इधर उधर के बीच में (व्यंग्य)
एक दिन सोसाइटी की मीटिंग हुई। मीटिंग में अधूरे पड़े कार्यों की समीक्षा की गयी। दूर के ढींगे हांकने वाले अध्यक्ष जी के काम नाम बड़े और दर्शन छोटे की तरह दिखाई दिए। उन्हें लगा कि आज उनकी खैर नहीं है। फट से उन्होंने अपना रंग बदला।
प्यारेलाल सरकाने और टरकाने का नुस्खा बड़ी सफाई से इस्तेमाल करते हैं। हर काम को कल पर टाल कर आज को आराम देह बनाने के लिए अपने टाइप के आधुनिक कबीर बनने का दावा करते हैं। उनकी मानें तो दौड़-धूप कर मेवा खाने से अच्छा बैठे-बिठाए रूखी सूखी खाना है। वे अपनी रेसिडेंस सोसाइटी के अध्यक्ष हैं। इसका उन्हें तनिक भी गुमान नहीं है। हाँ यह अलग बात है कि सुबह-शाम उन्हें सलाम न ठोंकने तथा जी हुजूरी करने से बचने वालों की खबर अच्छे से लेते हैं। ऊपर से ऐसे लोगों का काम मजे से लटका कर रखते हैं। लटकाने का यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक लटकू महाराज उनसे माफी मांग नहीं लेते।
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वैसे तो प्यारेलाल जी ज्यादा पढ़े लिखे तो नहीं हैं लेकिन अहंकार पढ़े-लिखों से ज्यादा है। अपने गुमान का पारा सदा सातवें आसमान पर रखते हैं। कभी कभार पत्नी उनकी पढ़ाई को लेकर चुहल बाजी कर बैठती है तो तैश में तिलमिला उठते हैं और कहते हैं- रिक्शा चलाने वाला पढ़ा-लिखा न हुआ तो क्या हुआ बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में डाल कर खुद अंग्रेजों-सा फील करता है या नहीं? राधे लाल की पत्नी उन्हें छोड़ जमाना हो गया लेकिन मजाल कोई उन्हें महिला सशक्तीकरण पर भाषण देने से रोक कर दिखाए। व्यापार में डूबे हुए न जाने कितने विफलधारी व्यापार में सफलता के गुरु मंत्र नहीं बांटते क्या? खुद सिविल की परीक्षा की चौखट पर हजार बार माथा फोड़ने वाले कोचिंग सेंटरों में सिविल अधिकारी तैयार नहीं करते क्या? पावर में बने रहने के लिए दिमाग की नहीं समय को भुनाने की कला आनी चाहिए। पत्नी थक हार कर उनकी दलीलों के आगे नतमस्तक हो जाती है और अपने तीसमार खान पति की अड़ियलता को अपने कर्मों का फल मानकर मन मसोसकर रह जाती है।
एक दिन सोसाइटी की मीटिंग हुई। मीटिंग में अधूरे पड़े कार्यों की समीक्षा की गयी। दूर के ढींगे हांकने वाले अध्यक्ष जी के काम नाम बड़े और दर्शन छोटे की तरह दिखाई दिए। उन्हें लगा कि आज उनकी खैर नहीं है। फट से उन्होंने अपना रंग बदला। किसान नेता टिकैत की भांति आंखों में आंसू भर लिए और कहा- हमारे किसान दिल्ली की सीमाओं पर मर रहे हैं और तुम सब मुझसे हिसाब मांग रहे हो? मैंने सोसाइटी का कुछ फंड किराए पर ट्रैक्टर लेकर दिल्ली भिजवाने में खर्च कर दिए। बचा खुचा अयोध्या में भव्य मंदिर के निर्माण में लगा दिया। यह सुन सोसाइटी के सदस्य हक्के बक्के रह गए। इससे पहले कि सदस्य अध्यक्ष से सवाल करते उन्होंने तुरंत प्रत्येक सदस्यों के नाम वाले किसान समर्थक धर्मरक्षक का प्रमाण पत्र व्हाट्सएप कर दिया। सदस्यों को लगा हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा की तरह बिना दिल्ली गए किसान और बिना मंदिर गए आस्तिक बनना आज के समय की बड़ी उपलब्धि है। किंतु तभी एक सदस्य ने अध्यक्ष पर एक संदेह भरा सवाल दागा- किसान का समर्थन और मंदिर निर्माण के लिए दान जैसे कार्य दोनों पक्ष-विपक्ष का समर्थन करने जैसा विरोधाभासी कार्य है। वैसे हम सब किसकी और हैं?
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इस पर अध्यक्ष जी मुस्कुराए और बोले आज का समय पक्ष-विपक्ष में रहने वालों का नहीं दोनों और रहने वालों का है। ऐसे लोग सदा सुरक्षित और सुखी रहते हैं। वह दिन दूर नहीं जब स्त्री-पुरुष और अन्यों की तरह पक्ष-विपक्ष और वह उभय पक्ष की कैटेगरी होगी। मुझे सदस्य बनकर अध्यक्ष को और अध्यक्ष बनकर सदस्यों को डांटने का बड़ा शौक था। इसीलिए मैं सोसाइटी का सदस्य और अध्यक्ष दोनों हूं। जो दोनों और रहते हैं वही आगे बढ़ते हैं। यही आज के समय का सबसे बड़ा गुरु मंत्र है।
-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त
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