ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद कैसे जिंदा रह गया भिंडरावाले
जरनैल सिंह भिंडरावाले के तेवर शुरू से ही तीखे थे। 13 अप्रैल 1978 को निरंकारी और अमृतधारी सिखों के बीच हुई खूनी मुठभेड़ के बाद से ही वो चर्चा में आने लगा था। इस दिन 13 अमृतधारी सिख मारे गए थे। इसके बाद निरंकारी बाबा गुरवचन सिंह के खिलाफ हरियाणा में मुकदमा चला।
किसी के लिए आतंकवादी, किसी का संत किसी के लिए खौफ का खात्मा, किसी के लिए दमन। एक उलझी हुई तारीख जिसे सुलझाने की हर कोशिश एक नयी गांठ दे जाती है। क्या इतिहास की इस काली तारीख में सात समंदर पार के भी किरदार थे। क्या कूटनीति और व्यावसायिक फायदे की कसौटी पर मासूम भी पिसे थे। क्या भारतीय सेना महज प्यादा थी। क्या ऑपरेशन ब्लू स्टार स्टार महज विध्वंस की साजिश थी।
ऑपरेशन ब्लू स्टार वो घटना है जिसने हिन्दुस्तान के इतिहास को बदल कर रख दिया। ऑपरेशन ब्लू स्टार के जख्म सिर्फ पंजाब के हिस्से में ही नहीं बल्कि इसकी टीस पूरे मुल्क ने महसूस की। आइए आज आपको इस आपरेशन की पूरी कहानी सुनाता हूं।
एक जमाना ऐसा था कि पंजाब देश का सबसे अमीर और विकसित राज्य था। अगर ऐसा था तो क्यों पंजाब के नौजवानों ने हथियार उठाए। क्यों पंजाब में हिन्दुस्तान से अलग एक देश की आवाज उठी, खालिस्तान की आवाज उठी। क्यों टेरेरिज्म में हजारों लोगों की मौत हुई। सवाल ये उठता है कि क्या पंजाब में हिंसा को रोका जा सकता था। लेकिन उससे भी बड़ा और अहम सवाल ये उठता है कि क्या टेरेरिज्म को सरकार और राजनीति ने खुद न्योता दिया था।
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पंजाब के सबसे बुरे दौर की कहानी की शुरूआत होती है इंदिरा गांधी की हार से, 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त हार मिली। पंजाब विधानसभा के चुनाव के बाद कांग्रेस को वहां भी सत्ता से हटना पड़ा। पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में अकाली दल की सरकार बनी और तभी कांग्रेस पार्टी ने एक ऐसे शख्स का सहारा लिया जिसने सात साल के भीतर पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे देश में उथल-पुथल मचा दी। नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले। जनरैल सिंह भिंडरावले अमृतरसर के प्रभावशाली दमदमी टकसाल का जत्थेदार था। राजनीति में उसके दखल के पीछे थे ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी। जैल सिंह उस दौर में पंजाब के बड़े नेता हुआ करते थे। जैल सिंह ने इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को विश्वास में लिया और पंजाब में अकाली दल को पछाड़ने की योजना में भिंडरावले को मोहरा बनाया। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर के मुताबिक भिंडरावाले का दिल्ली में बाकायदा इंटरव्यू हुआ था। इस बात का जिक्र नैय्यर ने अपनी किताब बियांड द लाइंस एंड आट्रोबायोग्राफी में किया है। कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सदस्य जैल सिंह और दरबार सिंह जो बाद में मुख्यमंत्री भी बने उन्होंने मिलकर दो सम्मानित व्यक्तियों का चुनाव किया और उन्हें संजय गांधी से मिलवाया। पहला व्यक्ति संजय को कुछ खास नहीं जंचा, लेकिन भिंडरवाले का अख्खड़पन और तीखे तेवर उन्हें बहुत पसंद आए। संजय को लगा कि अकाली दल को टक्कर देने के लिए वो एकदम सही व्यक्ति हैं। “संजय के दोस्त और सांसद कमलनाथ ने मुझे ये बताते हुए कहा था कि हम कभी-कभी उसे पैसे भी देते रहते थे। हमने कल्पना भी नहीं की थी को आतंकवाद के राह पर चल पड़ेगा।“
जरनैल सिंह भिंडरावाले के तेवर शुरू से ही तीखे थे। 13 अप्रैल 1978 को निरंकारी और अमृतधारी सिखों के बीच हुई खूनी मुठभेड़ के बाद से ही वो चर्चा में आने लगा था। इस दिन 13 अमृतधारी सिख मारे गए थे। इसके बाद निरंकारी बाबा गुरवचन सिंह के खिलाफ हरियाणा में मुकदमा चला। फिर उनकी रिहाई भी हो गई। इन बातों से कट्टर सिख नाराज हुए।
सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने अपने बाद गुरु ग्रथ साहिब को ही गुरु बना दिया। सिख परंपरा के मुताबिक उनके बाद कोई गुरु नहीं हो सकता। जबकि निरंकारी जीवfत गुरुओं में आस्था रखते हैं। 1978 मे बाबा गुरवचन सिंह निरंकारियों के प्रमुख थे। बैसाखी के दिन हुई खूनी झड़प के बाद 24 अप्रैल 1980 को उनकी हत्या कर दी गई। इस हत्या के लिए नामजद ज्यादातर लोगों का ताल्लुक भिंडरावाले से था। इन घटनाओं के बाद भिंडरावाले की मुलाकात पत्रकार कुलदीप नैय्यर के साथ हुई थी। भिंडरावाले ने ठेठ पंजाबी में कहा कि कोई मुझसे टक्कर लेकर तो देखे पता तल जाएगा कि सरकार किसकी है। ये बात चल रही थी कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के रक्षा मंत्री स्वर्ण सिंह कमरे में आए। वो आकर जमीन पर बैठ गए। कहते है संतों के उपस्थिति में फर्श ही सही है। स्वर्ण सिंह की गिनती तब देश के बड़े नेताओं में होती थी और उन्होंने भी भिंडरावाले के सामने फर्श पर बैठना ही मुनासिब समझा।
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बीबीसी से जुड़े पत्रकार सतीश जैकब और मार्क टेली ने मिलकर अमृतसर मिसेज गांधी लास्ट बैटल नाम से किताब लिखी। इसमें कहा गया कि संजय गांधी और ज्ञानी जैल सिंह ने भिंडरवाले के प्रचार प्रसार के लिए नई पार्टी बनवा दी। 1989 के चुनाव में भिंडरावाले ने पंजाब की तीन लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों के समर्थन में चुनाव प्रचार भी किया। भिंडरावाले और कांग्रेस के बीच क्या रिश्ता था इसके बारे में इंदिरा गांधी ने बीबीसी के एक कार्यक्रम में संकेत दिए थे। इंदिरा ने कहा था कि मैं किसी भिंडरावाला को नहीं जानती। हां, शायद वो चुनाव के दौरान हमारे किसी उम्मीदवार से मिलने आए थे। लेकिन मुझे उस उम्मीदवार का नाम याद नहीं है। इंदिरा गांधी बीबीसी के कार्यक्रम में जिस चुनाव का जिक्र कर रही थीं वो था 1980 का जब इंदिरा की जबरदस्त वापसी हुई। लोकसभा की 529 सीटों में से कांग्रेस को 351 सीटें मिलीं। जैल सिंह को इंदिरा गांधी ने गृह मंत्री बनाया। दरबारा सिंह को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया। इसी के साथ पंजाब में राजनीति का नया दौर शुरु हो गया।
पंजाब में जनगणना ने वहां की राजनीति को गर्म कर दिया। धर्म और भाषा को लेकर राजनीति शुरू हो गई। पंजाब में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबार पंजाब केसरी ने हिंदी को लेकर मुहिम चला दी। लाला जगत नारायण ने लिखा कि पंजाब में 1981 के जनगणना चल रही है। इसमें लोगों से उनकी मातृत्व भाषा पूछी जा रही है। हिन्दू अपनी मातृभाषा हिंदी बताए, न कि पंजाबी। इन बातों से कट्टर सिख नाराज हुए, भिंडरावाले उन्हीं में से एक था। लाला जगत नारायण लगातार अपने लेखों के माध्यम से भिंडरावाले को लेकर आगाह कर रहे थे कि सरकार कुछ नहीं कर रही है।आगे चलकर ये खतरनाक हो सकता है। माहौल तनावपूर्ण हो रहा था। 9 सितंबर 1981 को एक बड़ी घटना हुई। लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई। भिंडरावाले पर हत्या का आरोप लगा। हत्या के चार दिन बाद पंजाब सरकार ने भिंडरावाले के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। तमाम उठा पटक के बीट लाला जगत नारायण की हत्या के छह दिन बाद 15 सितंबर 1981 को भिंडरावाले को अमृतसर के गुरूद्वारा दर्शन प्रकाश से गिरफ्तार किया गया।
उस समय के गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने भिंडरावाले की रिहाई की घोषणा करते हुए कहा कि भिंडरावाले के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं है। एक तरफ भिंडरावाले को लेकर राजनीति चल रही थी तो दूसरी तरफ पंजाब को अलग कर अलग देश बनाने की मांग भी होने लगी। पंजाब में खून-खराबा बढ़ता जा रहा था।
पंजाब में हिंसा बढ़ती गई और डीआईजी एए अठवाल की हत्या कर दी गई। उनकी लाश गोल्डन टेंपल के बाहर एक सड़क पर पड़ी रही। आखिर पंजाब के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह को भिंडरावाले को फोन करना पड़ा। पंजाब के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने डीआईजी की हत्या के बाद इंदिरा गांधी को स्वर्ण मंदिर में पुलिस भेजने की सलाह दी। जैल सिंह ने पुलिस भेजने की सलाह नहीं दी और भिंडरावाले को और बल मिल गया। इधर पंजाब में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे थे। जिसके बाद इंदिरा गांधी ने एक बड़ा राजनैतिक फैसला लिया और गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति बना दिया। ज्ञानी जैल सिंह के राष्ट्रपति बनने के एक महीने बाद ही पंजाब में संत हरचंद सिंह लोंगोवाल की अगुवाई में काली दल ने गिरफ्तारी और मोर्चा लगाने का काम शुरू कर दिया। 2 महीने में 30 हजार गिरफ्तारियां हुईं। ये अहिंसक आंदोलन था जिसका मकसद आनंदपुर साहिब रिज्ल्यूशन को लागू करना था। इससे हालात और तनाव और बढ़ते गए। इसी बीच 5 अक्टूबर 1983 को उग्रवादियों ने बड़ी हिंसक घटना को अंजाम दिया। पंजाब से कपूरथला जा रही बस को सिख बंदूकधारियों ने देर रात रोका। जिसके बाद 6 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस हत्याकांड के बाद ही पत्रकार तवलीन सिंह ने भिंडरावाले से मुलाकात की और पूछा कि मारने वाले सिख थे। जवाब में भिंडरावाले ने कहा उनसे मेरा क्या लेना देना। इस घटना के अगले ही दिन इंदिरा गांधी ने दरबारा सिंह सरकार को हटा दिया। पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
15 दिसंबर 1983 को भिंडरावाले ने अपने साथियों के साथ स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया। अकाल तख्त का मतलब एक ऐसा सिंहासन था जो अनंतकाल के लिए बना हो। इसे सोलहवीं सदीं में बनाया गया था। दिल्ली में मुगल दरबार की गद्दी से एक फुट ऊंचा अकाल तख्त बनाया गया था। ताकि बताया जा सके कि ईश्वर की जगह बादशाहों से ऊपर होती है। यहीं से हुक्मनामे जारी होते रहे हैं। भिंडरावाले के अकाल तख्त पर कब्जे का विरोध गोल्डन टेंपल के प्रमुख ग्रंथी कृपाल सिंह ने किया। लेकिन भिंडरावाले ने किसी की परवाह नहीं की। अकाल तख्त से ही भिंडरावाले ने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी और कहा कि हम तो माचिश की तीली की तरह हैं ये लकड़ी से बनी है और ठंडी है लेकिन उसे जलाएंगे तो लपटें निकलेंगी। इंदिरा गांधी के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं। 1984 का फरवरी महीना था और कुछ ही महीने में देश और पंजाब में चुनाव होना था।
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नरसिंह राव उस दौरान विदेश मंत्री हुआ करते थे उन्होंने अकालियों से बात कर समझौता का रास्ता निकाला कि पंजाब को चंडीगढ़ दिया जाएगा और हरियाणा को अबोहर शहर। लेकिन समझौता की शर्त थी इसके लिए भिंडरावाले किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार नहीं हुआ। इस घटना के एक हफ्ते बाद ही लौंगोवाल ने घोषणा कर दी कि 3 जून के बाद से गेंहू पंजाब के बाहर ले जाने नहीं दिया जाएगा। पंजाब में हिन्दुओं और सिखों के बीच तनाव का असर देश के दूसरे राज्यों में होने लगा। 19 फरवरी 1984 को हरियाणा के पानीपत और जगादरी में नौ सिखों को मार दिया गया और तीन गुरूद्वारे भी तोड़े गए।
1 जून 1984 को पंजाब को सेना के हवाले कर दिया गया। 2 जून 1984 की रात इंदिरा गांधी दूरदर्शन पर आई एक आखिरी अपील के साथ। पंजाब में निर्दोष सिख और हिन्दु मारे जा रहे हैं। अराजकता फैली हुई है। धार्मिक स्थल अपराधियों के आश्रयघर बन गए हैं। कोई संदेह है तो आइए हम बातचीत से इसे हल करने का प्रयास करेंगे।
इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने का फैसला किया। कोड वर्ड रखा गया ऑपरेशन ब्लू स्टार। एक तरफ बातचीत का न्यौता दिया गया दूसरी तरफ पंजाब की सारी फोन लाइन काट दी गई। मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार की अगुवाई में सेना स्वर्ण मंदिर की ओर बढ़ी। तीन जून को पाकिस्तान से लगती सीमा को सील कर दिया गया। 5 जून को सेना की कार्रवाई होती रही। 6 जून को तय किया गया अकाल तख्त में छुपे आतंकियों को निकालने के लिए टैंक लगाने होंगे। उसके बाद फौज के ‘विजेता टैंकों’ ने मंदिर की बाहरी दीवार तोड़कर ताबड़तोड़ बमबारी की जिससे आतंकियों को काफी नुकसान हुआ। इस अंतिम हमले में शुबेग सिंह, अमरीक सिंह और भिंडरावाले मारे गए।
अकाल तख्त को भी भारी नुकसान हुआ। हालांकि बाद में सरकार ने अकाल तख्त को बनवाने की पेशकश भी की। लेकिन सिख समुदाय ने सरकार के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर खुद ही अकाल तख्त को दोबारा बनवाया। बहरहाल, 6 जून की देर रात भिंडरावाले की लाश सेना को मिली और सात जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया।
83 सैनिक मारे गए और 248 घायल हुए और मरने वाले आंतकियों की संख्या 492 रही। हालांकि आज भी इस बात को लेकर बहस है कि मरने वालों की संख्या काफी ज्यादा थी जो सेना या आतंकियों की कार्रवाई में मारे गए।
जनरल बराड़ ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा कि भिंडरावाले की मौत के अगले दिन कहानियाँ शुरू हो गईं कि वो रात को बच कर पाकिस्तान पहुंच गया। पाकिस्तानी टीवी अनाउंस कर रहा है कि भिंडरावाले उनके पास हैं और 30 जून को वो उन्हें टीवी पर दिखाएंगे। "वे कहते हैं, "मेरे पास सूचना और प्रसारण मंत्री एचकेएल भगत और विदेश सचिव रसगोत्रा का फ़ोन आया कि आप तो बोल रहे हैं कि वो मर चुके हैं जबकि पाकिस्तान कह रहा है कि वो ज़िंदा हैं। मैंने कहा उनकी पहचान हो गई है। उनका शव उनके परिवार को दे दिया गया है और उनके अनुयायियों ने उनके पैर छुए हैं। उनकी मौत हो गई है, अब पाकिस्तान जो चाहे वो बोलता रहे उनके बारे में।
- अभिनव आकाश
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