Election special। आखिर किन मुद्दों पर वोट डालेंगी चुनावी राज्यों की महिलाएं

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अंकित सिंह । Dec 15 2021 7:38PM

तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, केरल और पुडुचेरी जैसे राज्य में भी हमने देखा कि कैसे सभी दल महिलाओं को लुभाने की कोशिश कर रहे थे। बिहार में एनडीए की जीत पर भाजपा की ओर से बार-बार यह कहा गया कि हमें साइलेंट वोटर्स का काफी समर्थन प्राप्त हुआ है।

साल 2022 के शुरुआत में पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने सभी पार्टियां आधी आबादी को साधने में जुट गई है। आधी आबादी यानी कि महिला मतदाता। वर्तमान की राजनीति में इन्हें साइलेंट वोटर भी कहा जाता है जो बोलती तो कुछ नहीं हैं लेकिन अपना वोट चुपचाप डाल आती हैं। चुनावी महासमर में सभी दल इन महिला वोटर्स के मन को टटोलने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि चुनाव दर चुनाव देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि महिला वोटर साइलेंट फैक्टर के रूप में काम ही नहीं कर रही बल्कि अपनी भागीदारी को भी साइलेंट तरीके से आगे बढ़ा रही हैं। तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, केरल और पुडुचेरी जैसे राज्य में भी हमने देखा कि कैसे सभी दल महिलाओं को लुभाने की कोशिश कर रहे थे। बिहार में एनडीए की जीत पर भाजपा की ओर से बार-बार यह कहा गया कि हमें साइलेंट वोटर्स का काफी समर्थन प्राप्त हुआ है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह साइलेंट वोटर तमाम एग्जिट पोल को गलत साबित कर देती हैं। अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन राज्यों में महिलाओं के मुद्दे क्या हैं?

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उत्तर प्रदेश के मुद्दे

राजनीतिक लिहाज से उत्तर प्रदेश किसी भी दल के लिए बेहद मायने रखता है। उत्तर प्रदेश में जब-जब महिलाओं पर चर्चा की जाती है तब-तब वहां की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए जाते हैं। योगी सरकार लगातार उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने का दावा करती है। लेकिन विपक्ष महिला अत्याचार और उत्पीड़न को लेकर लगातार योगी सरकार से सवाल पूछता है। उत्तर प्रदेश में देखें तो महिलाओं के लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा उनकी सुरक्षा है। हालांकि महिलाओं का मानना यह भी है कि पहले की तुलना में वह राज्य में अब ज्यादा सुरक्षित हैं। हालांकि उन्हें इससे ज्यादा की उम्मीद है। हाथरस और उन्नाव जैसे कांड ने उन्हें अब भी कहीं ना कहीं डरा रहा है। उत्तर प्रदेश में ज्यादातर महिलाएं गृहणी हैं। ऐसे में इस चुनाव में उनके लिए महंगाई बड़ा मुद्दा रहने वाला है। गांव और शहर की साफ-सफाई को लेकर भी वह लगातार मुखर हो रही हैं। इसके अलावा रोजगार और अपने हक की लड़ाई को लेकर महिलाएं आगे आ रही है। ऐसे में इसे भी बड़ा चुनावी मुद्दा कहा जा सकता है। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को बल देने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने तो उत्तर प्रदेश में 40 फ़ीसदी महिलाओं को टिकट देने का भी ऐलान कर दिया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस की ओर से महिला मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए यह बड़ा दांव खेला खेला है। 

उत्तर प्रदेश में महिला सशक्तिकरण भी एक बड़ा मुद्दा रहने वाला है। जिस तरीके से भाजपा सरकार ने तीन तलाक मुद्दे को लेकर कानून बनाएं, उसके बाद से मुस्लिम महिलाओं में सशक्तिकरण के लिए इसे बड़ा हथियार माना जा रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में भाजपा यह मुद्दा जोर-शोर से उठाएगी।

चुनाव आयोग के आंकड़ों की मानें तो उत्तर प्रदेश में कुल 14.61 करोड़ मतदाता हैं। इनमें से महिला वोटरों की संख्या 6.70 करोड़ है। 

वर्तमान में महिला सांसद और विधायक

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। लेकिन 2019 में हुए चुनाव में सिर्फ 11 महिलाएं ही जीत दर्ज कर सकी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की 8 महिला सदस्यों ने चुनाव जीता जबकि कांग्रेस, बीएसपी और अपना दल के 1-1 उम्मीदवारों ने बाजी मारी। वहीं विधानसभा के बात करें तो बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 35 महिला विधायक हैं। जबकि कांग्रेस के पास दो महिला विधायक, बीएसपी के पास भी दो महिला विधायक, एसपी के पास एक महिला विधायक और अपना दल के पास भी एक महिला विधायक हैं। 

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पंजाब के मुद्दे

पंजाब में भी महिला वोटर्स की संख्या अच्छी-खासी है। महंगाई ने यहां की भी महिला वोटर्स के बचत के उपर डाका डाला है। लेकिन देखा जाए तो पंजाब की महिलाओं का सबसे बड़ा मुद्दा ड्रग्स है। जिस तरीके से पंजाब में ड्रग्स का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है उससे यहां की महिलाएं चिंतित हैं। ड्रग्स की वजह से उनके बच्चे और पति पर बुरा असर पड़ रहा है। इसके अलावा यहां भी महिलाओं के लिए सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। कानून व्यवस्था को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। राजनीतिक दल कृषि क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं को भी टारगेट कर रही है। पंजाब में महिलाओं के बीच गरीबी भी ज्यादा है। यही कारण है कि कुछ राजनीतिक दलों ने उन्हें 1000 रुपये तक का मंथली पेंशन देने का भी ऐलान कर दिया है। 

उत्तराखंड के मुद्दे

उत्तर प्रदेश से अलग होकर बने उत्तराखंड में भी अगले साल विधानसभा के चुनाव होने है। यहां की भी महिलाओं की अपनी अलग समस्याएं हैं। कुल मिलाकर देखें तो पहाड़ी बहुल राज्य होने के कारण यहां की भौगोलिक परिस्थितियां अलग है जो एक बड़ी आबादी को मुख्यधारा की विकास से दूर करता है। यहां का जीवन चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में देखा जाए तो उत्तराखंड की महिलाओं को सबसे ज्यादा स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है। अगर किसी महिला को प्रसव पीड़ा हो रहा है तो उसे सुदूर जाना पड़ता है। इसको लेकर ना तो गांव में कोई सुविधा मौजूद है और ना ही अस्पताल है। इसके अलावा महिला शिक्षा भी यहां बड़ा मुद्दा है। शांत राज्य उत्तराखंड में देखें तो यहां पलायन बड़ी समस्या है। यहां के ज्यादातर पुरुष रोजगार की खोज में पलायन करते हैं जिसका महिलाओं पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। महिलाएं स्थानीय रोजगार को लेकर भी मतदान कर सकते हैं। महिलाओं के लिए जितनी भी सरकारी योजनाएं हैं, उनका उन तक पहुंचना सबसे ज्यादा जरूरी है। उत्तराखंड में अब भी बहुत सारी ऐसी मुझसे महिलाएं हैं जिनके पास सरकारी सुविधाओं का लाभ सीधा नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसे में इस बार का चुनावी मुद्दा यह भी रह सकता है। 

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गोवा के मुद्दे

गोवा में महिला सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। गोवा विकसित राज है। ऐसे में यहां की महिलाएं मूलभूत सुविधाओं से संपन्न मानी जाती हैं। इसके साथ ही साथ यहां की महिलाएं पढ़ी-लिखी भी होती हैं। ऐसे में यहां के महिलाओं के मुद्दों में सबसे ज्यादा रोजगार की बातें हो सकती हैं। इसके अलावा स्टार्टअप्स की भी बात कही जा सकती हैं। गोवा में लाखों पर्यटक हर साल आते हैं। ऐसे में कानून व्यवस्था का मुद्दा बड़ा हो सकता है। 

मणिपुर के मुद्दे

पूर्वोत्तर के छोटे राज्य मणिपुर में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। यहां पर महिलाओं के अपने मुद्दे हैं। मुख्यधारा की मूलभूत सुविधाओं से दूर मणिपुर की महिलाएं अब भी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं से जूझ रही है। महिला सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण भी मणिपुर में एक बड़ा मुद्दा रहने वाला है। सरकारी योजनाओं का लाभ भी महिलाओं तक आसानी से पहुंचे, इसको लेकर भी आगामी चुनाव में मुद्दे उठाए जाएंगे।

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