ताकत की दुनिया (व्यंग्य)
ताक़त हासिल करने के धार्मिक, राजनीतिक, जातीय या राष्ट्रीय नाम के कई शर्तिया सफल रास्ते हैं। उचित समय पर चौधराहट ग्रहण कर इसका सामयिक प्रयोग करते और करवाते रहें तो प्रसिद्धि, शक्ति और पैसा स्वत आने लगता है।
दुनिया ताक़त की है। हर तरफ ताक़त का रूतबा बढ़ता जा रहा है। ताक़त के साथ चौधराहट फैलती है। हमारे जानकार चौधरीजी को जब किसी नए चौधरी के बारे में पता चलता है तो वे बिना देर किए पूछते हैं कि यह कहां के चौधरी हैं। असलियत में उनके दिमाग में चल यह रहा होता है कि हमारे क्षेत्र में हमारे जैसा ताक़त का चौधरी होते हुए यह दूसरा चौधरी कहाँ से, क्यूं आ गया। इतिहास पढाता है कि ताक़त बहुत खतरनाक वस्तु है, एक बार शरीर और दिमाग में घुस जाए तो जाती नहीं है। लगता है यह मोटापे जैसी होती है। किसी ज़माने में कहा जाता था कि पढ़ने लिखने से बंदा समझदार हो जाता है, लेकिन परिस्थितियों में लाए गए शातिर बदलावों के कारण, अब तो बिना पढ़े लिखे भी, अवसरानुसार समझदारी के प्रयोग से अपनी तरह की ताक़त हासिल कर चौधरी बन जाते हैं।
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ताक़त हासिल करने के धार्मिक, राजनीतिक, जातीय या राष्ट्रीय नाम के कई शर्तिया सफल रास्ते हैं। उचित समय पर चौधराहट ग्रहण कर इसका सामयिक प्रयोग करते और करवाते रहें तो प्रसिद्धि, शक्ति और पैसा स्वत आने लगता है। दुनिया की महान लोकतांत्रिक परम्पराओं के निमित बाकायदा चुना हुआ, एक आम हुडदंगी जब ताक़त भरी कुर्सी पर बैठता है तो फैसलों को इधर से उधर घुमा देता है, अनाधिकृत काम करवाता है। यहीं से वह ताक़त का चौधरी बनना शुरू हो जाता है और दूसरों से बड़ा चौधरी बनने के अवसर खोदना उसका कर्तव्य हो जाता है। उनके प्रदर्शन से प्रभावित हो, बड़े बुद्धिमान चौधरी उन्हें अपने अभ्यारण्य में ले लेते हैं। काफी गहन प्रशिक्षण के बाद इन अपने किस्म के चौधरी को समझ आता है कि वे जिन दूसरे चौधरी की बात कर रहे थे, के जैसा अंतर्राष्ट्रीय कहें तो काफी मुल्कों का चौधरी होना भी ज़रूरी है ताकि वह अपनी धन और गन वाली चौधराहट से दूसरों को दबकाकर रखे।
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यह पहली बार तो हो नहीं रहा। हालांकि दुनिया में दूसरे बड़े चौधरी भी हैं लेकिन असली चौधरी तो वही माना जाता है जो साम दाम दंड भेद का फार्मूला लगाकर अपनी ताक़त का प्रदर्शन करता रहे। कहीं आग लगा दे फिर आग बुझाने को अपनी टांग तैयार रखे। चौधरी किसी भी रंग, धर्म, जाति, क्षेत्र का हो, नायक बनना आसान नहीं होता। एक नायक जब ताक़त के जूतों में प्रवेश कर लेता है तो उसका चरित्र ऐसा हो जाता है कि वह अपने सामने किसी को उभरता हुआ देख नहीं पाता। एक ताक़त चौधरी कभी नहीं चाहता कि कोई भी उस जैसा ताक़त चौधरी बन पाए। ताक़त की कुर्सी का मालिक महाचौधरी होता है। ताक़त की दुनिया है जनाब।
- संतोष उत्सुक
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