होममेड संस्करण आचार का (व्यंग्य)
देखने दिखाने का ज़माना है, नया और लुभावना रचने का समय है इसलिए दर्शाए गए चित्र रचनात्मक प्रस्तुति के लिए बनाए होते हैं। होममेड शब्द लिखना केवल एक ट्रेड मार्क चिन्ह है और आचार की वास्तविक प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
पिछले दिनों स्वाद की दुनिया में, ग्राहक बाज़ार की रौनक बनने, नया आचार आया है। नए आचार के ईमानदार व पारदर्शी विज्ञापन में आचार को सलीके से होममेड बताया जा रहा है यानी घर में बनाया या घर का बना। वैसे हमें इसका अर्थ किसी बिल्डिंग में बनाया लेना चाहिए क्यूंकि ऐसा विज्ञापन में ही इंगित कर दिया गया है। आचार और व्यवहार में से आचार को ज़्यादा पसंद किया जाता है व्यवहार को किनारे रख दिया जाता है। व्यवहार का प्रभावोत्पादक विज्ञापन हो जाए तो खरीददारों की लाइन लग जाती है।
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देखने दिखाने का ज़माना है, नया और लुभावना रचने का समय है इसलिए दर्शाए गए चित्र रचनात्मक प्रस्तुति के लिए बनाए होते हैं। होममेड शब्द लिखना केवल एक ट्रेड मार्क चिन्ह है और आचार की वास्तविक प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। पिछले कुछ समय से तो परिस्थितियां भी ऐसी चल रही थी कि होम निवासियों का आचार व्यवहार, अप्रत्याशित और अस्वादिष्ट बना हुआ था। ऐसा विज्ञापन देने वालों की तारीफ़ होनी चाहिए। उन्होंने मान लिया कि विज्ञापन शब्दों, चित्रों और कल्पना का खेल है। वह बात चुनाव से सम्बद्ध है कि खेलने का मैदान समाज, धर्म या राजनीति में से क्या हो या सभी मैदानों में एक साथ, एक ही खेल खेला जा रहा हो। हमारे यहां तो हर चीज़ ट्रेड मार्क हो चली है और हर काम ट्रेड यानी व्यापार। यहां तो व्यवहार भी ट्रेडमार्क है ठीक होममेड शब्द की तरह। यह भी किसी व्यक्ति या महाव्यक्ति की वास्तविक प्रकृति, प्रवृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता ।
इधर नए होममेड आचार का विज्ञापन आया है और उधर संहिता का ताज़ा आचार जगह जगह डाला गया। इस व्यवहारिक अनुशासन के लिए हमें कोरोना के नए स्वाद ओमिक्रोन का शुक्रगुजार होना चाहिए। संहिता के आचार को नई नई विधियों से डालकर ज्यादा स्वादिष्ट और बिकाऊ बनाने के पूरे प्रयास हमेशा किए जाते रहे हैं। आचार की पुरानी संहिता में नए होममेड मसाले डाले जाते रहे हैं। इस बार भी स्वाद का स्तर उठाए रखने के लिए धार्मिक, क्षेत्रीय, जातीय व साम्प्रदायिक आंच पर खूब पकाया गया। सामाजिकता, नैतिकता व इंसानियत के होममेड गुण विशेष घरों की ऐतिहासिक एवं पारम्परिक रसोई में पकाकर लाए गए।
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वक़्त बदल चुका है, अब तो कहीं भी ‘नेचुरल’ शब्द पढ़कर प्रकृति की याद दिलाई जाने लगती है यह शब्द कुदरत का ज़ोर शोर से प्रतिनिधित्व करता है। हर चीज़, विचार, व्यवहार और कर्मों का ‘होममेड’ आचार डालकर उसे सबसे बढ़िया, स्वादिष्ट और टिकाऊ बताकर बाज़ार में उतारने का ज़माना है। इन उत्पादों को बेचने के लिए हर कोई तैयार बैठा है लेकिन गुणवता सम्बंधित शिकायत करना वर्जित है। हां, सप्लाई एवं सर्विस से सम्बंधित कोई भी शिकायत करनी हो तो संपर्क केन्द्रों की भरमार है। बात सही है, अब होममेड सिर्फ ट्रेड मार्क ही तो है।
- संतोष उत्सुक
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