Malacca Strait: चीन की जान इस 'तोते' में बसती है, भारत इस कदम से घुटनों पर ला सकता है, पूर्व राष्ट्रपति जिंताओ ने बताया था बड़ी दुविधा
करीब 800 किलोमीटर लंबा समुद्र का ये रास्ता इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर के बीच में पड़ता है। यही मलक्का जल संधि चीन के लिए लाइफलाइन है। चीन अपने कारोबार और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए इसी मार्ग पर निर्भर रहता है।
भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश के तवांग में 9 और 11 दिसंबर को हुए सैन्य झड़प के बाद से एक बार फिर दोनों देशों के संबंधों में खटास आती नजर आ रही है। हमेशा से शांति और पड़ोसियों से मधुर संबंधों के हिमायती भारत ने इस बार चीन की आक्रमकता का उसी की भाषा में जवाब दिया है और आलम ये नजर आया कि चीनी सैनिक बैरंग वापस भागने पर मजबूर हो गए। हालांकि चीन को जमीन से ज्यादा बड़ी चिंता सागर की सता रही है। आपने अपने बचपन में एक कहानी सुनी होगी। जादूगर की जान तोते में होती थी। तोते की गर्दन मरोड़ते हुए वो छटपटाने लगता था। हमारा पड़ोसी मुल्क चीन जो कमबख्त हर जगह बस घुसपैठ की ताक में रहता है। जादूगर की तरह का ही एक तोता चीन का भी है। समुद्र का एक रास्ता, जिसमें उसकी जान बसती है। ये रास्ता चीन की जीवन रेखा है। उसके उद्योग और कारोबार इसी रास्ते पर निर्भर है। इस पतली सी गर्दन वाले रास्ते की चाबी भारत के पास है। चीन को लंबे समय से ये डर सताता आया है कि किसी दिन लड़ाई हुई तो भारत ये रास्ता बंद कर देगा। ऐसा हुआ तो चीन का सारा काम काज ठप्प हो जाएगा। ऐसा न हो इसके लिए चीन लंबे समय से हाथ पांव मार रहा है। उसकी कोशिश एक इमरजेंसी रूट बनाने की है।
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भारत से साढ़े पांच हजार किलोमीटर दूर पूर्वी अफ्रीका का एक देश मेडागास्कर है। आज से करीब 18 करोड़ साल पहले गोंडवाना नाम के एक सबकॉन्टिनेंट में दरार आई। इसके हिस्से टूटकर अलग हो गए। इसमें गोंडवाना के पूरब का भी हिस्सा था। जिसमें भारत और मेडागास्कर भी थे। फिर भारत और मेडागास्कर के बीच विभाजन हुआ। मेडागास्कर अफ्रीका में रह गया और भारत वाला हिस्सा उत्तरी पूर्वी हिस्सा में खिसकर वहां पहुंचा जहां हम आ हैं। इस विभाजन ने हमें एक महासागर सबसे प्राइम लोकेशन पर बिठाकर रख दिया। वो महासागर जिसमें हमारी साथ यूं गूंथी की दुनिया ने इसका नाम हमारे नाम पर रख दिया। हम इंडियन ओसियन यानी हिंद महासागर की बात कर रहे हैं जिसके बीचो बीच भारत बसा है। हमारे एक तरफ अफ्रीका है और दूसरी तरफ मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे देश हैं। इसी हिंद महासागर में पड़ती है मलक्का जलसंधि। जिसे कभी चीन के तत्ताकालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ ने 2003 में मलक्का दुविधा के रूप में संर्दिभत किया था।
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करीब 800 किलोमीटर लंबा समुद्र का ये रास्ता इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर के बीच में पड़ता है। यही मलक्का जल संधि चीन के लिए लाइफलाइन है। चीन अपने कारोबार और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए इसी मार्ग पर निर्भर रहता है। करीब 80 फीसीद तेल की आपूर्ति इसी मलक्का जलसंधि मार्ग पर होती है। सिंगापुर अनिवार्य रूप से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत का सहयोगी है और संभवतः उनसे प्रभावित हो सकता है। चीन द्वारा यह आशंका जताई गई है कि यह संभवत: निकट भविष्य में गतिरोध की स्थिति में इस मार्ग पर भारत का नियंत्रण चीन को गहरी चोट पहुंचा सकता है। अगर ऐसा होता है तो चीन के जहाजों को लंबा रास्ता चुनना होगा और इससे पड़ने वाले आर्थिक बोझ को संभालना इस वक्त उसके लिए संभव नहीं होगा। सामरिक विशेषज्ञों के अनुसार, अगर रास्ता बंद होता है तो ये चीन के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। वैकल्पिक मार्गों की खोज में, उनमें से अधिकांश जैसे सुंडा जलडमरूमध्य, लोम्बोक और मकासर जलडमरूमध्य असंतोषजनक साबित हुए हैं।
नए राह की तलाश
भूमि मार्ग के विकल्पों की खोज की जा रही है जो संभवतः चीन की मदद कर सके। ऐसा ही एक आइडिया थाईलैंड की क्रा इस्थमस कैनाल के जरिए एक नहर बनाने का था। लेकिन, नहर चीन को थाईलैंड पर सीधा नियंत्रण दे सकता है और इस तथ्य ने समझौता को बहुत दूर रखा, एक ऐसा सौदा जिसे थाईलैंड शायद स्वीकार नहीं करेगा। ऐसे कई प्रस्तावित मार्ग असंतोषजनक साबित हुए हैं। आखिरकार चीन ने मलक्का जलडमरूमध्य पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। ऐसी ही एक परियोजना ग्वादर-झिंजियांग बंदरगाह है, जो पाकिस्तान में चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के लिए $50.60 बिलियन के निवेश के हिस्से के रूप में है, जो ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से तेल आयात करने पर ध्यान केंद्रित करता है जो इसे पश्चिम एशियाई देशों से जोड़ता है।
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वास्तविकता पर पुनर्विचार
चीन इस परियोजना को लेकर महत्वाकांक्षी नजर आ रहा है। लेकिन, प्रस्तावित मार्ग के परिदृश्य और इलाके पर विचार करते समय एक प्रश्न हमेशा चिंता पैदा करता है। काराकोरम रेंज लगातार भूकंप, भूस्खलन और सबसे महत्वपूर्ण चरम तापमान के लिए प्रवण है। क्या बड़े पैमाने पर तेल के बैरल वाली रेलवे बिना किसी परेशानी के गुजर सकती है? यह अनुमान है कि समुद्री मार्ग से एक बैरल तेल के परिवहन की लागत केवल $2 हो सकती है, जबकि इस पाइपलाइन की लागत कहीं $12 से $15 के बीच हो सकती है, जो परिवहन की बढ़ी हुई लागत को दर्शाता है। इसके अलावा, प्रस्तावित मार्ग सक्रिय आतंकवादी समूहों से ग्रस्त है जो व्यापार को बाधित कर सकते हैं और परेशानी मुक्त परिवहन के अवसर को विलंबित कर सकते हैं।
हू जिंताओ ने बताया था धर्मसंकट
चीन के लिए मलक्का जलसंधि मार्ग बहुत बड़ी चिंता है। 2003 में ही चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ इसे लेकर अपनी चिंता जता चुके हैं। उन्होंने उस वक्त इसे मलक्का दुविधा के रूप में संर्दिभत किया था। यह मार्ग चीन के लिए लाइफलाइन की तरह है और भारत के लिए इसे रोकना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। ऐसे में जिंताओ ने जिस दुविधा की बात की थी, वह इस दौर में आसानी से समझी जा सकती है।- अभिनय आकाश
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