Honey Trap का नतीजा है पंचशील समझौता, 70वीं वर्षगांठ पर जाने कैसे भारत ने कर दी थी सबसे बड़ी भूल

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jul 3 2024 1:29PM

प्रमुख वार्ताकारों में से एक का एक चीनी महिला के साथ संबंध की बात भी इंडिया टुडे के एक रिपोर्ट में कही गई। वैसे दुनिया के कूटनीतिक और सैन्य इतिहास में हनी-ट्रैपिंग का एक लंबा इतिहास किसी से छिपा नहीं है।

8 जनवरी 1949 को तिब्बती सरकार के प्रतिनिधि त्सेपोन शाकबापा ने प्रधानमंत्री नेहरू से दिल्ली में मुलाकात कर तिब्बत की स्वाधीनता की मदद मांगी थी। उन्होंने तिब्बत के खस्ता आर्थिक हालातों की ओर से ध्यान दिलाते हुए प्रधानमंत्री से दो मामलों में सहायता मांगी। भारत और तिब्बत के बीच मुक्त व्यापार जिससे तिब्बली माल भारत में बेचा जा सके। इसके अलावा व्यापार के लिए तिब्बत को सोना खरीदना था, जिसके लिए उन्होंने भारत सरकार से दो मिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक सहायता मांगी। दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री नेहरू ने दोनों ही प्रस्तावों को चीन के दबाव में नामंजूर कर दिया। तिब्बत के वित्त मंत्री त्सेपोन शाकबापा ने भारत से मदद की गुहार लगाते हुए पत्र भी लिखा। इसमें कहा गया कि चीन जबरन हमारे इलाके में घुस आया है। अगर आप आज हमें सपोर्ट नहीं करेंगे तो आगे चलकर ये आपके लिए भी नुकसानदायक हो सकता है। लेकिन तब सारी बातों को नजरअंदाज करते हुए पंडित नेहरू चीन के साथ अपनी दोस्ती निभाने में लगे हुए थे। वर्तमान हालात सभी के सामने हैं। भारत और चीन का जिक्र होता है तो दोनों देशों के जून 1954 में हुए पंचशील समझौता का भी जिक्र जरूर होता है। 1954 में हस्ताक्षरित भारत-चीन पंचशील समझौते की भारत में तुरंत आलोचना हुई। पूर्व कांग्रेस नेता और सांसद आचार्य कृपलानी ने इसे पाप में जन्मा करार दिया था। विशेषज्ञ इसे भारत की आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी भूलों में से एक बताते हैं। इस समझौते के परिणामस्वरूप तिब्बत की स्वतंत्रता का व्यापार समाप्त हो गया और भारत की सीमाएँ चीन के साथ साझा हो गईं। यह भी संदेह है कि बीजिंग का अनुचित प्रभाव हो सकता है। प्रमुख वार्ताकारों में से एक का एक चीनी महिला के साथ संबंध की बात भी इंडिया टुडे के एक रिपोर्ट में कही गई। वैसे दुनिया के कूटनीतिक और सैन्य इतिहास में हनी-ट्रैपिंग का एक लंबा इतिहास किसी से छिपा नहीं है।

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पंचशील को भारत ने शांति समझौता समझा

हिंदी-चीनी भाई-भाई... 69 साल पहले साल 1954 में लगाए गए थे। 29 अप्रैल के दिन पंचशील समझौते की नींव रखी गई थी। ये समझौता चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर हुआ था। भारत ने इसे ग्रेट डील बताते हुए 25 सालों के लिए आगे बढ़ाने की बात कही। लेकिन चीन की तरफ से पांच साल की समयसीमा के बाद आठ वर्ष पर हामी भरी गई। 1954 के पांच सालों के बाद 1959 में तिब्बत पर चीनी आक्रमण देखने को मिला। फिर आठ सालों के बाद 1962 में भारत पर चीन ने हमला कर दिया।

चीन ने कैसे भारत को अपनी बातों से उलझाया

जब चीनी सैनिक तिब्बत में दाखिल हुए उसी वक्त चीनी प्रधानमंत्री चाउइन लाई भारत के दौरे पर आए। उन्होंने भारत से देश के हालात के बारे में जिक्र करते हुए मदद मांगी। चीन के तिब्बत सप्लाई के लिए जो रास्ता है उसमें काफी वक्त लगता है। अगर कलकता पोर्ट को खोल दिया जाए। जिससे हम शंघाई से कलकता पोर्ट के रास्ते नाथुला पोस्ट तक सप्लाई आसानी से पहुंचा सकेंगे।

भारतीय को हनीट्रैप कर किया गया पंचशील समझौता?

भारत और चीन के बीच हुआ समझौता, जिसने चीन के हिस्से के रूप में तिब्बत के भाग्य को और भी तय कर दिया। ये दोनों देशों के बीच चार महीने की गहन बातचीत का परिणाम था। चीन में राजदूत एन राघवन ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था। राजनयिक त्रिलोकी नाथ कौल और दिल्ली के विदेश कार्यालय के ऐतिहासिक प्रभाग के उप निदेशक डॉ गोपालाचारी, बीजिंग के लिए उड़ान भरने वाले अन्य सदस्य थे। पंचशील समझौते के लिए बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका टीएन कौल ने निभाई थी। इस दौरान उनका निजी जीवन विवादों में घिरा हुआ था। 2018 के डेलीओ लेख में प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक और तिब्बतविज्ञानी क्लाउड अर्पी ने अपने लेख में बताया था कि उनका चीनी महिला के साथ अफेयर चल रहा था। अफेयर ने उनकी निष्पक्षता और चीनी प्रभाव के प्रति संभावित संवेदनशीलता पर सवाल उठाए। उनके आरोपों को तब और बल मिला जब भारत के विदेश कार्यालय के ऐतिहासिक प्रभाग के पूर्व प्रमुख अवतार सिंह भसीन की पुस्तक - नेहरू, तिब्बत और चीन  में टीएन कौल और एक चीनी महिला से जुड़े मामले के बारे में बात की गई। भसीन ने अपनी पुस्तक में लिखा कि 1954 के समझौते से पहले राजनीतिक और महत्वपूर्ण संवेदनशील चर्चाओं में व्यस्त रहने के दौरान उनका एक चीनी महिला के साथ संबंध था, जो कि उनके रैंक के एक अधिकारी से अपेक्षित व्यवहार के सभी मानदंडों का उल्लंघन था।

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शादी करना चाहते थे कौल

भसीन और तिब्बत विशेषज्ञ क्लॉड अर्पी दोनों ने लिखा है कि बीजिंग में ग्लैमरस भारतीय प्रभारी कौल भी चीनी महिला से शादी करना चाहते थे। अवतार सिंह भसीन ने अपनी पुस्तक में कहा है कि कौल ने उससे शादी करने की अनुमति मांगी, जबकि वह पहले से ही शादीशुदा थे। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी इसकी खबर मिली। जिसके बाद वह भड़क गए और समझौते की बातचीत समाप्त होने का इंतजार किए बिना जल्द से जल्द भारत लौटने को कहा। पीएम नेहरू के विरोध के कारण कौल को चीनी महिला से शादी करने की योजना छोड़नी पड़ी। हालाँकि वह शादी के लिए आगे नहीं बढ़े, लेकिन वह तुरंत नई दिल्ली वापस नहीं गए, जैसा कि प्रधान मंत्री नेहरू ने आदेश दिया था।

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