IIMC द्वारा आयोजित व्याख्यान में बोले प्रो. शुक्ल, विश्व के सबसे सफल संचारक थे गांधी
इस मौके पर बोलते हुए प्रो. शुक्ल ने कहा कि संचार एक गतिविधि नहीं, बल्कि संचार एक प्रक्रिया है। अगर आपको गांधीजी को संचारक के रूप में देखना है, तो उन्हें एक नहीं, अनेक रूपों में देखना होगा, जैसे अंत:संचारक गांधी, समूह संचारक गांधी, वैश्विक मूल्यों के संचारक गांधी।
नई दिल्ली। ''संचार के उद्देश्यों की बात की जाए, तो गांधी विश्व के सबसे सफल संचारक थे। अपने इसी गुण के कारण वह देश के अंतिम व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे।'' यह विचार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने गुरुवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम 'गांधी पर्व' में व्यक्त किए। आयोजन में पुनरुत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद की कुलपति श्रीमती इंदुमती काटदरे मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुईं। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने की। इस मौके पर बोलते हुए प्रो. शुक्ल ने कहा कि संचार एक गतिविधि नहीं, बल्कि संचार एक प्रक्रिया है। अगर आपको गांधीजी को संचारक के रूप में देखना है, तो उन्हें एक नहीं, अनेक रूपों में देखना होगा, जैसे अंत:संचारक गांधी, समूह संचारक गांधी, वैश्विक मूल्यों के संचारक गांधी।
प्रो. शुक्ल ने कहा कि गांधीजी एक तरफ समाचारपत्र को लोक जागरण और लोक शिक्षण का साधन मानते हैं, वहीं दूसरी ओर यूरोपीय पत्रकारिता और यूरोपीय दृष्टि से भारत में हो रही पत्रकारिता के आलोचक भी हैं। साथ ही यूरोपीय शिक्षा पद्धति का भी गांधीजी खुलकर विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि गांधीजी जो पुस्तक पढ़ते थे, उनसे न केवल वे स्वयं सीखते थे, बल्कि दूसरों को भी अच्छाई का संदेश देते थे। उनका पुस्तकें पढ़ने का एक उद्देश्य यह भी होता था, कि उसको वह अपने संपादकीय लेखन में शामिल कर सकें। प्रो. शुक्ल ने कहा कि गांधीजी एक सफल पत्रकार थे, लेकिन उन्होंने कभी भी पत्रकारिता को अपनी आजीविका का आधार बनाने की कोशिश नहीं की। 30 वर्षों तक उन्होंने बिना किसी विज्ञापन के अखबारों का प्रकाशन किया।A Webinar on ‘Mahatma Gandhi as a Communicator’ was organised to mark 151st birth anniversary of Mahatma Gandhi.Dr.Rajneesh Shukla,VC,Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya,Smt.Indumati Katdare,VC,Punaruthhan Vidyapeeth,Shri Sanjay Dwivedi,DG,IIMC graced the occasion pic.twitter.com/Qow4UQmAph
— IIS Officer Trainees (@iis_now) October 1, 2020
श्रेष्ठ समाज का निर्माण करती है शिक्षा: काटदरे
इस अवसर पर पुनरुत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद की कुलपति श्रीमती इंदुमती काटदरे ने कहा कि श्रेष्ठ समाज के निर्माण के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि गांधीजी का मानना था कि श्रेष्ठ समाज के दो आयाम हैं, समृद्धि और संस्कृति। समृद्धि अर्थशास्त्र का विषय है, जबकि संस्कृति धर्म से आती है। अंग्रेजों ने हमेशा से समृद्धि और संस्कृति को एक दूसरे का विरोधी माना था, लेकिन भारत ने ये सिद्ध करके दिखाया कि ये दोनों आयाम समाज में एक साथ रह सकते हैं।
काटदरे ने कहा कि गांधी एक काल के नहीं है। उनका चिंतन, विचार और व्यवहार 20वीं शताब्दी में हुए, लेकिन उनके नाम से एक पूरा युग जाना जाता है। आप समाज के प्रत्येक क्षेत्र में गांधी विचार या गांधीवाद का असर देख सकते हैं। उन्होंने कहा कि गांधी देहरूप में 20वीं शताब्दी में हुए, लेकिन भावनाओं एवं विचारों में वह युगों से चली आई भारतीय ज्ञान परंपरा की अगली कड़ी थे।
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अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप मैकाले को पढ़ेंगे, तो आपको पता चलेगा कि किस तरह ब्रिटिशों द्वारा चलाए जाने वाले स्कूलों में यूरोपीय ज्ञान का प्रचार प्रसार किया जाता था। उन्होंने कहा कि मैकाले ने लिखा था कि इंग्लैंड के किसी एक प्राथमिक स्कूल की लाइब्रेरी की एक अलमारी की एक शेल्फ की पुस्तकों में जितना श्रेष्ठ ज्ञान है, वह भारत के संपूर्ण ज्ञान ग्रंथ से कहीं बढ़कर है। यही अंग्रेजों का सूत्र वाक्य था। काटदरे ने कहा कि गांधी जी ने जो बुनियादी शिक्षा पद्धति भारत को दी, अगर उसका अनुसरण हो, तो भारत को ज्ञान के शिखर पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।
शुरू कीजिए डिजिटल सत्याग्रह : प्रो. द्विवेदी
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि अगर आप भी गांधीजी के रास्ते पर चलना चाहते हैं, तो आज से डिजिटल सत्याग्रह की शुरुआत कीजिए। बापू के तीन बंदरों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि गांधीजी ने इन बंदरों के जरिए बुरा ना देखने, बुरा ना बोलने और बुरा ना सुनने की शिक्षा दी थी। लेकिन आज के इस डिजिटल युग में मैं आपसे ये कहना चाहता हूं कि ''बुरा मत टाइप करो, बुरा मत लाइक करो और बुरा मत शेयर करो।''
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि आइये हम सब मिलकर झूठी खबरें फैलाने वालों के साथ असहयोग आंदोलन की शुरुआत करें। सोशल मीडिया पर आने वाली खबरों की, सत्यता के पैमाने पर जांच करें। उन्होंने कहा कि याद रखिए सच में झूठ की मिलावट अगर नमक के बराबर भी होती है, तो वो सच नहीं रहता, उसका स्वाद किरकिरा हो जाता है। इसलिए अब वक्त आ गया है कि असली खबरों और विचारों पर झूठ का नमक छिड़कने वालों के खिलाफ आज के ज़माने का दांडी मार्च शुरु किया जाए। 'गांधी पर्व' के इस मौके पर प्रो. संजय द्विवेदी ने स्वच्छता अभियान तथा पर्यावरण रक्षा से जुड़े संस्थान के सहयोगियों का सम्मान भी किया।
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इस मौके पर संस्थान के अपर महानिदेशक सतीश नम्बूदिरीपाद भी मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन भारतीय जन संचार संस्थान की छात्र संपर्क अधिकारी विष्णुप्रिया पांडेय ने किया। आयोजन के अंत में भारतीय सूचना सेवा की पाठ्यक्रम निदेशक श्रीमती नवनीत कौर ने सभी वक्ताओं का धन्यवाद दिया।
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