अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा इन दो देशों के लिए बन गया सिरदर्द, शरणार्थियों को रोकने के तैयार हो रही दीवार
विश्लेषकों का कहना है कि सब कुछ अज्ञात कारकों पर निर्भर करता है - चाहे तालिबान एक अधिक उदार रुख पेश करता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अनुमति देता है या वे बेलगाम उग्रवाद की ओर लौटते हैं।
तालिबान के अफगानिस्तान पर तेजी से कब्जे ने पड़ोसी देश ईरान और तुर्की के सिरदर्द को और बढ़ा दिया है। दोनों देशों बड़ी तादाद में शर्णार्थियों का नया ठिकाना बन सकती है। लेकिन ईरान और तुर्की अपने यहां शरणार्थियों की और अधिक आमद नहीं चाहता है। दोनों देश कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहे हैं और आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि सब कुछ अज्ञात कारकों पर निर्भर करता है - चाहे तालिबान एक अधिक उदार रुख पेश करता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अनुमति देता है या वे बेलगाम उग्रवाद की ओर लौटते हैं। जिसके कारण 11 सितंबर, 2001 के हमलों के मद्देनजर उन्हें उखाड़ फेंका गया था।
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यूरोपीय काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (ईसीएफआर) के एक वरिष्ठ सदस्य आयदिंतसबास ने एएफपी को बताया कि इसमें कोई शक नहीं है कि मौजूदा स्थिति तुर्की और ईरान के लिए जोखिम भरा है। अगर तालिबान अपने पुराने तरीकों पर लौटता है और इस्लामी चरमपंथियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करता है तो दोनों देशों को नुकसान हो सकता है। दोनों पहले से ही बड़ी शरणार्थी आबादी की मेजबानी कर रहे हैं - तुर्की में 3.6 मिलियन सीरियाई और ईरान में 35 लाख अफगान शरणार्थी हैं।
तुर्की ने ईरान बॉर्डर पर बनाई लंबी दीवार
तालिबान के कब्जे के बाद लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं। तुर्की में सैकड़ों अफगानी घुसने की कोशिश में हैं। जिसके मद्देनजर तुर्की ने ईरान सीमा पर अपनी सुरक्षा कड़ी कर दी है। तुर्की ने अपनी सीमा पर मॉड्यूलर क्रंकीट की दीवार बना दी है।
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