एझावा, नायर, मुस्लिम, ईसाई, जिनके इर्द-गिर्द ही राजनीतिक दल सूबे में रणनीति बनाते हैं, केरल की सियासत को आसान भाषा में समझिए

Kerala
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Apr 23 2024 2:27PM

केरल में विभिन्न जातियां और समुदाय प्रमुख पार्टियों और उनके गठबंधनों की राजनीति को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चुनावी मौसम में उम्मीदवारों के चयन से लेकर उनके अभियान चलाने के लिए योजनाएं तैयार करने तक, वोट बैंक बनाए रखने और प्रतिद्वंद्वी क्षेत्रों में आधार बढ़ाने के लिए पार्टियों द्वारा ऐसे समुदायों के हितों और चिंताओं को अपनी रणनीतियों के हिस्से के रूप में शामिल किया जाता है।

दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर अरब सागर व सौहाद्री पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित भाग को केरल के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 38 हजार 863 वर्ग किलोमीटर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने अपना परशु समुद्र में फेंका जिसकी वजह से उसी आकार की भूमि समुद्र से बाहर निकली और केरल अस्तित्व में आया। यहां 10वीं ईसा पूर्व से मानव बसाव के प्रमाण मिले हैं। केरल शब्द की उत्तपति को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं। कहा जाता है कि कि चेर - स्थल, कीचड़ और अलम-प्रदेश शब्दों के योग से केरल शब्द बना है। केरल शब्द का एक और अर्थ है:- वह भूभाग जो समुद्र से निकला हो। केरल की 54.7 फीसदी आबादी भी हिंदुओं, 26.7 फीसदी मुस्लिमों और 18.4 फीसदी आबादी ईसाइयों की है। 

केरल में विभिन्न जातियां और समुदाय प्रमुख पार्टियों और उनके गठबंधनों की राजनीति को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चुनावी मौसम में उम्मीदवारों के चयन से लेकर उनके अभियान चलाने के लिए योजनाएं तैयार करने तक, वोट बैंक बनाए रखने और प्रतिद्वंद्वी क्षेत्रों में आधार बढ़ाने के लिए पार्टियों द्वारा ऐसे समुदायों के हितों और चिंताओं को अपनी रणनीतियों के हिस्से के रूप में शामिल किया जाता है।

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एझावा 

केरल के हिन्दू समुदायों के बीच में सबसे बड़ा समूह है। उन्हें प्राचीन तमिल चेर राजवंश के विलावर संस्थापकों का वंशज माना जाता है, जिनका कभी दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों पर शासन हुआ करता था। राज्य की आबादी का लगभग 23% है। ओबीसी वर्ग से संबंधित एझावा समुदाय परंपरागत रूप से सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के वोट बैंक का हिस्सा रहा है। समुदाय के सबसे बड़े संगठन एसएनडीपी योगम ने 2015 में एक राजनीतिक पार्टी  भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) बनाई। बीडीजेएस 2016 के विधानसभा चुनावों के बाद से राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का सहयोगी रहा है। हालाँकि, भाजपा बीडीजेएस के माध्यम से एझावा समुदाय में पैठ बनाने में सफल नहीं हो पाई। इसके जमीनी स्तर के कार्यकर्ता एसएनडीपी योगम के सदस्य हैं, जो विभिन्न दलों, विशेषकर सीपीआई (एम) से जुड़े हुए हैं। 2018 में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ भाजपा के नेतृत्व वाले आंदोलन के दौरान, बीडीजेएस ने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया। हालाँकि, बीडीजेएस के संरक्षक और एसएनडीपी योगम के महासचिव वेल्लापल्ली नटेसन, सबरीमाला आंदोलन का मुकाबला करने के लिए गठित सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली सरकार के "पुनर्जागरण आंदोलन मंच के साथ बने रहे।

2019 के लोकसभा चुनावों में बीडीजेएस ने 20 में से 4 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन कोई खास कामयाबी हाथ नहीं लगी।  उसे केवल 1.88% वोट ही प्राप्त हुए। जबकि सहयोगी भाजपा ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन 13% वोट लाने में तो कामयाब हो गई लेकिन खाता फिर भी नहीं खुल सका। 2021 के विधानसभा चुनावों में बीडीजेएस ने 140 में से 21 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन इसका वोट शेयर और गिरकर 1.06% हो गया। भाजपा ने 113 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे कोई सीट नहीं मिली। बीजेपी के भी वोट शेयर में गिरावट हुई और ये 11.30% रह गया। इनमें से कई सीटों पर एलडीएफ विजयी हुआ या पिछले चुनावों की तुलना में उसके वोट शेयर में सुधार हुआ। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीडीजेएस फिर से बीजेपी की 16 सीटों की तुलना में 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बीडीजेएस के अध्यक्ष तुषार वेल्लापल्ली कोट्टायम से मैदान में हैं, जबकि भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन अटिंगल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां एझावा मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा है।

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मुसलमान

राज्य में मुसलमानों की आबादी का 26% है। केरल में मुस्लिम समुदाय की राजनीति पर परंपरागत रूप से कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के सहयोगी आईयूएमएल का वर्चस्व रहा है। पिछले दो दशकों में समुदाय में हुए मंथन के कारण कई पार्टियों और विभाजित समूहों का गठन हुआ है, लेकिन वे आईयूएमएल के साथ लामबंद नजर आ रहे हैं। आईयूएमएल राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा है। मुस्लिम मतदाता मुख्य रूप से उत्तरी केरल के वायनाड, मलप्पुरम, कोझिकोड, वडकारा, कन्नूर, पोन्नानी और कासरगोड निर्वाचन क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। सीपीआई (एम) समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है, मुख्य रूप से सुन्नी मुसलमानों को टारगेट पर रखा जा रहा है। सुन्नी आईयूएमएल के साथ निकटता से जुड़े रहे हैं। इस चुनाव में मुस्लिम वोट की अहमियत और बढ़ गई है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर चिंताएं राज्य में एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गई हैं। सीपीआई (एम) और कांग्रेस दोनों ने खुद को भाजपा के खिलाफ आक्रामक रूप से तैनात किया है, यहां तक ​​​​कि वे राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन के साझेदार होने के साथ-साथ राज्य में एक-दूसरे के खिलाफ नजर आ रहे हैं।

ईसाई

ईसाई राज्य की आबादी का 18% है। ये पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ रहा है। हालाँकि, क्षेत्रीय ईसाई पार्टी केरल कांग्रेस समूहों की गिरावट और कांग्रेस के प्रमुख ईसाई चेहरों के बाहर निकलने या मृत्यु की वजह से अब भाजपा ने ईसाईयों तक पहुंच बनानी शुरू कर दी है। मध्य केरल के निर्वाचन क्षेत्रों में जहां ईसाई वोट निर्णायक हैं, कांग्रेस और सीपीआई (एम) ने केरल कांग्रेस गुटों से सामुदायिक वोट आधार हासिल करने के लिए एक-दूसरे के साथ सीधी भिड़ंत में हैं। ईसाइयों में कैथोलिक प्रमुख समूह हैं। जबकि कैथोलिक चर्च कुछ आंतरिक प्रशासनिक मुद्दों से जूझ रहा है, कुछ चर्चों के नियंत्रण को लेकर जेकोबाइट और ऑर्थोडॉक्स चर्चों के बीच मतभेद हैं। मुसलमानों को लुभाने की कांग्रेस और सीपीआई (एम) दोनों की कोशिशों को लेकर ईसाइयों के एक वर्ग में कुछ नाराजगी दिख रही है। उच्च जाति के ईसाई समूह राष्ट्रीय जाति जनगणना के लिए कांग्रेस की वकालत से भी चिंतित हैं। इससे बीजेपी और संघ परिवार को ईसाई समुदाय तक पहुंचने की कोशिश करने का मौका मिल गया है। हालाँकि, पिछले साल मई से चल रहे मणिपुर जातीय संघर्ष ने केरल के ईसाइयों से जुड़ने की भाजपा की कोशिश को झटका दिया है। मणिपुर संकट के आलोक में राज्य के चर्च और सूबा भाजपा के प्रति अपने दृष्टिकोण पर विभाजित प्रतीत होते हैं।

नायर

उच्च जाति का हिंदू नायर समुदाय केरल की आबादी का लगभग 14% है। ये एक प्रभावशाली समूह है जिसका राजनीति और शासन में मजबूत प्रतिनिधित्व है। समुदाय के संगठन नायर सर्विस सोसाइटी (एनएसएस) की एक राजनीतिक शाखा, नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी थी यूडीएफ का हिस्सा थी। 1995 में जब कांग्रेस सत्ता में थी तब इसे भंग कर दिया गया था। तब से एनएसएस आधिकारिक तौर पर पार्टियों से राजनीतिक रूप से समान दूरी पर रहने की अपनी स्थिति पर अड़ा हुआ है। वर्तमान पिनाराई विजयन कैबिनेट में 21 में से सात मंत्री नायर हैं, हालांकि माना जाता है कि एनएसएस नेतृत्व 2021 के चुनावों में सीपीआई (एम) के खिलाफ था। हाल ही में एनएसएस नेतृत्व ने तीन बार के सांसद शशि थरूर की असली नायर  के रूप में सराहना की। थरूर तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में फिर से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां नायर वोट एक महत्वपूर्ण फैक्टर माना जाता है। राज्य कांग्रेस नेतृत्व में के सी वेणुगोपाल, रमेश चेन्निथला और के मुरलीधरन जैसे अन्य प्रमुख नायर चेहरे भी हैं। थरूर का मुकाबला हाई-प्रोफाइल बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर से है, जो नायर जाति से आते हैं। कोल्लम, पथानामथिट्टा और कोट्टायम सीटों पर भी नायर समुदाय चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाता है। त्रिशूर में भाजपा के उम्मीदवार अभिनेता से नेता बने सुरेश गोपी हैं, जो नायर समुदाय से हैं।

दलित

राज्य की आबादी में लगभग 9% अनुसूचित जाति (एससी) हैं, जो विभिन्न संगठनों के माध्यम से मुख्य रूप से सीपीआई (एम) और कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। अललथुर और मवेलिककारा दो एससी-आरक्षित सीटें हैं। छह बार के लोकसभा सदस्य कोडिकुन्निल सुरेश, जो मावेलिककारा से चुनाव लड़ रहे हैं, कांग्रेस के प्रमुख दलित राजनेता हैं। राज्य मंत्री के राधाकृष्णन, जो अलाथुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, सीपीआई (एम) में एक प्रमुख दलित चेहरा हैं। जहां सुरेश कांग्रेस कार्य समिति के आमंत्रित सदस्य हैं, वहीं राधाकृष्ण सीपीआई (एम) केंद्रीय समिति के सदस्य हैं।

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