विकास के माप, नाप और पोल (व्यंग्य)

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पर्यावरण दिवस पर सबंधित दर्जनों कानूनों के मेहनती निर्माताओं को स्मरण करते हुए हर साल हर मोहल्ले में प्लास्टिक के चार सौ बीस वृक्ष रोपने चाहिए। जिस क्षेत्र में प्रगति नहीं हुई, खुश रहने के लिए उसका भी जश्न मनाते रहना चाहिए।

विकास का एक माप यह है कि हर क्षेत्र में उत्पादन बम्पर हो लेकिन पेट आराम से न भर पाए। नाप यह है कि महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य पोषण रिपोर्ट में स्तर पिछले साल से भी नीचे खिसक जाए तो क्या। पोल खोलने से बेहतर है मानव विकास सूचकांक की प्रक्रिया होनी ही नहीं चाहिए ताकि दर्जनों परेशानियां लुप्त रहें और सामाजिक कार्यकर्ता, शोधकर्ता व विश्लेषकों का सिर दर्द न रहे या कम रहे। लैंगिक समानता के मानक भी अगर संतुष्ट करने लायक न हों तो घोषित करने से पहले अच्छी तरह से सेंसर किए जाने चाहिए। ईशोपनिषद में सबके लिए बराबर विकास की विशुद्ध भारतीय दृष्टि के संदर्भ उद्धृत किए जाने की मनाही होनी चाहिए। कुपोषण को राष्ट्रीय धर्म मान लेने बारे संजीदा विचार करना चाहिए ताकि जनसंख्या स्वत कम होते रहना बुरा न लगे।

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आर्थिक विकास केवल सड़क व भवन निर्माण को ही माना जाना उचित रहेगा। पर्यावरण दिवस पर सबंधित दर्जनों कानूनों के मेहनती निर्माताओं को स्मरण करते हुए हर साल हर मोहल्ले में प्लास्टिक के चार सौ बीस वृक्ष रोपने चाहिए। जिस क्षेत्र में प्रगति नहीं हुई, खुश रहने के लिए उसका भी जश्न मनाते रहना चाहिए। इससे उत्सवों की गणना भी बढ़ जाएगी। हमारे बीस करोड़ लोगों को मनोरोगों का शिकार बताने वालों  को मनोरोग से ग्रस्त घोषित करने बारे प्रस्ताव पास करना चाहिए। इससे संबंधित प्रोजेक्ट्स के लिए करोड़ों रूपए का वित्त बर्बाद न कर सड़क और भवन निर्माण में लगा देना चाहिए। इतना विकास मानव ही तो कर रहा है फिर मानव विकास सूचकांक बनाने, बताने व जानने का औचित्य कहां रह जाता है। 

हमारा समाज धार्मिक, पारम्परिक, सांस्कृतिक व सभ्य है फिर भी कुछ चीज़ें ज़िंदगी का हिस्सा नहीं हो सकती। इसके मद्देनज़र ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स अमान्य किया जा सकता है। हमारे अपनों के पास इतना पैसा है फिर भी प्रति व्यक्ति डीजीपी बहुत कम डॉलर है, यह हमारी सरलता, सादगी, सौम्यता व सहनशीलता की ख़ूबसूरती है। वैसे भी दो काम एक साथ नहीं हो सकते जैसे विकास और मानव विकास साथ साथ होने संभव नहीं। जब दो गज की उचित दूरी बरकरार रखना संभव नहीं हो पाया तो यह भी कैसे हो सकता है। 

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पर्यावरण सम्बद्ध सूचना अनुसार भारत में सबसे अधिक लोगों की मृत्यु बताई जाती है इसका कारण यहां जनसंख्या का ज़्यादा होना और मेहनती और जांबाज़ होना है। अब ज़रूरत यह है कि वैश्विक भूखमरी सूचकांक, मानव विकास सूचकांक, समग्र पर्यावरण प्रदर्शन, विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक, स्वच्छता एवं पेयजल सूचकांक, जैव विविधता, प्रदूषक तत्व उत्सर्जन सूचकांक जैसे सूचकांकों को हमारी लोकतांत्रिक फ़िज़ा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। स्वास्थ्य, पोषण, रोज़गार, कृषि, पर्यावरण, शिक्षा, न्याय, समानता जैसी दुविधाओं को हमेशा के लिए विचारों से बाहर कर देना चाहिए। विकासजी के रास्ते से कुछ तो अवांछित हटाना ही पड़ेगा।  

- संतोष उत्सुक

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