72 Hoorain Review: बहकावे में आकर धर्म के नाम पर अधर्म करने वाले आतंकियों को आईना दिखाती है फिल्म
धर्म के नाम पर लोगों को बरगलाना और उन्हें गलत रास्ते पर ले जाना इस दुनिया में कोई नई बात नहीं है। जिहाद लोगों के बीच आतंक फैलाने के लिए आतंकवादियों द्वारा किया जाने वाला एक अपराध है।
धर्म के नाम पर लोगों को बरगलाना और उन्हें गलत रास्ते पर ले जाना इस दुनिया में कोई नई बात नहीं है। जिहाद लोगों के बीच आतंक फैलाने के लिए आतंकवादियों द्वारा किया जाने वाला एक अपराध है। धर्म की आड़ में निर्दोष और असहाय लोगों को बड़े-बड़े सपने दिखाना और निर्दोष लोगों की हत्या करवाना देश में आम बात हो गई है। निर्देशक संजय पूरन सिंह की फिल्म '72 हुरें' 7 जुलाई को सिल्वर स्क्रीन पर रिलीज हुई। यह फिल्म आतंकवादियों पर एक व्यंग्य है।
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फिल्म की कहानी का प्लॉट
अनिल पांडे द्वारा लिखित '72 हुरें' के निर्माताओं ने यह सुनिश्चित किया कि फिल्म के माध्यम से किसी भी धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे। फिल्म की कहानी दो युवकों हाकिम (पवन मल्होत्रा) और साकिब (आमिर बशीर) के इर्द-गिर्द घूमती है। एक मौलाना के बहकावे में आकर दोनों जिहाद के लिए निकलते हैं और मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया पर आत्मघाती हमला करने के लिए तैयार हो जाते हैं। मौलाना उन्हें लालच देते हुए कहते हैं कि जिहादी जिहाद के बाद 'जन्नत' जाते हैं जहां उनकी मुलाकात '72 हूरें' से होती है और अल्लाह के फ़रिश्ते उनकी परछाई बनकर घूमेंगे। लेकिन जब दोनों की मौत हो जाती है तो सच्चाई कुछ और ही निकलती है, उनकी आत्माओं का सच से सामना होता है जो मौलाना की बातों से बिल्कुल अलग था। साथ ही उनके परिजनों को उनका अंतिम संस्कार करने और नमाज पढ़ने का भी मौका नहीं मिलता है। उन्हें लगता है कि अगर शायद उनका जनाजा नमाज के साथ कर दिया जाए तो जन्नत के दरवाजे खुल जाएंगे। इस बीच 169 दिन बीत जाते हैं और इन दोनों जिहादियों की आत्माओं का क्या होता है यह देखने के लिए आपको सिनेमा हॉल का रुख करना होगा।
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कहानी धर्म के नाम पर ब्रेनवॉश करने पर प्रकाश डालती है
'72 हुरें' इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे लोगों को धर्म के नाम पर बरगलाया जाता है और आतंकवाद के लिए मजबूर किया जाता है। फिल्म ने लोगों में फैल रहे आतंकवाद के मुद्दे को बहादुरी से उठाया।
कैसी है फिल्म 72 हुरें?
इस फिल्म के निर्देशन की बात करें तो संजय पूरन सिंह ने इसके साथ पूरा न्याय किया है। फिल्म के कुछ दृश्य दिल दहला देने वाले हैं जहां एक महिला आत्महत्या करने जाती है और उसकी मां उसे बताती है कि यह कितना बड़ा अपराध है और इसका आत्मघाती आतंकवादियों की भटकती आत्मा पर क्या प्रभाव पड़ता है, उसी दिशा में बम का दृश्य है ब्लास्ट को ऐसे दिखाया गया है कि आप हिल जाएंगे। निर्देशक ने फिल्म के हर सीन और हर फ्रेम पर कड़ी मेहनत की है और स्क्रीन पर कहानी कहने का उनका दिलचस्प अंदाज दर्शकों के रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी है।
सिनेमा प्रेमियों के लिए इस फिल्म की खास बात यह है कि आप बेहतरीन वीएफएक्स के साथ ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा का आनंद लेंगे। आपको फ़िल्म का अधिकांश भाग ब्लैक एंड व्हाइट में देखने को नहीं मिलता है। भटकती आत्माओं के लिए यह एक आदर्श विचार था। अभिनय की बात करें तो पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने बेहतरीन काम किया है। पूरी फिल्म दोनों कलाकारों के इर्द-गिर्द घूमती है और दोनों कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय से फिल्म का स्तर ऊंचा कर दिया है।
फिल्म का नाम: 72 हुरें
समीक्षा: संजय पूरन सिंह की फिल्म आतंकवाद और धर्म के बारे में विचारोत्तेजक सच्चाई पेश करती है
आलोचकों की रेटिंग:3/5
रिलीज की तारीख: 6 जुलाई
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
शैली: नाटक
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