईं, जिससे राज्य के सैकड़ों परिवार देशी गाय का दूध (अमृत) पी सके। इस संस्था की प्रेरणा से आज गुजरात एव देश के अन्य राज्यों में अनेक गौशालाएँ स्थापित हो चुकी हैं। 

इस आवधिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पुष्टिसिद्धांतों के सरल ज्ञान के लिए गोस्वामी किशोरचंद्रजी महाराजके आशीर्वाद से गोस्वामी पीयूषकुमारजी महोदयकी अध्यक्षता में पुष्टिसंस्कार विद्यापीठ की स्थापना की गई है।

अहमदाबाद के थलतेज विस्तार में ५००० Sq.ft में बने इस विद्यापीठ के प्रशासनिक कार्यालय का उद्घाटन गोस्वामी पीयूषकुमारजी महोदयश्रीने किया जिसमें शाम सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष मगनभाई पटेल भी उपस्थित थे।

पुष्टिसंस्कार पाठशाला, पुष्टिसंस्कार परिवार, पुष्टिसंस्कार विद्यापीठ द्वारा पुष्टि संप्रदाय के विभिन्न पाठ्यक्रम चलाये जाते है। 

आध्यात्मिक शक्ति और सांस्कृतिक ज्ञान प्रदान करने के मिशन के साथ पुष्टि संस्कर पाठशाला की विभिन्न शाखाएँ आज पूरे देश में कार्यरत हैं,जहाँ बच्चों को वल्लभाचार्यजी की दिव्य समझ प्रदान की जाती है। अब तक देश के १९८ शहरों में ३१२ विद्यालय प्रारंभ किये जा चुके हैं, जहाँ अब तक लगभग १२,५६६ विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। इस प्रकार पुष्टि संस्कार विद्यापीठ के माध्यम से विश्व के १५ देशों के ३०४ शहरों में ४५०० से अधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं।

वैष्णवाचार्यजी द्वारकेशलालजी महोदय(कड़ी-अहमदाबाद,गुजरात) :-

वैष्णव समाज के युवा प्रेरणामूर्ति आचार्य द्वारकेशलालजी महोदय महाप्रभुजी के १७वें वंशज हैं। संस्कृत विषय में मास्टर्स के अभ्यास के बाद गीता, भागवत, उपनिषद के साथ वक्तव्य का गुण भी विद्यमान है। आचार्य द्वारकेशलालजी महोदयश्रीने संपूर्ण वैष्णव समुदाय को संगठित करने के लिए "आंतरराष्ट्रीय वैष्णव संघ" की स्थापना की है। भारत के अलावा विश्व के कई देशों में इसकी शाखाएं कार्यरत हैं। आचार्यप्रतिवर्ष हजारों किलोमीटर की यात्रा कर लाखों लोगों को अपनी दिव्य वाणी का लाभ देकर पुष्टि भक्ति का प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने विश्व के सभी पांच महाद्वीपों में हवेलियाँ स्थापित की हैं। पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में "वल्लभधाम (नैरोबी)" के नाम से प्रथम हवेली स्थापित करने का श्रेय उन्हें जाता है,इसके अलावा आचार्यश्रीने अमेरिका के मैरीलैंड राज्य में "नाथधाम हवेली"की स्थापना की है। इसके अलावा अमेरिका के फ्लोरिडा में "वैष्णव संघ अकादमी" और "व्रजधाम" हवेली का निर्माण भी आचार्यद्वारा किया गया है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न मे "नाथद्वारा हवेली", सिडनी में "व्रज हवेली", एडिलेड में "वल्लभधाम हवेली" का भी निर्माण किया गया है।इंग्लैंड के लेस्टर शहर में "व्रजधाम हवेली" एव लंदन में "नाथधाम" हवेली का निर्माण किया गया हैं।इस प्रकार भारतभर के अन्य कई शहरों में हवेलियों के निर्माण के साथ-साथ आचार्यश्रीने अहमदाबाद के बोपल में "भक्तिधाम" नामक एक विशेष परिसर का भी निर्माण किया है। साथ ही "विद्यार्थी दत्तक योजना" भी बड़े पैमाने पर चलाई जा रही है। कोरोनाकाल से ही आचार्यद्वारा "अन्नदान योजना" बड़े पैमाने पर कार्यरत है। आचार्यश्रीने अपने क्रांतिकारी विचारों से देश-विदेश में ख्याति प्राप्त की है।

ऐसे प्रखर एवं प्रभावशाली वैष्णवाचार्य द्वारकेशलालजी महोदयाके सान्निध्य में शाम सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज के अध्यक्ष मगनभाई पटेल की अध्यक्षता में अहमदाबाद के बोपल क्षेत्र में अत्यंत सुंदर एवं सफल श्रीमद्भागवत सप्ताह का आयोजन किया गया। अंकुरभाई भालोदिया, मनुभाई जाविया भी इस भागवत सप्ताह में कथा के सह-यजमान के रूप में शामिल हुए। सौराष्ट्र कड़वा पाटीदार समाज,बोपल दवारा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य एक शैक्षणिक संस्थान का निर्माण करना था जहां अब ५००० वार  भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है और एक छात्रावास, समाज भवन का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें २०० छात्र रह सकते हैं।यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि सप्ताहभर में पोथी से प्राप्त समस्त धनराशि द्वारकेशलालजी द्वारा संस्था को दान कर दी गयी। साथ ही संस्था को एक लाख ग्यारह हजार रुपये का चेक भेंट कर धर्म की धजा को शोभायमान की। गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री माननीय भूपेन्द्रभाई पटेल भी इस ट्रस्ट में ट्रस्टी के रूप में सम्मानित हैं।इस सात दिवसीय सप्ताह के दौरान प्रतिदिन १०,०००  से अधिक भावी भक्तों को कथा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस सप्ताह ५० फीसदी से ज्यादा युवाओं ने भी हिस्सा लिया था।

इस सप्ताह के मुख्य यजमान एवं अध्यक्ष मगनभाई पटेलने अपने उद्बोधन में कहा कि वैष्णव धर्म में पुष्टिमार्ग का एक अलग ही महत्व है।आप अपने बच्चों को पुष्टिमार्गीय पाठशाला में भेज सकते हैं और उन्हें पुष्टिमार्गीय संस्कार की समृद्ध विरासत हासिल करने में मदद कर सकते हैं। जो न केवल उनकी जड़ों को मजबूत कर पथ को सुदृढ़ करने में सहायक होगा बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में उनके व्यक्तित्व के सर्वांगी विकास में सहायक भी होगा।अपने शास्त्रों के ज्ञान के बिना कोई भी धार्मिक अभ्यास दिशाहीन पथिक समान है। आज पुष्टिवैष्णवों में आचार्यचरण के ग्रंथों का पाठ एवं अध्ययन की दिनचर्या बहुत कम हो गयी है।जिसके कारण वास्तविक पुष्टि सिद्धान्तों की समझ बहुत कम वैष्णवों में पाई जाती है।इस विपरीत स्थिति को बदलने के लिए पुष्टि शास्त्रों के नियमित अध्ययन की आधुनिक व्यवस्था उपलब्ध करानी आवश्यक है।

मगनभाई पटेल ने आगे कहा कि भारत ज्ञान की भूमि है।धार्मिक विचार और अध्यात्म के क्षेत्र में भी वेद, भगवदगीता आदि सनातन शास्त्रों के रूप में हमारी ज्ञान संपदा विश्व में अद्वितीय है।महाप्रभुजी वल्लभाचार्यजीने सभी शास्त्रों के सार श्रीकृष्ण भक्ति का सर्वोत्तम मार्ग प्रकट किया, ताकि शास्त्रों में मौजूद इस दिव्य ज्ञान के प्रकाश से जीवन धन्य हो सके।भगवत भक्ति के सिद्धांतों का वर्णन आचार्यश्रीने अपने ग्रंथों में व्यवस्थित रूप से किया है।भारतीय धार्मिक चिंतन का आधार प्रमाण व्यवस्था है। प्रवाण सिद्ध कर्त्तव्योपदेश को ही धर्म के रूप में मान्यता प्राप्त है।परंपरा से प्राप्त आस्था और समझ धार्मिक प्रथाओं में रुचि पैदा कर सकती है, लेकिन सही दिशा में गति केवल शास्त्रों के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।

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