कठिन आर्थिक दौर से ब्रिटेन को बाहर निकालने का श्रेय ऋषि सुनक को ही जायेगा

Rishi Sunak Keir Starmer
Prabhasakshi

इसके अलावा, 14 वर्षों से ब्रिटेन की सत्ता में रही कंजर्वेटिव पार्टी की हालत चुनावों से पहले ही खस्ता नजर आ रही थी क्योंकि कई लोगों ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था और पार्टी के कई नेता और सलाहकार नई नौकरियों की तलाश में निकल पड़े थे।

ब्रिटेन की जनता ने इस बार के आम चुनाव में सत्ता पलट दी है। महंगाई की सर्वाधिक मार झेलने वाली ब्रिटेन की जनता ने कंजरवेटिव पार्टी को चुनावों में कड़ा सबक सिखाया है जिसके चलते प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को माफी मांगते हुए यह कहना पड़ा है कि मैंने आपके गुस्से और निराशा को महसूस किया है और मैं इस हार की जिम्मेदारी लेता हूं। वैसे चुनाव के नतीजे जो भी रहे हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि ऋषि सुनक ने अपने देश को कठिन आर्थिक परिस्थितियों के दौर से सफलतापूर्वक बाहर निकाला है। बोरिस जॉनसन के इस्तीफे के बाद जब लिज ट्रस ने ब्रिटेन की कमान संभाली थी तो तुरंत ही उन्हें अर्थव्यवस्था की बिगड़ी सेहत का अंदाजा हो गया था और उन्होंने महज 45 दिनों के भीतर ही प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया था। उस समय ऋषि सुनक ही अंतिम तारणहार दिखाई पड़ रहे थे। देखा जाये तो ऋषि सुनक ने उस समय प्रधानमंत्री के रूप में कांटों का ताज पहना था क्योंकि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था महामारी के बाद हिचकोले खा रही थी। महंगाई और ब्याज दरें बढ़ रही थीं। यूक्रेन युद्ध ने ऊर्जा पर होने वाले खर्च को बढ़ा दिया था। मुद्रा बाजार में स्टर्लिंग (ब्रिटेन में प्रचलित मुद्रा) कमजोर दिख रही थी। एक सफल बैंकर और वित्त मंत्री रहे सुनक ने प्रधानमंत्री बनते ही बजट घाटे को काबू में किया, सरकार के खर्चों में कटौती की और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लेकर आये लेकिन वैश्विक संघर्षों के चलते बाधित हुई सप्लाई चेन की वजह से बढ़ती महंगाई को वह नहीं रोक पाये। इसके अलावा चूंकि उनकी पार्टी पिछले लगभग डेढ़ दशक से सत्ता में थी इसलिए ब्रिटेन में इस बार बदलाव की जोरदार लहर चल रही थी जोकि परिणामों में स्पष्ट नजर आ रही है।

वैसे ब्रिटेन के आम चुनावों में बदलाव होने वाला है इसके संकेत पिछले साल हुए उपचुनावों में ही मिल गये थे। ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने के बाद से ऋषि सुनक की वैश्विक लोकप्रियता में तो इजाफा हुआ था लेकिन ब्रिटेन में पिछले साल तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में उनकी कंजरवेटिव पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा था। अब आम चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को अपने इतिहास की सबसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में सवाल खड़ा हुआ है कि क्या सुनक की नीतियां जनता को पसंद नहीं आ रही थीं? सवाल यह भी उठा है कि कंजरवेटिव पार्टी को गलत नीतियों की सजा चुनावों में मिली या पार्टी को एकजुट नहीं होने का खामियाजा भुगतना पड़ा है? सवाल यह भी है कि क्यों कंजरवेटिव पार्टी के नेता और सांसद ही अक्सर विवादों में रह कर सुनक की मुश्किलें बढ़ा रहे थे?

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इसके अलावा, 14 वर्षों से ब्रिटेन की सत्ता में रही कंजर्वेटिव पार्टी की हालत चुनावों से पहले ही खस्ता नजर आ रही थी क्योंकि कई लोगों ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था और पार्टी के कई नेता और सलाहकार नई नौकरियों की तलाश में निकल पड़े थे। अब कंजर्वेटिव पार्टी के जो लोग जीत कर आये हैं वह प्रभावी विपक्ष की भूमिका सही से निभा पाएंगे, इसके बारे में विश्लेषकों को संदेह है। माना जा रहा है कि लेबर पार्टी को कुछ वर्षों तक खुली छूट मिली रहेगी।

जहां तक चुनाव परिणाम की बात है तो आपको बता दें कि ऋषि सुनक तो चुनाव जीत गये लेकिन उनके मंत्रिमंडल में शामिल पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस और कई कैबिनेट मंत्री पराजित हो गए। सुनक उत्तरी इंग्लैंड में अपनी रिचमंड एवं नॉर्थलेरटन सीट पर 23,059 वोट के अंतर के साथ दोबारा जीत हासिल करने में सफल रहे हैं। लेकिन रक्षा मंत्री ग्रांट शेप्स, न्याय मंत्री एलेक्स चाक और मिशेल डोनेलन जैसे बड़े नेता चुनाव हार गये। ब्रिटेन के आम चुनाव में लेबर पार्टी के बहुमत से काफी ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करते ही ऋषि सुनक ने हार स्वीकार कर ली और लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर को बधाई दी। उन्होंने किंग चार्ल्स से मिलकर अपना इस्तीफा उन्हें सौंप दिया। इससे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर प्रधानमंत्री के रूप में देश को आखिरी बार संबोधित करते हुए कहा, "मैंने देश सेवा में अपना सब कुछ लगा दिया है, लेकिन आपने स्पष्ट संकेत दिया है कि यूनाइटेड किंगडम की सरकार को बदलना होगा और आपका निर्णय ही मायने रखता है। उन्होंने कहा कि मैंने आपके गुस्से, आपकी निराशा को समझा है और मैं इस नुकसान की जिम्मेदारी लेता हूं। उन्होंने कहा कि सभी कंजर्वेटिव उम्मीदवारों ने अथक परिश्रम किया, लेकिन सफलता नहीं मिली, मुझे खेद है कि हम आपके प्रयासों के अनुरूप परिणाम नहीं दे सके।

वैसे ऋषि सुनक के लिए राहत देने वाली बात यह है कि भारतीय पहचान वाले ब्रिटेन के पहले प्रधानमंत्री के रूप में उनकी विरासत सुरक्षित रहेगी। भारतीय मूल के पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने से पहले 44 वर्षीय ऋषि सुनक भारतीय मूल के पहले ब्रिटिश वित्त मंत्री भी थे जिन्होंने घबराई हुई जनता को उसकी आर्थिक स्थिति के बारे में आश्वस्त करने के लिए कई असंभव कार्य किये थे। उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का नाम पार्टीगेट स्कैंडल में सामने आया था जिससे वह अलोकप्रिय हो गए थे। ऋषि सुनक को अक्टूबर 2022 में दीपावली के दिन कंजर्वेटिव पार्टी का नेता चुना गया था। तब उन्होंने 210 साल में सबसे कम उम्र के ब्रिटिश प्रधानमंत्री और देश के पहले अश्वेत नेता के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट में प्रवेश किया था। साउथेम्प्टन में जन्मे सुनक के माता-पिता-सेवानिवृत्त डॉक्टर यशवीर और फार्मासिस्ट उषा सुनक भारतीय मूल के हैं, जो 1960 के दशक में केन्या से ब्रिटेन पहुंचे थे। उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति इन्फोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति तथा शिक्षिका, लेखिका एवं वर्तमान में भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा की सदस्य सुधा मूर्ति की बेटी हैं। सुनक जब स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में छात्र थे तब उनकी मुलाकात अक्षता से हुई थी। सुनक पहली बार 2015 में यॉर्कशायर के रिचमंड से संसद सदस्य चुने गए थे।

बहरहाल, ब्रिटेन कभी राजनीतिक स्थिरता के लिए प्रसिद्ध था लेकिन 2016 में यूरोपीय संघ छोड़ने के बाद से उसकी हालत खस्ता है। पहले कोविड-19 महामारी से उपजी चुनौतियों ने संकट बढ़ाया तो उसके बाद सार्वजनिक सेवाओं और जीवनयापन की बढ़ती लागत ने दिक्कतें बढ़ा दीं। देखना होगा कि नई सरकार चुनौतियों पर कैसे विजय पाती है?

-नीरज कुमार दुबे 

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