हार के बाद कांग्रेस नेताओं का वही पुराना राग- कब करेंगे विस्तार से सही विश्लेषण ?
कांग्रेस के नेता इस करारी हार या यूं कहें कि महाराष्ट्र के इतिहास में मिली सबसे शर्मनाक पराजय का ठीकरा भी ईवीएम पर ही फोड़ने में जुट गए हैं। क्या वाकई ऐसा ही हुआ है? क्या वाकई ईवीएम के सहारे इतनी बड़ी जीत हासिल कर सकते हैं?
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद एक बार फिर से कांग्रेस नेताओं का वही पुराना राग शुरू हो गया है। कांग्रेस के नेता इस करारी हार या यूं कहें कि महाराष्ट्र के इतिहास में मिली सबसे शर्मनाक पराजय का ठीकरा भी ईवीएम पर ही फोड़ने में जुट गए हैं। क्या वाकई ऐसा ही हुआ है? क्या वाकई ईवीएम के सहारे इतनी बड़ी जीत हासिल कर सकते हैं? या फिर कांग्रेस नेताओं ने चुनावी हार का ऐसा मजबूत बहाना ढूंढ लिया है जो हर चुनावी हार के बाद वो दोहरा देते हैं ताकि पार्टी आलाकमान, उनसे सवाल न पूछे।
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी दिक्कत तो यह पैदा हो गई है कि अपने जीवन में एक भी चुनाव नहीं लड़ने वाले या फिर नहीं जीतने वाले नेताओं के साथ-साथ ऐसे नेता भी जनादेश पर और ईवीएम पर सवाल उठाने में जुटे हुए हैं, जो कई चुनाव जीत चुके हैं और जनादेश के बल पर ही लंबे समय तक सत्ता में रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: झारखंड विधानसभा चुनाव: भाजपा का दांव पूरी तरह फेल हो गया
मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य के 10 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे, राज्यसभा के वर्तमान सांसद एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का 25 नवम्बर सोमवार को किया गया यह ट्वीट पढ़िए। दिग्विजय सिंह लिखते हैं, "महाराष्ट्र के चुनाव में वही हुआ जो भाजपा चाहती थी। उन्होंने 148 उम्मीदवार खड़े किए जिनमें से 132 जीत गये। स्ट्राइक रेट 89 प्रतिशत। वे यदि चाहेंगे तो शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार ) के बिना भी सरकार बना सकते हैं। यह चुनाव भाजपा ने पूरा ईवीएम के माध्यम से टारगेटेड पोलिंग बूथ्स पर मैनीपुलेट कर जीत हासिल की है। लोग कहेंगे फिर झारखंड वे कैसे हार गये? आप ही सोचिए नरेंद्र मोदी, अमित शाह के लिए क्या झारखंड से महाराष्ट्र अधिक महत्वपूर्ण नहीं है? इंडिया गठबंधन को चुनाव आयोग के व्यवहार पर और ईवीएम द्वारा चुनाव कराये जाने के विषय पर तत्काल चर्चा करना चाहिए।"
चुनावी प्रक्रिया से जुड़ा हुआ कोई भी समझदार नेता या कार्यकर्ता, इतना सक्षम होता है कि वह अपने-अपने बूथ पर होने वाली वोटिंग का सटीक नतीजा बता सकता है। इसलिए यह कहना कि कांग्रेस नेताओं को सच का अहसास नहीं होगा, अपने आप में पूरी तरह से गलत होगा।
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो यह है कि अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए कांग्रेस नेता जो तर्क देते हैं। उसे राहुल गांधी भी स्वीकार कर लेते हैं या उन्हें करना पड़ता है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भी राहुल गांधी ने अप्रत्याशित नतीजों का विश्लेषण करने की बात कही थी और राहुल गांधी के उसी ट्वीट को उनकी सोशल मीडिया टीम ने थोड़ा हेर-फेर कर महाराष्ट्र चुनाव में मिली हार के बाद भी चिपका दिया। यानी या तो राहुल गांधी हार के विश्लेषण को लेकर गंभीर नहीं है या फिर वरिष्ठ नेताओं की टोली उनपर इस कदर हावी हो गई है कि राहुल गांधी कुछ कर ही नहीं पा रहे हैं। दोनों ही सूरतों में यह कांग्रेस, विपक्ष और लोकतंत्र तीनों के लिए अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती है।
-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)
अन्य न्यूज़